14 मार्च....
सोमवार...
आज मेरी डियर डायरी सोच रहीं होगी मैं इतना देर से क्यूँ आई तो पहले तो डियर से माफ़ी मांगती हूँ...। उसके बाद कारण बताती हूँ की सवेरे बच्चों की अलमारी साफ कर रहीं थी..तो उनके कुछ फोटो मिले... सभी को व्यवस्थित करके रख रहीं थी तो मेरी सगाई के समय का एक फोटो मिला...। उस फोटो में मम्मी का हंसता हुआ चेहरा देखकर बहुत भावुक हो गई हूँ...। तब से लेकर अभी तक बस मम्मी की यादें दस्तक दे रहीं हैं...।
अभी डियर सोच रहीं होगी की इसमें ऐसा शीर्षक लिखने का क्या मतलब....!
तो आज मैं आपको इसी से जुड़ा एक किस्सा बता रहीं हूँ...।
जहाँ तक आज मैने कैंसर के बारे में जाना हैं इससे यह बात तो तय हैं की यह बिमारी छूने से.... साथ खाने से... साथ सोने से.... नहीं फैलती...। कुछ वैज्ञानिकों का तो यहाँ तक कहना हैं की कैंसर कोई बिमारी हैं ही नहीं... ये तो बस शरीर में कुछ विटामिन की कमी की वजह से एक गांठ बन जाती हैं.... जिसका पता हमें सही समय पर नहीं चल पाता.... क्योंकि इस गांठ में कोई दर्द नही होता.... और फिर धीरे धीरे ये गांठ फैलती जाती हैं और घातक रुप धारण कर लेती हैं...। लेकिन आज से तीस पैंतिस साल पहले लोगों को इस बिमारी का इतना ज्ञान नहीं था..। एक अलग ही विचारधारा थीं उस समय...।
मेरी मम्मी को भी कैंसर हुआ था...। लोगों की बातों और उससे पैदा हुए डर की वजह से मेरी मम्मी ने हम सभी बच्चों से दूरियाँ बढ़ा ली थी..। खुद के बर्तन अलग रखना.... कपड़े अलग धोना... सबसे अलग होकर सोना... यहाँ तक की खुद का पानी भी अलग भरकर रखना...।
उस वक्त हमको भी इतना पता नहीं था और फिर मम्मी के खिलाफ जाने की भी हिम्मत नहीं होतीं थी...। इसलिए चुपचाप जैसा वो कहती वैसा कर लेते...।
आज जब वो सब बातें सोचते हैं तो बहुत तकलीफ होती हैं की कितने साल हमने गंवा दिए.... एक गलत अवधारणा की वजह से...। मेरी जिंदगी में कैंसर एक ऐसी बिमारी... एक ऐसा शब्द हैं जिसने मुझसे बहुत कुछ छीना भी हैं और बहुत कुछ सिखाया भी हैं...। अब वो क्या बातें हैं वो जानते हैं कल...क्योंकि अभी बच्चों के सोने का समय हो गया हैं...।
शुभरात्रि... कल जल्दी आने का वादा करतीं हूँ...। 😊😊
जय श्री राम...। 🙏
जाने से पहले मेरी मम्मी से मिलते जाइये..। हूँ ना मैं उनके ही जैसी....।😊