15 मार्च
मंगलवार...।
शुभ रात्रि मेरी डियर डायरी...। उम्मीद करतीं हूँ सब कुशल मंगल होगा....।
जैसा की मैं कल बता रहीं थी की कैंसर के बारे में की इस ने बहुत कुछ छीना हैं और बहुत कुछ सिखाया भी हैं..।
दरअसल जब मम्मी को कैंसर हुआ था तब हम संयुक्त परिवार से एकल परिवार में बंट चुके थे.. । बड़े से घर के तीन हिस्से हो चुकें थे...। बड़ी चाची, छोटी चाची और मम्मी...। अपनी तेरह बहनों में से ( कजिऩ) मैं सबसे छोटी थी.... और अलग होते ही कुछ समय में मेरी सगी बहन की शादी हो गई थी...। उसकी शादी के बाद मम्मी को कैंसर हो गया था...। मैं अब तक सिर्फ अपनी पढा़ई पर फोकस थी...। घर का कोई काम मुझे नहीं आता था क्योंकि इतने लोगों के साथ रहने से और सबसे छोटी होने की वजह से कभी जरूरत ही नहीं पड़ी..। लेकिन मम्मी की तबियत बिगड़ने की वजह से घर का सारा काम मुझपर आ गया..। उस वक्त हमारे यहाँ बाई रखने का चलन नहीं था.... और फिर हमारी आर्थिक स्थिति भी दिन ब दिन खराब होतीं जा रहीं थी...। लेकिन बहुत कम समय में मैने घर की हर जिम्मेदारी खुद पर ले ली थीं..। मम्मी को उस वक्त डोज़ (से़क) दिए जाते थे.... जिससे मम्मी को बहुत तकलीफ होती थी...। पापा घर पर रहते नहीं थें... बड़े भाई और दोनों छोटे भाई नौकरी करते थे... तो मम्मी की भी पूरी जिम्मेदारी मुझ पर थीं....। बहुत जल्दी हर तरह का काम मैंने सीख लिया था...।
घर का काम, मम्मी की देखभाल और खुद की पढ़ाई.... सभी में जल्दी सामन्जस्य बिठा लिया था...।
रहीं बात खोने की तो मेरी मम्मी के अलावा भी मेरी एक कजिऩ बहन, कजिऩ भाभी और कुछ दो तीन रिश्तेदार को भी कैंसर हुआ था और उन सभी की कैंसर की वजह से मृत्यु हुई थीं.....।अभी चलतीं हूँ...कल फिर मिलुंगी ....। जाने से पहले......
हंसते हंसते कट जाए रस्ते..
जिंदगी यूँ ही चलती रहे...
खुशी मिले या गम़...
बदलेंगे ना हम...
दुनिया चाहे बदलतीं रहें...।
जय श्री राम.....।