8 फरवरी 2022
मंगलवार....
आज आने में थोड़ी देर हो गई पहले तो उसके लिए क्षमा मांगती हूँ....। कल दोपहर से आधे सिर दर्द की तकलीफ ( माइग्रेन) फिर से होने लगी इसलिए पूरा शेड्यूल ही ऊपर नीचे हो गया...।
कहने वाले कहते हैं तुम घर बैठे बैठे करतीं ही क्या हो... पर हम एक पहर भी अगर यहाँ वहाँ हो जाए तो पूरा घर अस्त व्यस्त हो जाता हैं...। सवेरे सवेरे देखा तो वणिका जीजी फिर से आ गई हैं अपने धाकड़ लेखन के साथ तो पहले उनका हार्दिक अभिनंदन....।
उनके लिए शायद में अन्जान ही हूँ पर मेरे लिए वो बहुत कुछ हैं....। ऐसे ही कही बात हुई थी उनसे.... उनके लेखन के अंदाज की मैं तब से प्रशंसक हूँ...।
अब बात करते हैं आज के मुद्दे की... सवेरे सवेरे अपने दैनिक रुटिन के अनुसार कुछ समय बालकनी में बिता कर जब अपने कामों में लगीं तो सोचा आज आपसे उस शख्स के लिए बात कर लूँ.... जिनसे मेरा दूर दूर तक कोई रिश्ता नहीं हैं.... लेकिन एक दिन भी अगर उनकों ना देखूँ तो मन व्याकुल हो जाता हैं....। एक घबराहट और बैचेनी सी होने लगतीं हैं.... मन में अजीब से ख्याल आने लगते हैं...।
अब आप सोच रहे होंगे बिना किसी रिश्ते का इतना मोह.....।
दरअसल सच तो ये ही हैं.... मुझे उस शख्स का नाम तक नहीं मालूम...। फिर भी रोज़ उनकों देखना दिल को सुकून देता हैं...।
यहाँ तक आतें आतें कई लोगों के दिल में कई तरह के ख्याल उमड़ रहें होंगे.... ।।
लेकिन जैसा सब सोच रहे हैं बात बिल्कुल उसके विपरीत हैं.... आज मैं बात कर रहीं हूँ बूढ़ी काकी की..... जी.... बूढ़ी काकी..... मैं उनकों इसी नाम से बुलाती हूँ...।
मैं इस घर में कुछ महीनों पहले ही शिफ्ट हुईं हूँ.... मेरे घर की बालकनी से घर के पीछे बहुमंजिला इमारतें बनीं हुईं है.... ( फ्लैटस)
उन इमारतों की ऊपर से दूसरी और तीसरी दो मंजीलो पर दो औरतें रहतीं हैं अपने परिवार के साथ....।
दोनों औरतों की उम्र 80- 85 के पार होगी....। रिश्ता हमारा ऐसा हैं की हम तीनो का लगभग हर काम साथ साथ होता हैं.... जैसे:- बालकनी में पौधों को पानी देना.... तुलसी जी का सवेरे और सांझ को पुजन करना.... बालकनी में कपड़े सुखाना और फिर उन्हें उतारना.... सुरज ढलने पर कुछ समय और सुरज निकलने पर कुछ समय बालकनी में समय बिताना...।
इस रुटिन से हम रोज़ एक दूसरे को देखते हैं... ना जाने क्यूँ पर वो भी हर रोज मुझे देखती हैं...। बस इतना ही रिश्ता हैं मेरा उनसे...।
लेकिन कभी अगर दोनों में से कोई नहीं दिखता तो मन में बहुत ऊथल पुथल होतीं हैं...।
मुझे नहीं पता वो दोनों मुझे क्यूँ देखती हैं.... लेकिन मैं उनमें अपनी माँ की छवि देखती हूँ....। भले ही कभी उनसे बात नहीं हो पाए लेकिन सामने हैं वो ही सुकून देता हैं....। कभी ना दिखने पर मैं अपने बच्चों से जाहिर करतीं हूँ की आज वो बूढ़ी काकी दिखी नहीं हैं.... पता नहीं क्या हुआ होगा...।
जानती हूँ बहुत से लोग शायद इसे पागलपन कहें... लेकिन कुछ रिश्ते बस ऐसे ही दिल को सुकून देने के लिए भी बन जाते हैं.... बिना स्वार्थ के...।
जो भी हैं पर मैं उनकों दूर से देखकर ही खुश हो जाती हूँ.... ऐसा लगता हैं जैसे मम्मी को देख रहीं हूँ....। वो चाहे मुझे छोड़ गई हो पर मैं हमेशा उनकों अपने पास ही पातीं हूँ किसी ना किसी रुप में....।
ऊपर वाले से बस यहीं दुआ हैं मेरा और उन दोनों बुढी़ काकी का रिश्ता ऐसे ही बना रहे...।
जय श्री राम....।