8 मार्च....
मंगलवार....
सबसे पहले तो आप सभी को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की आप सभी को हार्दिक बधाई....।
मेरे दिन की शुरुआत भी ऐसे ही हुई हैं..... मोबाइल हाथ में लेते ही अनगिनत मैसेज.... महिला दिवस की बधाई के...।
कितनी अजीब बात हैं ना हम महिला सशक्तिकरण की बातें करते हैं... उनकी बराबरी की.... उनके सम्मान की बातें करते हैं... लेकिन क्या सच में ऐसा होता हैं..?
एक बार ये सवाल अपने आप से जरूर पुछिएगा...।
माना आज महिलाओं की स्थिति पहले से बहुत बेहतर हुई हैं.... लेकिन फिर भी पुरूषों के मुकाबले बहुत पीछे हैं...। आज भी जब बराबरी और हक़ की बात आती हैं तो महिलाओं को वो अधिकार नहीं दिया जाता..।
सच कहूं तो इसमें सारी गलती पुरुषों की नहीं हैं.... कुछ गलती हमारी भी हैं.... हम ही अपने हक़ को कभी कभी बड़ी ही आसानी से छोड़ देते हैं....बिना लड़े...।
आज भी कितने ऐसे घर होंगे जहाँ बेटी के जन्म पर लोग मातम मनाते हैं... भूर्ण हत्या करवाते हैं....।
मैं किसी ओर की नहीं आज अपनी ही आपबीती बताती हूँ... मेरी पहली बेटी का जन्म बहुत ही मुश्किल से हुआ था.... कुछ तकलीफ़ होने की वजह से आपरेशन का रास्ता अपनाया गया....। काफी पैसा खर्च हुआ था क्योंकि प्राइवेट हास्पिटल में दाखिल करवाया गया था.... क्योंकि कोई भी हास्पिटल केस ले ही नहीं रहा था...।
खैर बहुत ही जतन से आपरेशन हुआ.... बेटी सही सलामत हुई... कुछ आधे घंटे बाद मुझे भी ओटीपी से बाहर लाया गया...। बाहर आते ही जो मैने पहले शब्द सुने वो आज भी दिल पर छपे हुए हैं...मेरे एक करीबी परिचित .... जिनका मैं रिश्ता नहीं बता सकतीं... उन्होंने कहा:- सुबह से लेकर शाम तक भटकाया.... इतने पैसे खर्च किए.... और आई भी लड़की.... हमारे तो कर्म ही फूट गए.... इससे तो पैदा ही नहीं होती....।
उस वक्त मैं क्या कोई भी मां होती तो बहुत रोती...।
पहला बच्चा.... माँ बनने का सम्मान.... नौ महिनों का लाड़.... क्या सिर्फ लड़कों के लिए होता हैं..!
ना जाने कितनी ही ऐसी औरतें हैं जो इस सुख से वंचित हैं.... एक बार उनके दिल से जाकर पुछिए.... क्या गुजरती हैं ऐसे में...।
कहने को तो बहुत कुछ हैं लेकिन सच कहूं तो इस वक्त वो सभी बातें... सारा घटनाक्रम एक बार फिर से ताज़ा हो गया हैं... इसलिए...
आज के लिए इतना ही... कल फिर मिलुंगी....।
जय श्री राम....।