22 मार्च....
मंगलवार....
सबसे पहले तो बात करते हैं भारतीय महिला क्रिकेट टीम की.... आज उनका बांग्लादेश की टीम के साथ मुकाबला हैं और पिछली दो हार की वजह से आज करो या मरो का मैच हैं...। अभी ये तो आने वाला वक्त बताएगा की परिणाम क्या मिलता हैं...।
फिर बात करते हैं युक्रेन और रुस के बीच चल रहें युद्ध की...। आज 27 दिन हो गए हैं युद्ध की शुरुआत हुए... लेकिन अभी तक बेनतीजा..। युक्रेन के हालात भले ही बदतर हो चुकें हो..... लेकिन ऐसे में भी वो हार मानने को तैयार नहीं हैं....। सबसे शक्तिशाली देश को भी उसे हराने में पसीने छूट गए हैं...। मैं यहाँ किसी की तरफदारी या खिलाफत नहीं कर रहीं हूँ... सिर्फ इतना कहना चाहतीं हूँकी.... अगर ठान लो तो जीत हैं... अगर मान तो हार निश्चित हैं... ।
मतलब जब तक हम किसी काम को करने के लिए ठान नहीं लेंगे... तब तक उस काम को अंजाम नहीं दे पाएंगे....।लेकिन अगर हमने बिना लड़े हथियार डाल दिए तो हमारी हार तय हैं...।
हमारी जिंदगी भी ऐसी ही हैं.... जब तक हम पक्का निर्णय लेकर कदम नहीं बढ़ाएंगे तब तक हम कुछ कर नहीं पाएंगे...। सिर्फ सोचने से कुछ हासिल नहीं होता..। मैं अगर खुद की बात करूँ तो मैने भी कभी सोचा नहीं था की कभी कुछ लिख पाएंगे...। पढ़ने का बहुत शौक था और जब मुझे कोविड हुआ था तो आइसोलेशन में अकेले अकेले वक्त निकालने और अपना ध्यान कहीं ओर लगाने के लिए पढ़ना शुरू किया..। आइसोलेशन से बाहर आने के बाद भी पढ़ना जारी रखा...। एक रोज की बात हैं मेरे घर कुछ मेहमान आए हुए थे...। दोपहर के वक्त सभी काम निपटा कर मैं आदत वश मोबाइल लेकर कुछ पढ़ने लगी...। तभी जो मेहमान आए थे उनमें से एक ने कहा:- क्या भाभी सिर्फ पढ़ते ही रहते हो या कभी कुछ लिखा भी हैं..!
हालांकि ये बात उसने व्यंग्य (मज़ाक) में कहीं थी... पर उसकी ये बात मेरे दिल को छु गई...। बचपन में स्कुल टाइम में मैने बहुत सी कविताएँ लिखी हुई हैं... मनगढंत कहानियाँ बनाने में भी माहिर थी...आस पास चल रहें घटनाक्रम से कभी कभी सोचती भी बहुत थी..। बस फिर क्या था.... ठान लिया...। मन में पक्का कर लिया की लिखना हैं..। अपनी पहली कहानी की शुरुआत की.. "इंतज़ार "....(किसी दूसरे मंच पर) पहला अध्याय लिखा.... बहुत ही अच्छा रिस्पांस मिला...। यूँ समझों जैसे रेगिस्तान में किसी को पानी मिल गया हो....।उसके बाद मैने पीछे मुड़कर नहीं देखा...। एक टारगेट बना लिया की इतने वक्त में इतना तो हासिल करना ही हैं...। कोशिश जारी हैं.... विश्वास हैं कामयाबी जरूर मिलेगी..। हाँ..... तकलीफ आएगी.... रुकावट आएगी.... मुझे भी आई थी... अपने ही लोगों से तिरस्कार और मजाक का पात्र बनाई गई.... लेकिन अगर दस लोग गिराने वाले मिलते हैं तो दो लोग संभालने वाले भी मिल ही जातें हैं...। ऐसे ही कुछ लोगों के साथ की वजह से दिया आज भी कायम हैं... 🤗।
जय श्री राम....।
जल्दी मिलेंगे...। तब तक....
हर एक मुस्कुराहट मुस्कान नहीं होतीं.....
नफ़रत हो या मोहब्बत आसान नहीं होतीं..... ।
आंसू खुशी के गम़ के..... होतें हैं एक जैसे....
इन आंसूओ की कोई पहचान नहीं होती.....।