shabd-logo

छंद

hindi articles, stories and books related to chhan


featured image

अहीर छंद "प्रदूषण"बढ़ा प्रदूषण जोर।इसका कहीं न छोर।।संकट ये अति घोर।मचा चतुर्दिक शोर।।यह भीषण वन-आग।हम सब पर यह दाग।।जाओ मानव जाग।छोड़ो भागमभाग।।मनुज दनुज सम होय।मर्यादा वह खोय।।स्वारथ का बन भृत्य।करे असुर सम कृत्य।।जंगल किए विनष्ट।सहता है जग कष्ट।।प्राणी सकल कराह।भरते दारुण आह।।धुआँ घिरा विकराल।ज्यों

featured image

आँसू छंद "कल और आज"भारत तू कहलाता था, सोने की चिड़िया जग में।तुझको दे पद जग-गुरु का, सब पड़ते तेरे पग में।तू ज्ञान-ज्योति से अपनी, संपूर्ण विश्व चमकाया।कितनों को इस संपद से, तूने जीना सिखलाया।।1।।तेरी पावन वसुधा पर, नर-रत्न अनेक खिले थे।ब

featured image

32 मात्रिक छंद "शारदा वंदना"कलुष हृदय में वास बना माँ,श्वेत पद्म सा निर्मल कर दो ।शुभ्र ज्योत्स्ना छिटका उसमें,अपने जैसा उज्ज्वल कर दो ।।शुभ्र रूपिणी शुभ्र भाव से,मेरा हृदय पटल माँ भर दो ।वीण-वादिनी स्वर लहरी से,मेरा कण्ठ स्वरिल माँ कर दो ।।मन उपवन में हे माँ मेरे,कवि

विधान--प्रदीप छंद (16,13) पदांत- लघु गुरु (1 2) 🌹गीत🌹 """"""""""चहुँ ओर है छल भरा यौवन, सहज समर्पण चाहिए ।प्रेम सरित उद्गम करने को, अनुरागी मन चाहिए ।। 🌹परखने की आँखें हो संग, संतुलन मन बना सके।ख्वाहिश हो सँवारने

विधान--प्रदीप छंद (16,13) पदांत- लघु गुरु (1 2) 🌹गीत🌹 """"""""""चहुँ ओर है छल भरा यौवन, सहज समर्पण चाहिए ।प्रेम सरित उद्गम करने को, अनुरागी मन चाहिए ।। 🌹परखने की आँखें हो संग, संतुलन मन बना सके।ख्वाहिश हो सँवारने

🌹पुनीत छंद 🌹विधान---मात्रिक, 15 मात्रा संयोजक- -- 2 2 3 3 2 2 1 🌻सागर वेग बहुत है धार। पावन प्रेम परम है सार।। कैसे बोल रहीं साकार। प्यारी लगे सहज आचार।।तुमरी प्रीत करे है धाँव । हिय में बसे प्रेम के भाव।। आकर हमपर कुछ तो वार। तू बन जा प्रेमी अवतार।।सब से पा

--हाकलि छंद - हाकलि छंद में प्रत्येक चरण में तीन चौकल अंत में एक गुरु के संयोग से १४ मात्राएँ होती है l चरणान्त में s, ss ,।। एवं सगण l ls आदि हो सकते हैं l कतिपय विद्वानों छन्दानुरागियों का मत है चौदह मात्रा में यदि प्रत्येक चरण में तीन चौकल एवं एक दीर्घ [गुरु ] न होने पर उस छंद को हमें मानव छंद क

दुर्मिल सवैया ( वर्णिक )शिल्प - आठ सगण, सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा 112 112 112 112 112 112 112 112, दुर्मिल सवैया छंद लघु से शुरू होता है ।छंद मे चारों पंक्तियों में तुकांत होता है"छंद दुर्मिल सवैया" चित भावत नाहिं दुवार सखी प्रिय साजन छोड़ गए बखरी।अकुलात

छंद - " मदिरा सवैया " (वर्णिक ) *शिल्प विधान सात भगण+एक गुरु 211 211 211 211 211 211 211 2 भानस भानस भानस भानस भानस भानस भानस भा"छंद मदिरा सवैया" वाद हुआ न विवाद हुआ, सखि गाल फुला फिरती अँगना।मादक नैन चुराय रहीं, दिखलावत तैं हँसती कँगना।।नाचत गावत लाल लली, छुपि पाँव महावर का रँगना।भूलत भान बुझावत हौ

""""" """""मरा जा रहा हूँ (हास्य)""""" """' ************************* प्रिय मुझसे तेरा यूँ मुंह का फुलाना, नखरे दिखाना यूँ रूठ के सो जाना, गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है। न हँसना तनिक भी न सजना सवरना, न आँखें दिखाना न लड़ना झगड़ना, गजब ढा रहा है, गजब ढा रहा है। ओ तिरछी नजर से न मुझको रिझाना, न कसमों

"छंद मुक्त गीतात्मक काव्य"जी करता है जाकर जी लूबोल सखी क्या यह विष पी लूहोठ गुलाबी अपना सी लूताल तलैया झील विहारकिस्मत का है घर परिवारसाजन से रूठा संवादआतंक अत्याचार व्यविचारहंस ढो रहा अपना भारकैसा- कैसा जग व्यवहारजी करता है जाकर जी लूबोल सखी क्या यह विष पी लूहोठ गुलाबी अपना सी लू।।सूखी खेती डूबे बा

शिल्प विधान- ज र ज र ज ग, मापनी- 121 212 121 212 121 2 वाचिक मापनी- 12 12 12 12 12 12 12 12."छंद पंचचामर"सुकोमली सुहागिनी प्रिया पुकारती रही।अनामिका विहारिणी हिया विचारती रही।।सुगंध ले खिली हुई कली निहारती रही।दुलारती रही निशा दिशा सँवारती रही।।-1बहार बाग मोरिनी कुलांच मारती रही।मतंग मंद मालती सुगंध

छंद - चामर, शिल्प विधान- र ज र ज र, मापनी - 212 121 212 121 212 वाचिक मापनी - 21 21 21 21 21 21 21 2 "चामर छंद"राम- राम बोलिए जुबान मीठ पाइकै।गीत- मीत गाइए सुराज देश लाइकै।।संग- संग नाव के सवार बैठ जाइए।आर- पार सामने किनार देख आइए।।द्वंद बंद हों सभी बहार बाग छाइयै।फूल औ कली हँसें मुखार बिंदु पाइयै।

छन्द- वाचिक विमोहा (मापनीयुक्त मात्रिक) मापनी - 212 212 अथवा - गालगा गालगा पारंपरिक सूत्र - राजभा राजभा (अर्थात र र) विशेष : विमोहा 'मापनीयुक्त वर्णिक छंद' है, जिसमें वर्णों की संख्या निश्चित होती है अर्थात किसी गुरु 2 / गागा के स्थान पर दो लघु 11 /लल प्रयोग करने की छूट नहीं होती है। ऐसे छंद को 'वर्

छंद- कीर्ति (वर्णिक) छंद विधान - स स स ग मापनी- 112 112 112 2"आप सभी महानुभावों को पावन विजयादशमी की हार्दिक बधाई""मुक्तक"मुरली बजती मधुमाषा हरि को भजती अभिलाषा रचती कविता अनुराधाछलकें गगरी परिहाषा।।-1घर में छलिया घुस आयायशुदा ममता भरमायागलियाँ खुश हैं गिरधारीबजती मुरली सुख छाया।।-2मथुरा जनमे वनवा

जय नव दुर्गा ^^ जय - जय माँ आदि शक्ति - छंद, शिल्प विधान, 10, 8, 12 मात्रा पर यति, प्रथम दो यति पर सम तुकांत, व प्रथम द्वितीय चरण का सम तुकांत....... ॐ जय माँ शारदा.......!शारदीय नवरात्रि के पावन अवसर पर माँ जगत जननी नवदुर्गा के 51 शक्तिपीठ को नमन करते हुए आप सभी को हार्दिक बधाई, ॐ जय माता दी!"चवपैय

“छंद मुक्त काव्य“(मैं इक किसान हूँ) किस बिना पै कह दूँकि मैं इक किसान हूँजोतता हूँ खेत, पलीत करता हूँ मिट्टी छिड़कता हूँ जहरीलेरसायन घास पर जीव-जंतुओं का जीनाहराम करता हूँ गाय का दूध पीताहूँ गोबर से परहेज है गैस को जलाता हूँपर ईधन बचाता हूँ अन्न उपजाता हूँगीत नया गाता हूँ आत्महत्या के लिएहैवान बन जा

छंद - हरिगीतिका(मात्रिक) मुक्तक, मापनी- 2212 2212 2212 2212“मुक्तक” (छंद -हरिगीतिका)फैले हुए आकाश मेंछाई हुई है बादरी। कुछ भी नजर आतानहीं गाती अनारी साँवरी। क्यों छुप गई है ओटलेकर आज तू अपने महल- अब क्या हुआ का-जलबिना किसकी चली है नाव री॥-1क्यों उठ रही हैरूप लेकर आज मन में भाँवरी। क्यों डूबने कोहरघड़

छन्द- वाचिकप्रमाणिका (मापनीयुक्त मात्रिक) वर्णिक मापनी - 12 12 12 12 अथवा - लगा लगा लगालगा, पारंपरिक सूत्र - जभान राजभा लगा (अर्थात जर ल गा) विशेष : प्रमाणिका 'मापनीयुक्त वर्णिक छंद' है,जिसमें वर्णों की संख्यानिश्चित होती है अर्थात किसी गुरु 2 के स्थान पर दो लघु 11 प्रयोग करने की छूटनहीं होती है। ऐस

शिल्प विधान- कुल मात्रा =३० (१० ८ १२) १० और ८ पर अतिरिक्त तुकान्त “छंद चवपैया " (मात्रिक )जय जय शिवशंकर प्रभु अभ्यांकर नमन करूँ गौरीशा। जय जय बर्फानी बाबा दानी मंशा शिव आशीषा॥प्रतिपल चित लाऊँ तोहीं ध्याऊँ मन लागे कैलाशा। ज्योतिर्लिंग

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए