जंगली कुत्ते का मैंने शिकार तो नहीं किया है, परंतु उसको देखा है। जिन्होंने इसके कृत्यों को देखा है वे इस छोटे से जानवर के नाम पर दाँतों तले उँगली दबाते हैं। रंग इसका गहरा बादामी होता है, इसलिए शायद इसको 'सुना कुत्ता' कहते हैं।
अकेला-दुकेला सुना कुत्ता कुछ नहीं कर सकता; परंतु यह चालीस पचास से भी अधिक संख्या के झुंड में रहता है। और जानवर तो रात में शिकार खेलते हैं, यह दिन में ही बंटाढार करता है। जिस जंगल में सुना कुत्तों का झुंड पहुँच जाता है। उस जंगल के जानवरों का या तो सर्वनाश हो जाता है या वे ठौर छोड़कर दूर जंगलों में चले जाते हैं। यहाँ तक कि शेर भी उस जंगल को छोड़कर अन्यत्र चल खड़ा होता है। जब सेर के लिए खाने को जंगल में कुछ नहीं रहता तब उसको विवश होकर निर्वासन स्वीकार करना पड़ता है। केवल भोजन की अप्राप्यता ही शेर के कष्ट का कारण नहीं है, सुना कुत्तों का झुंड शेर को घेरकर मार भी डालता है। इसलिए शेर इस शैतानी झुंड से बहुत डरता है।
अन्य जानवरों की तरह सुना कुत्तों के झुंड का भी अगुआ होता है। इनमें जासूस, हरावल नायक, पहलेवाले इत्यादि सभी होते हैं। सुना कुत्ते मनुष्य से भी नहीं डरते; परंतु वे मनुष्य पर वार तब करते हैं जब उनको जानवर खाने को नहीं मिलते या जब उनके पास एक दूसरे को खा जाने का सुभीता नहीं रहता।
इनका जासूस स्काउट भोज्य पदार्थ की खबर देता है। सारा झुंड अंगड़ाई लेकर खड़ा हो जाता है। फुरेरू ली, धरती खोदकर नाखून तेज किए, जबड़े समेट कर दाँत पीसे और सबके सब चल दिए।
परंतु ये जानवर पर अंधाधुंध धावा नहीं बोलते। इसकी योजना किसी भी चतुर सेनापति की दक्षता को चुनौती देनेवाली होती है।
पहले इनका जासूस साँभर, चीतल, रोज, गुरायँ इत्यादि जानवरों के झुंड को दूर से दिखला देता है, फिर मुखिया जासूस को साथ लेकर चारों ओर चक्कर काटकर मार्के के स्थान देखता है। इसके बाद मुखिया अपने सारे दल को टुकड़ियों में बाँटकर मोरचाबंदी करता है। मोरचे चारों ओर से बाँध लिए जाते हैं। महत्व का कोई भी स्थान संभावना के लिए नहीं छोड़ा जाता।
इतना कर लेने के उपरांत मुखिया कूका देकर मानो आक्रमण करने का बिगुल बजाता है।
घिरा हुआ जानवर चौंककर इधर-उधर देखता है। दिखलाई कुछ नहीं पड़ता। कूके सुनाई पड़ते हैं। घेरा संकीर्ण होता चला जाता है। जैसे ही जानवरों ने निकल भागने के लिए उछल-कूद की कि सुना कुत्तों का एक दल आ चिपटा; बाकी सेना भी आई और कुछ क्षणों में ही जानवर साफ।
सुना कुत्ते शेर को भी घेरकर, सताकर और थकाकर मार डालते हैं। शेर को ये दिन-रात चैन नहीं लेने देते। नोचते-काटते रहते हैं। वह खिसिया-खिसियाकर इनपर झपटता है; पर ये हाथ नहीं आते। अंत में थका-माँदा और भूखा प्यासा शेर मारा जाता है और ये उसको चट कर जाते हैं।
इसके शिकार के लिए काफी सावधानी की जरूरत है। काँटों की घनी बिरवाई करके देखने और बंदूक चलान के लिए उसमें कई ओर छेद कर लिए जाते हैं। शिकारी महुआ, आम या बाँस के पत्ते की कोमल कोंपल क ओठों में दबाकर साँभर, चीतल के त्रस्त बच्चे की रुलाई या पुकार का अनुकरण करता है। उस शब्द पर कूके लगाते हुए और घेरा डालते सुना कुत्ते आ जाते हैं। पास आते तुरंत ही छर्रे के कारतूस चलाने की आवश्यकता है। जैसे ही एक-दो मरे या घायल हुए कि बाकी उनपर टूट पड़ते हैं और खाने में संलग्न हो जाते हैं। उसी समय झुंड पर लगातार छर्रे की वर्षा करनी अनिवार्य है। जब झुंड इस छिपी बला से अनपी संख्या को काफी घटा हुआ देखता है तब भागता है। ऐसी परिस्थिति में शिकारी सुरक्षित है।
सुना कुत्ते के नाश के लिए विविध प्रांतों में विविध प्रकार के पुरस्कार नियुक्त हैं। वैसे रक्षित जंगलों में बिना अनुमति के शिकार नहीं खेला जा सकता, परंतु सुना कुत्तों को मारने के लिए कोई शिकारी रक्षित वन में घुस सकता है और उनको मारकर पुरस्कार पा सकता है।
सुना कुत्ते की भूख मानो एक दहकता हुआ अग्निकुंड है। खाता चला जाएगा और फिर भी अतृप्त रहेगा। इसकी भूख की तुलना भेड़िए की भूख से की जा सकती है। परंतु न तो उसका झुंड इतना बड़ा होता है और न इतना भयानक।