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दबे पाँव (अध्याय 8)

16 मई 2022

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खेती को नुकसान पहुँचानेवाले जानवरों से सुअर चीतल और हिरन से कहीं आगे है। मनुष्यों के शरीर को चीरने-फाड़ने में वह तेंदुए से कम नहीं है। सुअर की खीसों से मारे जानेवालों की संख्या तेंदुए की दाढ़ों और नाखूनों से मारे जानेवालों की अपेक्षा कहीं अधिक होती है। प्रत्येक वर्ष के औसत की कहानी है।

सुअरों की संख्या इतनी शीघ्रता के साथ बढ़ती है कि उसकी बाढ़ में किसी बड़े षड्यंत्र का हाथ सा दिखलाई पड़ता है।

दो-तीन वर्षों में ही एक जोड़ के कम से कम पचास जोड़ हो जाने की संभावना रहती है।

यह जानवर बहुत दृढ़, बड़ा कष्टसहिष्णु, विकट बहुभोजी और बहुत मार पी जानेवाला होता है। बहादुर इतनी कि इसके मुकाबले में शेर भी उतना नहीं होता। खीसें इसका हथियार हैं और बल का कोष इसकी गरदन और कंधे। और इसका सिर तो मानो पत्थर का एक ढोंका ही होता है। जिसने एक बार इस खीस का सिर की टक्कर खाई, वह उसको कभी भूल नहीं सका अर्थात् यदि उस टक्कर के कारण मर न पाया तो।

उतरती बरसात के दिन थे। सूर्यास्त होने में विलंब था। बदली छाई हुई थी और ठंडी हवा चल रही थी। मैं अपने एक मित्र के साथ जंगल की ओर चल दिया। जंगल में घुसा नहीं था कि दो छोकरे दो कुत्ते लिए हुए मिल गए। कुत्ते आगे-आगे दौड़ रहे थे और कलोलों पर थे। मैंने उन छोकरों को कुत्ते पकड़कर लौटने के लिए कहा। उन्होंने प्रयत्न करके एक कुत्ता पकड़ पाया। दूसरा जंगल का रुख पकड़ गया।

हम लोग उस कुत्ते को पकड़ने की चिंता में जंगल के सिरे पर पहुँच गए। झाड़ी शुरू हो गई थी, परंतु घनी न थी।

निदान, वह कुत्ता एक छोटी सी झाड़ी के पास जा ठिठका। हम लोग उसके पास पहुँच गए। वह झाड़ी मेरे सामने थी। दाईं और चार-पाँच कदम के अंतर पर मेरे मित्र दुनाली बंदूक लिए खड़े हो गए। एक कुत्ते को एक छोकरा साफे के छोर से बाँधे हुए बाईं ओर चार-पाँच कदम के फासले पर ओर दूसरी उसके बराबर खड़ा हो गया। मेरे मित्र दाईं ओर से हटकर जरा और सामने आए।

उस दूसरे आवारा कुत्ते ने झाड़ी में मुँह डाला। सूँघा और फूँ-फाँ की। मैंने समझा, झाड़ी में खरगोश होगा।

परंतु उस झाड़ी में से कूदकर निकला एक मझोला सुअर। वह सीधा मेरे ऊपर आया।

मैं 30 बोर का राइफल लिए था। भरी हुई थी; परंतु नाल पर ताला पड़ा था। मेरे मित्र बंदूक नहीं चला सकते थे। चलाने पर गोली या तो मुझपर पड़ती या उन दो छोकरों में से एक पर। मैं भी नही चला सकता था। मेरी गोली या तो उन मित्र पर पड़ती या किसी छोकरे पर।

उन दोनों छोकरों के मुँह से निकला, 'ओ मताई, खा लओ!' और वे बिना किणसी प्रत्यक्ष कारण के पोंदों के बल धम्म से गिरे। उसी क्षण सुअर मेरे ऊपर आया। क्षण के एक खंड में मैं समझ गया कि आज हड्डी पसली टूटी।

और तो कुछ कर नहीं सकती थी। मैंने सुअर के आक्रमण को बंदूक की नाल पर झेला। कंधों और हाथों को काफी कड़ा करके मैंने सुअर के आक्रमण को झेला था; परंतु उसने मेरी दाहिनी टाँग को दो छिद्दे दे ही तो दिए। ये छिद्दे घुटने के नीचे पड़े थे।

सुअर अपना थोड़ा सा परिचय देकर भागा। मैंने अपना परिचय देने के लिए उसका पीछा किया; परंतु मैं दस-पद्रंह डग से आगे न जा सका। पैर भारी हो गया और जूतों में खून भर आया। खिसियाकर रह जाना पड़ा। पैर की हड्डी टूटने से तो बच गई, परंतु मैं घायल इतना हो गया था कि लँगड़ाते-लँगड़ाते चलना भी दुष्कर हो गया।

इस स्थान से बेतवा का किनारा लगभग एक मील था। हम लोगों ने उस रात नदी के एक बीहड़ घाट पर ठहरने की सोची थी। पैर में गरमी थी, इसलिए घाट पर पहुँचने में कोई बाधा नहीं जान पड़ी। घाट पर पहुँचे तो देखा कि वहाँ बिस्तर-विस्तर कुछ नहीं। जिस गाँव में डेरा डाला था वह इस घाट के लगभग ढाई मील दूर था। परंतु ऊपर की ओर हम लोगों ने, बेतवा की ढी में, एक ठीहा और बना रखा था। सोचा, बिस्तर वहाँ रख दिए होंगे। अभी अँधेरा नहीं हुआ था, इसलिए हम लोग उस ठीहे की ओर चल पड़े। वह इस घाट से डेढ मील की दूरी पर था। पैर लँगड़ाने लगा था; परंतु मन को आशा में उलझाए हुए वहाँ पहुँच गया।

देखें तो बिस्तर वहाँ भी नहीं। घाट पर बिस्तर रखने के लिए जो शिकारी नियुक्त था, वह या तो भूल गया था या भ्रम में था कि शायद हम लोग गाँव को लौट आवें; क्योंकि सुअर की टक्कर का समाचार गाँव में पहुँच गया था।

मेरा पैर सूज गया था और घाव में पीड़ा थी। घाट पर बिना बिस्तरों के ठहर नहीं सकते थे। मेरे मित्र चिंतित थे। बोले, 'आप गड्डे में बैठिए, मैं गाँव से बिस्तर और भोजन लेकर आता हूँ।'

मैंने कहा, 'न, मैं भी चलता हूँ। घाव को गरम पानी से धोकर प्याज का सेंक करेंगे।'

हम दोनों गाँव की ओर चल दिए। मैं कभी मित्र का और कभी बंदूक का सहारा लेता हुआ गाँव में नौ-दस बजे तक पहुँच गया। रात को घी में भूने हुए प्याज का सेंक दिया। कुछ दिनों में घाव अच्छा हो गया। उसमें पीप नहीं पड़ी। परंतु उसके थोड़े से निशान अब भी मौजूद हैं। सुअर की चोट का घाव विषैला नहीं होता है, गाँववालों ने यह मुझको उसी रात बतलाई थी। परंतु शिकार में ऐसी चोटों का लग जाना एक साधारण बात है।

सुअर के शिकार के लोभ में एक बार जरा कड़ी चोट खाई थी।

अगोट पर बैठे-बैठे जब थक गया तो गाँव को लौटा। साथ में गाँव का पथ-प्रदर्शक था। रात काली अँधेरी थी और मार्ग जंगली पगडंडी का।

पथ-प्रदर्शक जरा आगे निकल गया। पगडंडी एक जगह बंद सी जान पड़ी। मैं समझा, आगे दूबा है और वह उसी में लुप्त हो गई है; पर वह निकला एक भरका। लगभग चौदह फीट गहरा। मैं धड़ाम से उसमें गिरा। बंदूक हाथ में लिए था। उसके बल जा सधा, नहें तो दाहिना हाथ तो टूट ही जाता जिससे लिखना सीखा था।

हाथ तो बच गया, परंतु जबड़े का धक्का कान पर लगा। वह एक कष्टदायक फोड़े के रूप में परिवर्तित हो गया। सात महीने के लिए काम और शिकार दोनों छोड़ने पड़े। इसमें से दो महीने चीर-फाड़ के सिलसिले में लखनऊ में बिताए।

जब स्वस्थ हो गया तो फिर ध्यान में सुअर आया।

सुअर का शिकार जितना 'बहुजनहिताय बहुजनसुखाय' है उतना ही मनोरंजन और सनसनी देनेवाला भी होता है। उसके शिकार का संकट ही कदाचित मन को बढ़ावा देता है।

मैंने सुअर के सताए हुए बहुत से लोगों को देखा है किसी की जाँघ फाड़ डाली गई थी, किसी का हाथ तोड़ दिया गया था और किसी की आँतें बाहर निकाल दी गई थीं। कई तो मार भी डाले गए थे।

बेचारा मंटोला को फटी जाँघों का इलाज कराने के लिए तीन महीने अस्पताल में रहा था।

गाँव के लोग सुअर की सीध और संकट को जानते हैं, इसलिए उससे बहुत सावधान रहते हैं। ज्वार के खेत में जब अकेला सुअर आता है तब वह रखवाले की ललकार का उत्तर ढिठाई के साथ उसके पास आकर देता है। रखवाला उसके ऊपर जलते हुए कंडे और सुलगते हुए लक्कड़ फेंककर भागते-भागते जान छुटाता है।

जब सनसनाती हुई दुपहरी में मैं एक ग्रामीण के साथ पहाड़ पर चढ़ते-चढ़ते एक सुअर को पड़ा पा गया, तब ग्रामीण घबराकर पेड़ पर चढ़ गया। मैंने राइफल चलाई। सुअर लुढ़कता-पुढ़कता पहाड़ के नीचे गया; परंतु एक जगह सहारा पाकर ठहर गया और फिर मुझसे बदला लेने के लिए पहाड़ पर चढ़ा। इतना घायल होते हुए भी; परंतु मेरे पास राइफल और कारतूस। उसको मार खाकर फिर वापस जाना पड़ा।

एक बार तो सुअर घायल होकर लगभग सौ गज से मेरे ऊपर दौड़ आया था।

करामत मियाँ को हिरन का शिकार खेलते-खेलते सुअर मिल गया। बंदूक कारतूसी तो थी, पर थी एकनाली। सुअर पर दाग दी। सुअर घायल हुआ और आया करामत के ऊपर। बंदूक फेंककर एक पेड़ का सहारा पकड़ना पड़ा, तब प्राण बचे।

एक ठाकुर की तो गड्ढे में लाश ही पड़ी मिली थी। थोड़ी दूर पर सुअर भी मरा मिला। ठाकुर रात के पहले ही काँटेदार गड्ढे में जा बैठा। बंदूक टोपीदार थी। निशाना जोड़ पर नहीं बैठा। लोगों ने बंदूक चने की आवाज सुनी। सवेरे गड्ढे के भीतर ठाकुर को जगह-जगह फटा हुआ पाया गया और सुअर के खुरखुंद के चिह्न।

घायल सुअर का पीछा शिकारी कुत्ते बहुत अच्छा करते हैं। एक डाँग में मेरे एक साथी ने सुअर को घायल किया। उसके पास कुत्ते थे तो छोटे-छोटे, पर वे थे सीखे हुए। उसने घायल सुअर के ऊपर कुत्तों को छोड़ा। कुत्तों ने लगभग आधा मील पछिया कर सुअर को जा पकड़ा।

मैं भी दौड़ता-दौड़ता पीछे गया। जब निकट पहुँचा तो देखा कि कुछ कुत्ते उसकी पूँछ पकड़े हुए हैं, कुछ दोनों तरफ से उसके पेट से चिपटे हुए हैं और एक कान पकड़े हुए उसकी पीठ पर जमा हुआ है। वे सब एक झोर में थे। मैं झोर में उतरा। साथी ने मना किया, 'उसके पास मत जाओ। बहुत क्रोध में है। टुकड़े कर देगा।'

मैं न माना। .30 बोर की राइफल जो हाथ में थी।

मैं आठ-दस कदम के अंतर पर जाकर खड़ा हो गया। सुअर की आँखों में से आग बरस रही थी। बिलकुल लहूलुहान था।

सुअर ने एक 'हुर्र' करके मेरी ओर झपट लगाने का प्रयास किया; परंतु आधे दर्जन से ज्यादा कुत्ते उसपर चिपटे थे। वह आगे न बढ़ सका। मैंने भी सोचा, इसको ज्यादा मौका न देना चाहिए। जैसे ही मैंने बंदूक के कंधे से जोड़ा, झोर के ऊपर से मेरे साथी ने पुकार लगाई, 'बंदूक मत चलाना। कहीं किसी कुत्ते को गोली न लग जाय।'

मैं सुअर के दूसरे प्रयास के प्रतीक्षा नहीं कर सकता था - और न वहाँ से हट सकता था। वहाँ पहुँचने से कुत्तों को ढाढ़स मिल गया था, मेरे हटने से शायद वे अनुत्साहित हो जाते - अथवा सुअर कुत्तों से छूटकर मेरे ऊपर आ कूदता; तो निशाना बाँधने का भी अवसर न मिलता। मैंने उसके सिर पर गोली छोड़ दी। सुअर तुरंत समाप्त हो गया। परंतु उसकी दूसरी और चिपका हुआ एक कुत्ता भी ढेर हो गया; क्योंकि गोली सुअर को फोड़कर निकल गई थी।

कुत्ते के मालिक से मैंने क्षमा माँग ली।

सुअर जिस प्रकार खेती का विनाश करता है, वह मैंने अपनी आँखों से देखा है।

वह सावधानी के साथ ज्वार के खेत में घुसता है। अपने नीचे पेड़ को दबाता हुआ आगे बढ़ता है। पेड़ तड़ाक से टूटता है। भुट्टा उसके मुँह में आ जाता है और एक भुट्टे से भूख को प्रज्वलित करके फिर वह आगे बढ़ता है। रखवाले की झंझट की आहट लेता है और फिर अपनी विनाशकारी क्रिया को जारी करता है। रखवाले ने हल्ला-गुल्ला किया तो या तो उसपर दौड़ पड़ा या उसी जगह घड़ी-आध घड़ी के लिए चुप हो गया। सुविधा पाकर फिर वही सत्यानास।

जिस खेत में सुअरों का बगर झुंड घुस जाए, उसमें तो सब चौपट ही हो जाता है।

चनें गेहूँ, मसूर इत्यादि के खेतों को तो वह ऐसा कर देता है जैसे किसी ने घास-फूस के ढेर लगा दिए हों। किसान ढबुओं में या आग के सहारे पड़े-पड़े रात भर चिल्लाते रहते हैं, तब कुछ बचा पाते हैं। शकरकंद, ईख और आलू का तो वह ऐसा भक्षण करता है कि यदि उसका पूरा बस चले तो नाम-निशान तक न रहने दे।

मेरी आलू की खेती को तो उसने ऐसा नष्ट किया था। कि एक सेर आलू भी खाने के लिए न छोड़े। कुछ दिन रखवाली करते-करवाते एक रात चूक हो गई। वही रात सुअर का अवसर बन गई। सेवेरे जो खेत को देखा तो ऐसा दृश्य जैसे किसी ने भोंड़ेपन के साथ हल चलाए हों।

मक्का के खेत को भी वह बिछाकर ही रहता है। यों तो चिड़ियाँ भी इसको चुगते-चुगते नहीं अघातीं; परंतु सुअर नाशकारी भय के मारे मक्का की खेती ही छोड़ दी गई है। मक्का की खेती करना मनो विपद् को सिर पर बुलाना है। कई जगह ईख की भी खेती छोड़ दी गई है।

मनुष्य जाति के प्रारंभिक विकास काल में सुअर कितना भयंकर रहा होगा, इसका अनुमान किया जा सकता है। मारे डर के इसको देव, दानव और अवतार तक की पदवी मिल गई। अवतार का प्रयोग जरूर सुंदर ढंग से किय गया है; पर वह विकास के मध्य भाग की बात ही रही होगी।

सुअर का शिकार घोड़े की सवारी पर बरछे से भी होता है और यह बहुत सनसनी देनेवाला होता है। परंतु भूमि पहाड़ी और बहुत ऊबड़-खाबड़ नहीं होनी चाहिए।

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रचनाएँ
वृंदावन लाल वर्मा की रोचक कहानियाँ
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इन्हे बचपन से ही बुन्देलखंड की ऐतिहासिक विरासत में रूचि थी। जब ये 19 साल के किशोर थे तो इन्होंने अपनी पहली रचना ‘महात्मा बुद्ध का जीवन चरित’(1908) लिख डाली थी। उनके लिखे नाटक ‘सेनापति दल’(1909) में अभिव्यक्त विद्रोही तेवरों को देखते हुये तत्कालीन अंग्रजी सरकार ने इसी प्रतिबंधित कर दिया था। ये प्रेम को जीवन का सबसे आवश्यक अंग मानने के साथ जुनून की सीमा तक सामाजिक कार्य करने वाले साधक भी थे। इन्होंने वकालत व्यवसाय के माध्यम से कमायी समस्त पूंजी समाज के कमजोर वर्ग के नागरिकों को पुर्नवासित करने के कार्य में लगा दी। इन्होंने मुख्य रूप से ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास, नाटक, लेख आदि कुछ निबंध एवं लधुकथायें भी लिखी हैं।
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मेंढकी का ब्याह

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उन ज़िलों में त्राहि-त्राहि मच रही थी। आषाढ़ चला गया, सावन निकलने को हुआ, परन्तु पानी की बूँद नहीं। आकाश में बादल कभी-कभी छिटपुट होकर इधर-उधर बह जाते। आशा थी कि पानी बरसेगा, क्योंकि गाँववालों ने कुछ पत

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खजुराहो की दो मूर्तियाँ

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चंद्रमा थोड़ा ही चढ़ा था। बरगद की पेड़ की छाया में चाँदनी आँखमिचौली खेल रही थी। किरणें उन श्रमिकों की देहों पर बरगद के पत्तों से उलझती-बिदकती सी पड़ रहीं थीं। कोई लेटा था, कोई बैठा था, कोई अधलेटा। खजु

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जहाँगीर की सनक

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'इंशा! इंशा!!' बादशाह जहाँगीर ने इधर-उधर देखकर भरे दरबार में जरा ऊँचे स्वर में अपने भतीजे को पुकारा। अलमबरदार ने बड़े अदब के साथ बतलाया कि शाहजादा शिकार खेलने चले गए हैं। 'शाहजादा - इंशा के लिए! जहाँग

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शरणागत

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रज्जब कसाई अपना रोजगार करके ललितपुर लौट रहा था। साथ में स्त्री थी, और गाँठ में दो सौ-तीन सौ की बड़ी रकम। मार्ग बीहड़ था, और सुनसान। ललितपुर काफी दूर था, बसेरा कहीं न कहीं लेना ही था; इसलिए उसने मड़पुर

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थोड़ी दूर और

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जब महमूद गजनवी (सन 1025-26 में) सोमनाथ का मंदिर नष्ट-भ्रष्ट करके लौटा तब उसे कच्छ से होकर जाना पड़ा। गुजरात का राजा भीमदेव उसका पीछा किए चल रहा था। ज्यों-ज्यों करके महमूद गजनवी कच्छ के पार हुआ। वह सिं

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रक्षा

16 मई 2022
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मुहम्मदशाह औरंगजेब का परपोता और बहादुरशाह का पोता था। 1719 में सितंबर में गद्दी पर बैठा था। सवाई राजा जयसिंह के प्रयत्न पर मुहम्मदशाह ने गद्दी पर बैठने के छह वर्ष बाद जजिया मनसूख कर दिया। निजाम वजीर ह

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रामशास्त्री की निस्पृहता

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दो सौ वर्ष के लगभग हो गए, जब पूना में रामशास्त्री नाम के एक महापुरुष थे। न महल, न नौकर-चाकर, न कोई संपत्ति। फिर भी इस युग के कितने बड़े मानव! भारतीय संस्कृति की परंपरा में जो उत्कृष्ट समझे जाते रहे है

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दबे पाँव (अध्याय 1)

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कुछ समय हुआ एक दिन काशी से रायकृष्ण दास और चिरगाँव से मैथिलीशरण गुप्त साथ-साथ झाँसी आए। उनको देवगढ़ की मूर्ति कला देखनी थी - और मुझको दिखलानी थी। देवगढ़ पहुँचने के लिए झाँसी-बंबई लाइन पर जालौन स्टेशन

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दबे पाँव (अध्याय 2 )

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हिंदी में कुछ-न-कुछ लिखने की लत पुरानी है। सन् 1909 में छपा हुआ मेरा एक नाटक सरकार को नापसंद आया। जब्त हो गया और मैं पुलिस के रगड़े में आया। परंतु रंगमंच पर अभिनय करने पर अभिनय करने का शौक था और नाटक

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दबे पाँव (अध्याय 3)

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चिंकारे का शिकार करछाल के शिकार से भी अधिक कष्टसाध्य है। चिंकारा बहुत ही सावधान जानवर होता है। उसे संकट का संदेह हुआ कि फुसकारी मारी और छलाँग मारकर गया। हिरन संकट से छुटकारा पाने के लिए दूर भागकर दम ल

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दबे पाँव (अध्याय 4)

16 मई 2022
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एक जगह जमकर बैठने का शिकार काफी कष्टदायक होता है। झाँखड़ या पत्थरों के चारों ओर ओट बना लेते हैं और उसके भीतर जानवरों को अगोट पर शिकारी बैठ जाते हैं-ऐसे ठौर पर, जहाँ होकर जानवर प्रायः निकलते हों। उनके

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दबे पाँव (अध्याय 5)

16 मई 2022
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हिरन वर्ग के जानवरों के लिए ढूका या ढुकाई का शिकार भी अच्छा समझा जाता है। इस शिकार में काफी परिश्रम करना पड़ता है। पेट के बल रेंगते हुए भी चलना पड़ता है; पहेल ही कहा जा चुका है। कुछ लोग बंदूक के घोड़

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दबे पाँव (अध्याय 6 )

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चीतल (स्वर्णमृग) हिरन वर्ग का पशु समझा जाता है। परंतु इसके सींग फंसेदार होते हैं। यह बहुत ही सुंदर होता है। इतना सुंदर कि कभी-कभी शिकारी इसके भयानक हानि पहुँचानेवाले कृत्यों को भूल जाता है। इसकी खाल प

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दबे पाँव (अध्याय 7)

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चीतलों के बाद मुझको पहला तेंदुआ सहज ही मिल गया। विंध्यखंड में जिसको 'तेंदुआ' कहते थे, उसकी छोटी छरेरी जाति को कहीं-कहीं 'चीता' का नाम दिया गया है। हिमाचल में शायद इसी को 'बाघ' कहते हैं। तेंदुए की खबर

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दबे पाँव (अध्याय 8)

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खेती को नुकसान पहुँचानेवाले जानवरों से सुअर चीतल और हिरन से कहीं आगे है। मनुष्यों के शरीर को चीरने-फाड़ने में वह तेंदुए से कम नहीं है। सुअर की खीसों से मारे जानेवालों की संख्या तेंदुए की दाढ़ों और नाख

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दबे पाँव (अध्याय 9)

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मैं संध्या के पहले ही बेतवा किनारे ढीवाले गड्ढे में जा बैठा। राइफल में पाँच कारतूस डाल लिए। कुछ नीचे रख लिए। रातभर बैठने के लिए आया था, इसलिए ओढ़ना-बिछौना गड्ढे में था। अँधेरा हुआ ही था कि एक छोटी सी

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दबे पाँव (अध्याय 10)

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एक बार जाड़ों में पहाड़ की हँकाई की ठहरी। लगान लग गए। मैं पहाड़ की तली में बैठ गया और शर्मा जी चोटी पर। बीच में अन्य मित्र लगान पर लग गए। हँकाई होते ही पहले साँभर हड़बड़ाकर निकल भागे। हँकाई में पहले

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दबे पाँव (अध्याय 11)

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साँभर और नीलगाय इसके नर को 'रोज' और मादा को 'गुरायँ' कहते हैं। खेती के ये काफी बड़े शत्रु हैं। बड़े शरीर और बड़े पेटवाले होने के कारण ये कृषि का काफी विध्वंस करते हैं। जब गाँव के ढोर चरते-चरते जंग मे

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दबे पाँव (अध्याय 12)

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एक समय था जब हिंदुस्थान में सिंह - गरदन पर बाल, अयालवाला - पाया जाता था। काठियावाड़ में सुनते हैं कि अब भी एक प्रकार का सिंह पाया जाता है। नाहर या शेर ने, जिसके बदन पर धारें होती हैं, अपना वंश बढ़ाकर

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दबे पाँव (अध्याय 13)

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अगली छुट्टी में मैं अपने मित्र शर्मा जी के साथ उसी गड्ढे में आ बैठा। चाँदनी नौ बजे के लगभग डूब गई। अँधेरे की कोई परवाह नहीं थी। एक से दो थे और टॉर्च भी साथ थी। जिस घाट पर हम लोग गड्ढे में बैठा करते थ

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दबे पाँव (अध्याय 14)

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मोर, नीलकंठ, तीतर, वनमुरगी, हरियल, चंडूल और लालमुनैया जंगल, पहाड़ और नदियों के सुनसान की शोभा हैं। इनके बोलों से - जब बगुलों और सारसों, पनडुब्बियों और कुरचों की पातें की पातें ऊँघते हुए पहाड़ों के ऊपर

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दबे पाँव (अध्याय 15 )

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मध्य प्रदेश कहलाने वाले विंध्यखंड में ऊँची-ऊँची पर्वत श्रेणियाँ, विशाल जंगल, विकट नदियाँ और झीलें हैं। शिकारी जानवरों की प्रचुरता में तो यह हिंदुस्थान की नाक है। किसी समय विंध्यखंड में हाथी और गैंडा भ

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दबे पाँव (अध्याय 16)

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एक बार विंध्यखंड के किसी सघन वन का भ्रमण करने के बाद फिर बार-बार भ्रमण की लालसा होती है। इसलिए सन् 1934 के लगभग मैं कुछ मित्रों के साथ मंडला गया। मंडला की रेलयात्रा स्वयं एक प्रमोद थी। पहाड़ी में होक

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दबे पाँव (अध्याय 17)

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जंगली कुत्ते का मैंने शिकार तो नहीं किया है, परंतु उसको देखा है। जिन्होंने इसके कृत्यों को देखा है वे इस छोटे से जानवर के नाम पर दाँतों तले उँगली दबाते हैं। रंग इसका गहरा बादामी होता है, इसलिए शायद इस

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दबे पाँव (अध्याय 18)

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भेड़िया आबादी के निकट के प्रत्येक जंगल में पाया जाता है। यह जोड़ी से तो रहता ही है, इसके झुंड भी देखे गए हैं। मैंने आठ-आठ, दस-दस तक का झुंड देखा है। भेड़िया बहुत चालाक होता है। भेड़-बकरियों और बच्छे-

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दबे पाँव (अध्याय 19)

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भेड़िये को हाँक-हूँककर गड़रिए की स्त्री प्यासी हो आई। भेड़-बकरियों को लेकर नदी किनारे पहुँची। पानी के पास गई। चुल्लुओं से हाथ मुँह धोया। थोड़ी दूर पर एक मगर पानी के ऊपर उतरा रहा था। वह मगर के स्वभाव क

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दबे पाँव (अध्याय 20)

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जंगल में शेर और तेंदुए से भी अधिक डरावने कुछ जंतु हैं - साँप, बिच्छू और पागल सियार। अजगर का तो कुछ डर नहीं है, क्योंकि वह काटने के लिए आक्रमण नहीं करता है, भक्षण के लिए पास आता है; और जहाँ तक मैंने द

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दबे पाँव (अध्याय 21)

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जंगलों में जितने भीतर और नगरों से जितनी दूर निकल जाएँ उतना ही रमणीक अनुभव प्राप्त होता है। पुराने नृत्य और गान तो जंगलों के बहुत भीतर ही सुरक्षित मिलते हैं। अमरकंटक की यात्रा में कोलों और गोंडों का क

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दबे पाँव (अध्याय 22)

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शिकार के साथ यदि हँसोड़ न हों और चुप भी रहना न जानते हों तो सारी यात्रा किरकिरी हो जाती है। मुझको सौभाग्यवश हँसोड़ या चुप्प साथी बहुधा मिले। संगीताचार्य आदिल खाँ वह अपने को कभी-कभी 'परोफेसर' कहते हैं

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दबे पाँव (अध्याय 23)

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शेर के संबंध में शिकारियों के अनुभव विविध प्रकार के हैं। सब लोगों का कहना है कि मनुष्यभक्षी शेर के सिवाय सब शेर मनुष्य की आवाज से डरते हैं। जब शेर की हँकाई होती है और ऐसे जंगल की हँकाई प्रायः की जाती

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दबे पाँव (अध्याय 24)

16 मई 2022
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लौटने पर किसी ने कहा तलवार पास रखनी चाहिए, किसी ने कहा छुरी। तलवार और छुरी का उपयोग शिकार में हो सकता है; परंतु मैं तलवार से छुरी को ज्यादा पसंद करूँगा और छुरी से भी बढ़कर लाठी को, और लाठी से बढ़कर क

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दबे पाँव (अध्याय 25)

16 मई 2022
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यदि गाँववालों को शिकारी की सहायता नहीं करनी होती है तो वे कह देते हैं कि जंगल में जानवर हैं तो जरूर, पर उनका एक जमाने से पता नहीं है। सहायता वे उन लोगों की नहीं करते, जिनसे उनको कोई भय या आशंका होती ह

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रिहाई तलवार की धार पर

16 मई 2022
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बंदा बैरागी और उसके सात सौ सिख साथियों के कत्ल का दिन आ गया। ये सब बंदा के साथ गुरदासपुर से कैद होकर आए थे। बंदा ने स्वयं खून की होली खेली थी, इसलिए उसके मन में किसी भी प्रकार की दया की आशा या प्रार्थ

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सच्चा धर्म

16 मई 2022
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हिंदू रियासतों में एक जमाने से शिया मुसलमान काफी संख्या में आ बसे थे; कोई नौकर थे, कोई कारीगर, हकीम-जर्राह इत्यादि। परंतु संख्या सुन्नी मुसलमानों की अधिक थी। इनमें भी उन्नाव दरवाजे की तरफ मेवाती और बड

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शाहजादे की अग्निपरीक्षा

16 मई 2022
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दिल्ली का बादशाह जहाँगीर सन 1605 में राजसिंहासन पर बैठा था। उसे दस-बारह साल राज करते-करते हो गए थे। जहाँगीर सूझ-बूझवाला व्यक्ति था; परंतु कभी-कभी दुष्टता का भी बरताव कर डालता था। उसमें सनक भी थी। जहा

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शेरशाह का न्याय

16 मई 2022
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वह नहा रही थी। ऋतु न गरमी की, न सर्दी की। इसलिए अपने आँगन में निश्चिंतता के साथ नहा रही थी। छोटे से घर की छोटी सी पौर के किवाड़ भीतर से बंद कर लिए थे। घर की दीवारें ऊँची नहीं थीं। घर में कोई था नहीं,

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शहीद इब्राहिमख़ाँ गार्दी

16 मई 2022
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'इस क़ैदी को शाह के सिपुर्द कीजिये ।' अहमदशाह अब्दाली के दूत ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से युद्ध की समाप्ति पर कहा । सन् १७६१ में पानीपत के युद्ध में मराठे हार गये थे। कई सरदारों के साथ मराठों का सरद

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पहले कौन?

16 मई 2022
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मेवाड़ और मारवाड़ (जोधपुर) में परस्पर बहुत वैर बढ़ गया था। बात लगभग तीन सौ वर्ष पुरानी है। मेवाड़ की सीमा पर जोधपुर राज्य का एक गढ़ था। गढ़ खँडहर हो गया है और खँडहरों का नाम क्या! जोधपुर अपनी आन पर थ

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लुटेरे का विवेक

16 मई 2022
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बात बारहवीं शताब्दी के अंत की है। मुहम्मद साम दिल्ली का सुल्तान था और भीम द्वितीय गुजरात का राजा। भीम ने लगभग इकसठ वर्ष राज किया। वह सिद्धांत पर चलता था, जिसे सत्रहवीं शताब्दी में छत्रसाल ने यों व्यवह

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इंद्र का अचूक हथियार

16 मई 2022
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तपस्वी की साधना की जो प्रतिक्रिया हुई, उससे इंद्र का इंद्रासन डगमगाने लगा। तपस्या भंग करने के उपकरण इंद्र के हाथ में थे ही। उसने प्रयुक्त किए। तपस्वी के पास मेनका अप्सरा अपने साज-बाज के साथ जा पहुँची।

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वृंदावनलाल के जीवन के प्रेरक प्रसंग

16 मई 2022
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सच्चा इतिहास मैं लिखूँगा मनुष्य के जीवन में एकाध घटना ऐसी गुजरती है, जो संवेदनशील मन को झनझना देती है। जिस घटना ने वृंदावनलाल वर्मा के मन को झकझोरकर उन्हें इतिहास लिखने के लिए प्रेरित किया, वह घटना उ

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