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दबे पाँव (अध्याय 15 )

16 मई 2022

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मध्य प्रदेश कहलाने वाले विंध्यखंड में ऊँची-ऊँची पर्वत श्रेणियाँ, विशाल जंगल, विकट नदियाँ और झीलें हैं। शिकारी जानवरों की प्रचुरता में तो यह हिंदुस्थान की नाक है। किसी समय विंध्यखंड में हाथी और गैंडा भी प्राप्य थे। विष्णुगुप्त चाणक्य ने तो इनका जिक्र किया ही है। अकबर के युग में भी ये प्राप्य थे और आज से लगभग सौ वर्ष पहले तक इनकी उपस्थिति के प्रमाण मिलते हैं। अब तो इनका शिकार खेलने के लिए हमारे यहाँ के साधनसंपन्न शिकारियों को हिमालय की तराई और असम के जंगलों में जाना पड़ता है।

अब भी विंध्यखंड के जंगलों में जो कुछ है, कुतूहल के लिए बहुत है। बंगाल का नाहर अपने बल-विक्रम और सौंदर्य के लिए विख्यात है; परंतु मंडला, बालाघाट और बिलासपुर के जंगलों में उससे भी बड़े शेर पाए जाते हैं। शिकार संबंधी एक पुरानी पुस्तक में मैंने बारह फीट की लंबाईवाले शेरों का हाल पढ़ा है। अब भी दस-ग्यारह फीट की लंबाई वाले दुष्प्राप्य नहीं हैं। बड़े-बड़े भालू, अरे भैंसे, काले रंग के तेंदुए और जंगली कुत्ते इन जंगलों में बहुतायत से पाए जाते हैं।

बिलासपुर जिले में एक साधन के सहारे हम लोग कई मित्र एक दिन जा पहुँचे। रात को छकड़े किराए पर किए। दूसरे दिन, 'नानबीरा' नामक गाँव में पहुँचना था। सवेरा होने पर मार्ग में 'सरगबुंदिया' नाम का गाँव मिला। इस गाँव का नाम सरगबुंदिया - स्वर्गबिंदु क्यों पड़ा, मुझको इस बात की खोज करने का मोह हुआ। गाँव में दो पोखर थे। दोनों में लोग नहाते थे और उसका पानी भी पीते ते। आस पास पानी का और कोई ठिकाना न था। कम-से-कम, गरमियों की ऋतु में, मुझको नहीं दिखलाई पड़ा। गाँव खासा था और पानी के केवल दो पोखर। मैंने सोचा, स्वर्ग की ये दो बूँदें इस गाँव को सरगबुंदिया की संज्ञा प्रदान कर रही हैं।

सरगबुंदिया में अपना भोजन और उसका पानी पीकर हम लोग संध्या के पहले नानबीरा पहुँच गए। जंगलों, पहाड़ों से घिरा हुआ नानबीरा बड़ा गाँव है। वहाँ एक स्कूल भी है। ईस्टर की छुट्टियों के कारण स्कूल बंद था। हम लोगों के पास बिलासपुर जिला बोर्ड के एक कर्मचारी - श्री मानिकम् थे। उनकी कृपा से स्कूल में ठहरने की सुविधा मिल गई। जब हम लोग स्कूल के अहाते में पहुँचे, कुछ लड़के खेल रहे थे। लड़के संकोच में आकर वहाँ से खिसकने को हुए। मैंने रोक लिया। थोड़ी सी बातचीत की।

मैंने पूछा, 'तुम लोगों ने शेर देखा है?'

उत्तर मिला, 'हाँ।'

'भालू, तेंदुआ, भेड़िया?'

'सब देखे हैं।'

'तुम लोग मांस खाते हो?'

'हाँ।'

'किस-किस का?'

इस पर लड़के एक-दूसरे का मुँह ताककर हँसने लगे।

मैंने अनुरोध किया, 'सकुचो मत। बतलाओ?'

एक लड़का बोला, 'ये लोग चूहा और कौआ भी भी खाते हैं। हम लोग नहीं खाते।'

'चूहा और कौआ!' मुझको आश्चर्य हुआ।

मैंने प्रश्न किया, 'तुम लोग कौन, जो चूहा और कौआ नहीं खाते?'

'मुसलमान।' उस लड़के ने उत्तर दिया।

'और ये लोग कौन हैं, जिन्हें चूहा और कौआ भी हजम है?' मैंने पूछा।

लड़के ने हँसकर उन लोगों की जाति बतलाई।

मैंने कहा, 'तब तो तुम्हारे घरों में भी चूहे और जंगलों में कौए होंगे ही नहीं।'

बाकी लड़के भी वार्तालाप में भाग लेने लगे।

एक हिंदु बालक बोला, 'चूहे तो बहुत हैं, पर जंगलों में कौए बहुत नहीं हैं।'

मुझे झाँसी जिले के कौओं की याद आ गई। कुआर के महीने में नगरों और कस्बों में तो इनकी काँव-काँव के मारे नाको दम आ ही जाता है, जंगलों में इनके झुंड़ों के मारे संध्या बेसुरे कोलाहाल के मारे बेचैन सी हो जाती है। एक झुंड में ही सैकड़ों-हजारों। बगीचों के फलों और खेतों के अनाज को नष्ट करने में ये तोतों को भी मात दे देते हैं। मैंने सोचा, या तो नानबीरा हमारे यहाँ पहुँच जाएँ या हमारे यहाँ के कौए नानबीरा की ओर पधार जाएँ तो निष्कृत मिले। परंतु इसस प्रकार तो समस्या हल होती नहीं।

रात के जागे और दिन के थके थे, इसलिए रात भर मजे में सोए।

सवेरे लगभग सौ गोंड, कोल और बैगा हम लोगों के पास आ गए। शिकार उनका जीवन और मनोरंजन है। खेती कम और जंगल अधिक सहारा है।

उनके केश सुंदर और कंघी किए हुए। शरीर दृढ़ मांसल, रग-पुट्ठे वाले- और चिकने। छोटी धोती, लँगोट या जाँघिया कसे हुए। किसी किसी के हाथ में चाँदी के चूड़े। अधिकांश तीर कमान कसे हुए। बहुतेरों के कंधे पर तेज धारवाली कुल्हाड़ी - वे उसे 'टँगिया' कहते थे। कुछ के हाथ में लाठियाँ और छोटे बरछे। उनमें से थोड़े से ढोल और ताशे भी लिए थे।

उनके बीच में एक मटका रखा हुआ था। मटके में महुए की शराब थी। वे थोड़ी-थोड़ी चुल्लुओं पी रहे थे। मेरे मन में आया, इनको एक व्याख्यान देकर सुधार की भावना जाग्रत करूँ। तुरंत भीतर मैंने कुछ टटोला। मैं व्याख्यान देनेवाला कौन? यदि इनको अधिक भोजन, अधिक पैसे, अधिक शिक्षा, अधिक कपड़े, दवा-दारू और अच्छी दिशा दे सकूँ तो इनका देशवासी कहलाने की पात्रता रख सकता हूँ, नहीं तो ये जैसे हैं मुझसे अच्छे हैं। चेहरे पर सहज मुस्कान है; भाव इनका सीधा, सरल, निर्भीकता से भरा हुआ है। हम इनसे कुछ ले सकते हैं, दे इन्हें क्या सकते हैं?

सुधार की भावना को ताक में रखकर मैं उनके बीच में पहुँच गया। जाग्रत मानव के सब हर्ष, समग्र ओज उनमें मौजूद थे- कठिनाइयों और पीड़ाओं, विपत्तियों और दुःखों से लड़ जाने का मनोबल उनमें प्रतीत होता है।

शहर के अधकचरे, अधबुझे हम लोग श्रद्धा के मारे झुक गए।

उनके अगुआ से शिकार के कार्यक्रम पर बातचीत होने लगी। उसने हाँके के लिए एक विशेष पहाड़ को चुना। आशा की गई कि शेर और भालू मिलेंगे।

हम लोग पहाड़ की ओर चल दिए। लगान लगानेवाले ने बंदूकवालों को यथास्थान खड़ा कर दिया। मैं अपने एक मित्र के साथ ऐसे स्थान पर खड़ा किया गया जहाँ महीने-डेढ़ महीने पहले एक अँगरेज स्त्री को शेर ने हाँके से निकलकर चबा डाला था। जगह-जगह पेड़ों पर मचान बँधी हुई थी। शेर के शिकार का अनुभव नहीं था, इसलिए हम लोग मचान पर नहीं गए, नीचे ही खड़े रहे। पहाड़ की तली में थे। पहाड़ पर से हँकाई होती आ रही थी।

ढोल, ताशों और कई प्रकार के वाद्यों का तुमुल नाद होता चला आ रहा था। हम लोग प्रतीक्षा की धुकधुकी में खड़े थे अपने-अपने स्थानों पर। मेरे अन्य मित्रों की भी यही अवस्था रही होगी।

इस हँकाई में एक सुअर के सिवाय और कुछ नहीं निकला। यह सुअर हमारे लगान के सामने उँचाई पर से निकला। 'धाँय-धाँय!' हम दोनों ने एक साथ बंदूकें चलाईं। सुअर के अगले जोड़ पर दोनों गोलियाँ पड़ी। दोनों मे केवल दो इंच का अतर था। हाँकेवाले उत्सुकता के साथ हम लोगों के पास आए। सुअर को पाकर वे बहुत प्रसन्न हुए।

दूसरी हँकाई के लिए आध मील दूरी पर एक और पहाड़ चुना गया। अब की बार हम लोग अत्यंत असावधानी के साथ खड़े हो गए। किसी किसी ने तो केवल पेड़ की ओट ले ली। हम दोनों ने आम पेड़ के पत्ते तोड़कर आड़ बना ली ऐसी कि उसको खरहा भी तोड़ डालता।

हँकाई होने के थोड़े ही समय बाद एक और बंदूक चली, फिर एक और। सामने से दो बड़े रीछ आते हुए दिखलाई पड़े। मेरी बगल में कुछ फासले पर एक आया। मेरे साथी मित्र की पहली गोली से घायल होकर वह लौटा और वे स्थान छोड़कर उसके पीछे दौड़े। उन्होंने भागते हुए रीछ पर गोलियों की वर्षा कर दी। बारह-तेरह चलाईं; परंतु लगी एक भी नहीं। रीछ परेशान होकर एक पेड़ पर चढ़ा।

वह सीधा ही चढ़ा, बड़ी फुरती के साथ। लोगों का खयाल है कि रीछ उलटा चढ़ता है। यह गलत है। वह उलटा भी चढ़ सकता होगा, परंतु साधारणतया चढ़ता सीधा ही है।

मेरे मित्र ने एक गोली और चलाई। रीछ नीचे आ गिरा।

फिर एक हँकाई और हुई। दूसरे दिन भी हँकाईयाँ हुई; परंतु मिला कुछ नहीं। हाँ रीछों के कुछ अद्भुत किस्से जरूर सुनने को मिले। उनमें से एक विलक्षण था।

एक अँगरेज शेर के शिकार के लिए आया। मचान पर अकेला जा बैठा। नीचे किसी मरे हुए जानवर का गायरा रख लिया था। कुछ रात बीतने पर गायरे के पास एक रीछ आया। रीछ ने गायरे को सूँघा था कि झाड़ी के पीछे छिपे हुए शेर ने रीछ पर तड़प लगाई। रीछ बलबलाता हुआ भागा और पेड़ पर चढ़ गया और मचान की ओर बढ़ा, जहाँ अँगरेज शिकारी बैठा हुआ था। मारे डर के अँगरेज की जो हालत हुई होगी उसका तो अनुमान किया जा सकता है, परंतु ऐसे अप्रत्याशित स्थान पर आदमी को बैठे देखकर रीछ की जो दशा हुई उसका प्रयत्क्ष फल यह हुआ कि वह हड़बड़ाकर नीचे जा गिरा। शेर ने उसको समाप्त कर दिया। ऊपर से जो गोली पड़ी तो शेर उससे समाप्त हो गया।

जंगलों में शेर इत्यादि की जो कहानियाँ सुनने को मिलती हैं। उनमें से अधिकांश का आधार सच होता है; परंतु कुछ नितांत कल्पनाप्रसूत होती हैं।

जंगल के रहनेवाले लोगों में जितने भालू के नाखूनों से घायल होते हैं उतने और किसी से नहीं। इसके नाखून पंजे की गंद्दी से बाहर निकले रहते हैं और बहुत लंबे होते हैं। यह आसानी के साथ पालतु कर लिया जाता है; परंतु जंगली अवस्था में काफी दुःखदायक होता है। शरीर का छोटा, परंतु बाल बड़े-बड़े होने के कारण विहंगम दिखलाई पड़ता है। जड़ों और फलों का प्रेमी होता है। पेड़ों पर चढ़कर आराम के साथ शहद तोड़ खाता है। मधुमक्खियाँ इसका कुछ नहीं बिगाड़ पातीं, क्योंकि काटने के प्रयत्नों में उसके बालों में ही उलझ जाना पड़ता है। किसी की खाल पर जीभ को कसकर फेरे तो खून निकल आवे। कुछ लोगों की कल्पना है कि यह हाथों में लपेटकर, आदमी से चिपटकर थूक से अँधा कर देता है और उसका कचूमर निकाल देता है। इसके थूक में ऐसा कोई विष नहीं होता है, और क्रोध में सभी पशु मुँह से झाग फेंक उठते हैं। चिपट जरूर यह जाता है और नाखूनों से बेतरह चीड़-फाड़ करता है। इसको सुनाई कम पड़ता है। आँख के ऊपर बालों के लटकने के कारण देख भी अच्छी तरह नहीं पाता। जाड़ों में झोरों और लंबी घास वाले मैदानों में पड़ा रहता है। जहाँ कोई असावधान मनुष्य पास तक पहुँचा कि यह जागा और चिपट पड़ा। मनुष्य ने देख नहीं पाया। और भालू ने दूर से ही आहट नहीं ले पाई, फल भालू का घोर और विकट आलिंगन। यदि उस आलिंगन से प्राण न निकले तो कई सप्ताह अस्पताल का सेवन तो करना ही पड़ता है।

गाँवों और नगरों में जिस रीछ का पीछा बच्चे हा हा, हू-हू नहीं अघाते और वह बिलकुल नहीं चिढ़ता, जंगल का तोहफा होते हुए भी प्रकृत्ति में अपने भाईबंदों से बिलकुल अलग पड़ जाता है। इतने सीधे जानवर की ऐसी निंदा! पर वह है यथार्थ।

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रचनाएँ
वृंदावन लाल वर्मा की रोचक कहानियाँ
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इन्हे बचपन से ही बुन्देलखंड की ऐतिहासिक विरासत में रूचि थी। जब ये 19 साल के किशोर थे तो इन्होंने अपनी पहली रचना ‘महात्मा बुद्ध का जीवन चरित’(1908) लिख डाली थी। उनके लिखे नाटक ‘सेनापति दल’(1909) में अभिव्यक्त विद्रोही तेवरों को देखते हुये तत्कालीन अंग्रजी सरकार ने इसी प्रतिबंधित कर दिया था। ये प्रेम को जीवन का सबसे आवश्यक अंग मानने के साथ जुनून की सीमा तक सामाजिक कार्य करने वाले साधक भी थे। इन्होंने वकालत व्यवसाय के माध्यम से कमायी समस्त पूंजी समाज के कमजोर वर्ग के नागरिकों को पुर्नवासित करने के कार्य में लगा दी। इन्होंने मुख्य रूप से ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास, नाटक, लेख आदि कुछ निबंध एवं लधुकथायें भी लिखी हैं।
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मेंढकी का ब्याह

16 मई 2022
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उन ज़िलों में त्राहि-त्राहि मच रही थी। आषाढ़ चला गया, सावन निकलने को हुआ, परन्तु पानी की बूँद नहीं। आकाश में बादल कभी-कभी छिटपुट होकर इधर-उधर बह जाते। आशा थी कि पानी बरसेगा, क्योंकि गाँववालों ने कुछ पत

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खजुराहो की दो मूर्तियाँ

16 मई 2022
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चंद्रमा थोड़ा ही चढ़ा था। बरगद की पेड़ की छाया में चाँदनी आँखमिचौली खेल रही थी। किरणें उन श्रमिकों की देहों पर बरगद के पत्तों से उलझती-बिदकती सी पड़ रहीं थीं। कोई लेटा था, कोई बैठा था, कोई अधलेटा। खजु

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जहाँगीर की सनक

16 मई 2022
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'इंशा! इंशा!!' बादशाह जहाँगीर ने इधर-उधर देखकर भरे दरबार में जरा ऊँचे स्वर में अपने भतीजे को पुकारा। अलमबरदार ने बड़े अदब के साथ बतलाया कि शाहजादा शिकार खेलने चले गए हैं। 'शाहजादा - इंशा के लिए! जहाँग

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शरणागत

16 मई 2022
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रज्जब कसाई अपना रोजगार करके ललितपुर लौट रहा था। साथ में स्त्री थी, और गाँठ में दो सौ-तीन सौ की बड़ी रकम। मार्ग बीहड़ था, और सुनसान। ललितपुर काफी दूर था, बसेरा कहीं न कहीं लेना ही था; इसलिए उसने मड़पुर

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थोड़ी दूर और

16 मई 2022
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जब महमूद गजनवी (सन 1025-26 में) सोमनाथ का मंदिर नष्ट-भ्रष्ट करके लौटा तब उसे कच्छ से होकर जाना पड़ा। गुजरात का राजा भीमदेव उसका पीछा किए चल रहा था। ज्यों-ज्यों करके महमूद गजनवी कच्छ के पार हुआ। वह सिं

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रक्षा

16 मई 2022
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मुहम्मदशाह औरंगजेब का परपोता और बहादुरशाह का पोता था। 1719 में सितंबर में गद्दी पर बैठा था। सवाई राजा जयसिंह के प्रयत्न पर मुहम्मदशाह ने गद्दी पर बैठने के छह वर्ष बाद जजिया मनसूख कर दिया। निजाम वजीर ह

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रामशास्त्री की निस्पृहता

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दो सौ वर्ष के लगभग हो गए, जब पूना में रामशास्त्री नाम के एक महापुरुष थे। न महल, न नौकर-चाकर, न कोई संपत्ति। फिर भी इस युग के कितने बड़े मानव! भारतीय संस्कृति की परंपरा में जो उत्कृष्ट समझे जाते रहे है

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दबे पाँव (अध्याय 1)

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कुछ समय हुआ एक दिन काशी से रायकृष्ण दास और चिरगाँव से मैथिलीशरण गुप्त साथ-साथ झाँसी आए। उनको देवगढ़ की मूर्ति कला देखनी थी - और मुझको दिखलानी थी। देवगढ़ पहुँचने के लिए झाँसी-बंबई लाइन पर जालौन स्टेशन

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दबे पाँव (अध्याय 2 )

16 मई 2022
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हिंदी में कुछ-न-कुछ लिखने की लत पुरानी है। सन् 1909 में छपा हुआ मेरा एक नाटक सरकार को नापसंद आया। जब्त हो गया और मैं पुलिस के रगड़े में आया। परंतु रंगमंच पर अभिनय करने पर अभिनय करने का शौक था और नाटक

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दबे पाँव (अध्याय 3)

16 मई 2022
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चिंकारे का शिकार करछाल के शिकार से भी अधिक कष्टसाध्य है। चिंकारा बहुत ही सावधान जानवर होता है। उसे संकट का संदेह हुआ कि फुसकारी मारी और छलाँग मारकर गया। हिरन संकट से छुटकारा पाने के लिए दूर भागकर दम ल

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दबे पाँव (अध्याय 4)

16 मई 2022
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एक जगह जमकर बैठने का शिकार काफी कष्टदायक होता है। झाँखड़ या पत्थरों के चारों ओर ओट बना लेते हैं और उसके भीतर जानवरों को अगोट पर शिकारी बैठ जाते हैं-ऐसे ठौर पर, जहाँ होकर जानवर प्रायः निकलते हों। उनके

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दबे पाँव (अध्याय 5)

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हिरन वर्ग के जानवरों के लिए ढूका या ढुकाई का शिकार भी अच्छा समझा जाता है। इस शिकार में काफी परिश्रम करना पड़ता है। पेट के बल रेंगते हुए भी चलना पड़ता है; पहेल ही कहा जा चुका है। कुछ लोग बंदूक के घोड़

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दबे पाँव (अध्याय 6 )

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चीतल (स्वर्णमृग) हिरन वर्ग का पशु समझा जाता है। परंतु इसके सींग फंसेदार होते हैं। यह बहुत ही सुंदर होता है। इतना सुंदर कि कभी-कभी शिकारी इसके भयानक हानि पहुँचानेवाले कृत्यों को भूल जाता है। इसकी खाल प

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दबे पाँव (अध्याय 7)

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चीतलों के बाद मुझको पहला तेंदुआ सहज ही मिल गया। विंध्यखंड में जिसको 'तेंदुआ' कहते थे, उसकी छोटी छरेरी जाति को कहीं-कहीं 'चीता' का नाम दिया गया है। हिमाचल में शायद इसी को 'बाघ' कहते हैं। तेंदुए की खबर

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दबे पाँव (अध्याय 8)

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खेती को नुकसान पहुँचानेवाले जानवरों से सुअर चीतल और हिरन से कहीं आगे है। मनुष्यों के शरीर को चीरने-फाड़ने में वह तेंदुए से कम नहीं है। सुअर की खीसों से मारे जानेवालों की संख्या तेंदुए की दाढ़ों और नाख

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दबे पाँव (अध्याय 9)

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मैं संध्या के पहले ही बेतवा किनारे ढीवाले गड्ढे में जा बैठा। राइफल में पाँच कारतूस डाल लिए। कुछ नीचे रख लिए। रातभर बैठने के लिए आया था, इसलिए ओढ़ना-बिछौना गड्ढे में था। अँधेरा हुआ ही था कि एक छोटी सी

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दबे पाँव (अध्याय 10)

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एक बार जाड़ों में पहाड़ की हँकाई की ठहरी। लगान लग गए। मैं पहाड़ की तली में बैठ गया और शर्मा जी चोटी पर। बीच में अन्य मित्र लगान पर लग गए। हँकाई होते ही पहले साँभर हड़बड़ाकर निकल भागे। हँकाई में पहले

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दबे पाँव (अध्याय 11)

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साँभर और नीलगाय इसके नर को 'रोज' और मादा को 'गुरायँ' कहते हैं। खेती के ये काफी बड़े शत्रु हैं। बड़े शरीर और बड़े पेटवाले होने के कारण ये कृषि का काफी विध्वंस करते हैं। जब गाँव के ढोर चरते-चरते जंग मे

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दबे पाँव (अध्याय 12)

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एक समय था जब हिंदुस्थान में सिंह - गरदन पर बाल, अयालवाला - पाया जाता था। काठियावाड़ में सुनते हैं कि अब भी एक प्रकार का सिंह पाया जाता है। नाहर या शेर ने, जिसके बदन पर धारें होती हैं, अपना वंश बढ़ाकर

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दबे पाँव (अध्याय 13)

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अगली छुट्टी में मैं अपने मित्र शर्मा जी के साथ उसी गड्ढे में आ बैठा। चाँदनी नौ बजे के लगभग डूब गई। अँधेरे की कोई परवाह नहीं थी। एक से दो थे और टॉर्च भी साथ थी। जिस घाट पर हम लोग गड्ढे में बैठा करते थ

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दबे पाँव (अध्याय 14)

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मोर, नीलकंठ, तीतर, वनमुरगी, हरियल, चंडूल और लालमुनैया जंगल, पहाड़ और नदियों के सुनसान की शोभा हैं। इनके बोलों से - जब बगुलों और सारसों, पनडुब्बियों और कुरचों की पातें की पातें ऊँघते हुए पहाड़ों के ऊपर

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दबे पाँव (अध्याय 15 )

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मध्य प्रदेश कहलाने वाले विंध्यखंड में ऊँची-ऊँची पर्वत श्रेणियाँ, विशाल जंगल, विकट नदियाँ और झीलें हैं। शिकारी जानवरों की प्रचुरता में तो यह हिंदुस्थान की नाक है। किसी समय विंध्यखंड में हाथी और गैंडा भ

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दबे पाँव (अध्याय 16)

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एक बार विंध्यखंड के किसी सघन वन का भ्रमण करने के बाद फिर बार-बार भ्रमण की लालसा होती है। इसलिए सन् 1934 के लगभग मैं कुछ मित्रों के साथ मंडला गया। मंडला की रेलयात्रा स्वयं एक प्रमोद थी। पहाड़ी में होक

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दबे पाँव (अध्याय 17)

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जंगली कुत्ते का मैंने शिकार तो नहीं किया है, परंतु उसको देखा है। जिन्होंने इसके कृत्यों को देखा है वे इस छोटे से जानवर के नाम पर दाँतों तले उँगली दबाते हैं। रंग इसका गहरा बादामी होता है, इसलिए शायद इस

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दबे पाँव (अध्याय 18)

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भेड़िया आबादी के निकट के प्रत्येक जंगल में पाया जाता है। यह जोड़ी से तो रहता ही है, इसके झुंड भी देखे गए हैं। मैंने आठ-आठ, दस-दस तक का झुंड देखा है। भेड़िया बहुत चालाक होता है। भेड़-बकरियों और बच्छे-

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दबे पाँव (अध्याय 19)

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भेड़िये को हाँक-हूँककर गड़रिए की स्त्री प्यासी हो आई। भेड़-बकरियों को लेकर नदी किनारे पहुँची। पानी के पास गई। चुल्लुओं से हाथ मुँह धोया। थोड़ी दूर पर एक मगर पानी के ऊपर उतरा रहा था। वह मगर के स्वभाव क

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दबे पाँव (अध्याय 20)

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जंगल में शेर और तेंदुए से भी अधिक डरावने कुछ जंतु हैं - साँप, बिच्छू और पागल सियार। अजगर का तो कुछ डर नहीं है, क्योंकि वह काटने के लिए आक्रमण नहीं करता है, भक्षण के लिए पास आता है; और जहाँ तक मैंने द

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दबे पाँव (अध्याय 21)

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जंगलों में जितने भीतर और नगरों से जितनी दूर निकल जाएँ उतना ही रमणीक अनुभव प्राप्त होता है। पुराने नृत्य और गान तो जंगलों के बहुत भीतर ही सुरक्षित मिलते हैं। अमरकंटक की यात्रा में कोलों और गोंडों का क

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दबे पाँव (अध्याय 22)

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शिकार के साथ यदि हँसोड़ न हों और चुप भी रहना न जानते हों तो सारी यात्रा किरकिरी हो जाती है। मुझको सौभाग्यवश हँसोड़ या चुप्प साथी बहुधा मिले। संगीताचार्य आदिल खाँ वह अपने को कभी-कभी 'परोफेसर' कहते हैं

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दबे पाँव (अध्याय 23)

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शेर के संबंध में शिकारियों के अनुभव विविध प्रकार के हैं। सब लोगों का कहना है कि मनुष्यभक्षी शेर के सिवाय सब शेर मनुष्य की आवाज से डरते हैं। जब शेर की हँकाई होती है और ऐसे जंगल की हँकाई प्रायः की जाती

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दबे पाँव (अध्याय 24)

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लौटने पर किसी ने कहा तलवार पास रखनी चाहिए, किसी ने कहा छुरी। तलवार और छुरी का उपयोग शिकार में हो सकता है; परंतु मैं तलवार से छुरी को ज्यादा पसंद करूँगा और छुरी से भी बढ़कर लाठी को, और लाठी से बढ़कर क

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दबे पाँव (अध्याय 25)

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यदि गाँववालों को शिकारी की सहायता नहीं करनी होती है तो वे कह देते हैं कि जंगल में जानवर हैं तो जरूर, पर उनका एक जमाने से पता नहीं है। सहायता वे उन लोगों की नहीं करते, जिनसे उनको कोई भय या आशंका होती ह

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रिहाई तलवार की धार पर

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बंदा बैरागी और उसके सात सौ सिख साथियों के कत्ल का दिन आ गया। ये सब बंदा के साथ गुरदासपुर से कैद होकर आए थे। बंदा ने स्वयं खून की होली खेली थी, इसलिए उसके मन में किसी भी प्रकार की दया की आशा या प्रार्थ

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सच्चा धर्म

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हिंदू रियासतों में एक जमाने से शिया मुसलमान काफी संख्या में आ बसे थे; कोई नौकर थे, कोई कारीगर, हकीम-जर्राह इत्यादि। परंतु संख्या सुन्नी मुसलमानों की अधिक थी। इनमें भी उन्नाव दरवाजे की तरफ मेवाती और बड

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शाहजादे की अग्निपरीक्षा

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दिल्ली का बादशाह जहाँगीर सन 1605 में राजसिंहासन पर बैठा था। उसे दस-बारह साल राज करते-करते हो गए थे। जहाँगीर सूझ-बूझवाला व्यक्ति था; परंतु कभी-कभी दुष्टता का भी बरताव कर डालता था। उसमें सनक भी थी। जहा

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शेरशाह का न्याय

16 मई 2022
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वह नहा रही थी। ऋतु न गरमी की, न सर्दी की। इसलिए अपने आँगन में निश्चिंतता के साथ नहा रही थी। छोटे से घर की छोटी सी पौर के किवाड़ भीतर से बंद कर लिए थे। घर की दीवारें ऊँची नहीं थीं। घर में कोई था नहीं,

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शहीद इब्राहिमख़ाँ गार्दी

16 मई 2022
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'इस क़ैदी को शाह के सिपुर्द कीजिये ।' अहमदशाह अब्दाली के दूत ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से युद्ध की समाप्ति पर कहा । सन् १७६१ में पानीपत के युद्ध में मराठे हार गये थे। कई सरदारों के साथ मराठों का सरद

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पहले कौन?

16 मई 2022
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मेवाड़ और मारवाड़ (जोधपुर) में परस्पर बहुत वैर बढ़ गया था। बात लगभग तीन सौ वर्ष पुरानी है। मेवाड़ की सीमा पर जोधपुर राज्य का एक गढ़ था। गढ़ खँडहर हो गया है और खँडहरों का नाम क्या! जोधपुर अपनी आन पर थ

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लुटेरे का विवेक

16 मई 2022
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बात बारहवीं शताब्दी के अंत की है। मुहम्मद साम दिल्ली का सुल्तान था और भीम द्वितीय गुजरात का राजा। भीम ने लगभग इकसठ वर्ष राज किया। वह सिद्धांत पर चलता था, जिसे सत्रहवीं शताब्दी में छत्रसाल ने यों व्यवह

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इंद्र का अचूक हथियार

16 मई 2022
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तपस्वी की साधना की जो प्रतिक्रिया हुई, उससे इंद्र का इंद्रासन डगमगाने लगा। तपस्या भंग करने के उपकरण इंद्र के हाथ में थे ही। उसने प्रयुक्त किए। तपस्वी के पास मेनका अप्सरा अपने साज-बाज के साथ जा पहुँची।

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वृंदावनलाल के जीवन के प्रेरक प्रसंग

16 मई 2022
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सच्चा इतिहास मैं लिखूँगा मनुष्य के जीवन में एकाध घटना ऐसी गुजरती है, जो संवेदनशील मन को झनझना देती है। जिस घटना ने वृंदावनलाल वर्मा के मन को झकझोरकर उन्हें इतिहास लिखने के लिए प्रेरित किया, वह घटना उ

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