shabd-logo

रिहाई तलवार की धार पर

16 मई 2022

14 बार देखा गया 14

बंदा बैरागी और उसके सात सौ सिख साथियों के कत्ल का दिन आ गया। ये सब बंदा के साथ गुरदासपुर से कैद होकर आए थे। बंदा ने स्वयं खून की होली खेली थी, इसलिए उसके मन में किसी भी प्रकार की दया की आशा या प्रार्थना न थी। वह और उसके सिख साथी मरने में रत्ती भर भी झिझक अनुभव नहीं कर रहे थे।

बादशाह फर्रुखसियर की आज्ञा नित्य सौ के सिर उड़ाए जाने की थी। आश्चर्य यह था कि मारे जाने की घड़ी की ये सब हर्ष के साथ प्रतीक्षा करते थे और पहले मारे जाने के लिए एक-दूसरे से लड़-लड़ पड़ते।

जल्लाद से हर एक सिख कहता, 'अरे ओ मुक्तिदाता, पहले मुझको मार!'

वहीं सिकलीगर अपनी शान पर जल्लादों की तलवारों पर धार तेज करता जाता था और वे सिख उसको देख-देखकर हँसते थे - मानों कोई खिलौना हो। प्राण बख्शे जाने का उनको वचन दिया गया मुसलमान हो जाने की शर्त; परंतु उनमें से एक भी राजी न हुआ।

सन 1716 का चैत ही लगा था। वसंत का मध्य था। दिन में धूप कुछ तेज हो गई थी। परंतु रात को अभी जाड़े ने न छोड़ा था। उस भयंकर, अँधेरे, गंदे, बंदीगृह में भी वसंत के फूलों की कुछ सुगंध लुक-छिपकर पहुँच रही थी। जिन सौ का सवेरे वध होना था, वे उस थोड़ी सी सुगंधि और मन के मद में मस्त थे। ऊँघते-ऊँघते सो जाते थे और किसी उन्माद में जाग पड़ते थे। कैदखाने के उस वीभत्स अंधकार में भी उनको कोई उजाला, अपना प्रकाश दिखलाई पड़ जाता था।

इनमें से एक चौदह वर्ष का बालक था। वह उँघते-उँघते मुसकराया और मुसकराते-मुसकराते सो गया।

आधी रात के पहले कैदखाने के दरोगा ने उसको धीरे से जगाया।

बालक ने आँखें मलने के पहले कहा, 'तैयार हूँ, ले चलो गुरु के पास।'

दरोगा धीरे से बोला, 'गुरु के पास नहीं, माँ के पास। तुम्हारी माँ आई है। वह तुम्हारे लिए मिठाई लाई है। पेट भरकर खाओ।'

अब लड़के ने आँखों को मीचा। अंधकार में उसने देखने का प्रयत्न किया। पूछा, 'माँ आई! मेरी माँ?'

उत्तर मिला, 'हाँ, तुम्हारी माँ। मिठाई लाई है, उस ओर चलकर खाओ। यहाँ तुम्हारे साथी सो रहे हैं और अँधेरा भी बहुत है। दुर्गंध अलग।'

बालक खड़ा हो गया। उसने प्रश्न किया, 'तुम कौन हो?'

'दरोगा'

'मेरी माँ मुझ अकेले के लिए मिठाई लाई है?'

'हाँ'

'और इन सबको आज खाने को कुछ भी नहीं मिला है!'

'इनसे कोई मतलब नहीं।'

'हूँ।'

लड़का बेखटके लेट गया। बोला, 'कह देना माँ से कि सवेरे खाऊँगा मिठाई। अभी सोने से अवकाश नहीं है।'

दरोगा को क्रोध आया। उसके जी में आया कि इस अशिष्ट छोकरे को एक लात मार दूँ, परतु उसकी जेब गरम कर दी गई थी, इसलिए पैर नहीं उठा।

दरोगा ने कहा, 'ठीक भी है। जब जल्लाद की तलवार के घाट तुम्हारे ये सब साथी उतर जाएँ तब अकेले में पेट भरके खाना।'

दरोगा हँसा। लड़के ने करवट लेकर अनुरोध किया, 'हाँ-हाँ, उसी समय दिलवाइएगा मिठाई, अभी तो सोने दीजिए। जाइए। जाइए।'

दरोगा चला गया।

सवेरे सौ कैदियों का वध होना था; परंतु अभी जल्लाद की घड़ी नहीं आई थी।

एक स्त्री कैदखाने के बड़े फाटक पर आई। वह बगल में एक पोटली दाबे थी, जिसमें कुछ मिठाई थी। फाटक पर दरोगा मिला। दरोगा ने शिष्ट बरताव किया, क्योंकि उसकी जेब में स्वर्णखंडों के अतिरिक्त कुतुबुलमुल्क वजीर का एक फरमान भी पहुँच चुका था। कुतुबुलमुल्क की जागीर का दीवान रतनचंद नाम का एक हिंदू था। वह स्त्री रतनचंद की नातेदारी थी और उसकी थराई-विनती पर रतनचंद ने वजीर से वह फरमान निकलवा लिया था। स्त्री ने उस फरमान को दरोगा के पास रात में ही भिजवा दिया था।

यह फरमान उस बालक की रिहाई का था और यह स्त्री उसकी माँ थी।

दरोगा ने कहा, 'रात को उसने खाने से इनकार कर दिया। चलो, मैं उसको छोड़े देता हूँ, बाहर आकर खूब खिला-पिला लेना।'

स्त्री बोली, 'वह बिलकुल निर्दोष है। निरा बच्चा है। अभी उसके दूध के भी दाँत नहीं गिरे हैं।'

हिंसा की प्रेरणा से दरोगा के मुँह से निकला, 'पर है वह बुरों की संगति में।' फिर अपने को नियंत्रित करके बोला, 'जो कुछ भी हो, उसने इन लोगों की सुहबत में पाप किए हों या न किए हों, पर अब तो उसके छुटकारे का हुक्म ही हो गया है।'

'मेरा बच्चा बहुत सीधा है। वह किसी भी क्रूर काम को नहीं कर सकता। आपने तो देखा ही होगा - कितना भोला है, बात तक नहीं करना जानता!'

'खैर, मुझे इन बातों से कोई निस्बत नहीं। पहले आँगन में चलो, मैं उसको छोड़ देता हूँ। अपने साथ लेती जाना।'

'बड़ी दया होगी। जल्दी कर दीजिए उसका छुटकारा। बहुत भूखा होगा। और फिर... और फिर...'

'और फिर क्या?'

'और फिर जल्लाद आते होंगे। जब उसके साथी मारे जाएँगे तब देखकर घबरा जाएगा और सह न सकेगा। न जाने उस पर क्या प्रभाव पड़े। कहीं अचेत न हो जाए, पागल न हो जाए? जल्दी कर दीजिए उद्धार उसका। मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ।'

दरोगा उस स्त्री को लेकर भीतर गया। जिन सौ बंदियों का वध होना था, उनमें काफी चहल-पहल थी। विनोदमग्न थे, हर्षप्रमत्त - मानो कोई मेला लग रहा हो। जैसे किसी बारात में जा रहे हों।

दरोगा लड़के को कैदखाने के दूसरे आँगन में ले आया। वहीं उसने उस स्त्री को बुला लिया। वह स्त्री उसके पीछे आकर खड़ी हो गई। मुँह पर घूँघट था।

दरोगा ने जेब से फरमान निकालकर लड़के से कहा, 'तुम्हारी रिहाई का हुक्म आ गया है।'

लड़का सुंदर था। उसकी काली आँखों में प्रकाश था। मुँह कुछ सूखा हुआ; क्योंकि पिछले दिन सिवाय पानी के उसको कुछ न मिला था।

आँखों के प्रकाश में पागलों जैसा उल्लास था। लड़का ठिठोली के स्वर में बोला, 'रिहाई का हुक्म कागज पर, या तलवार की धार पर!'

दरोगा ने कहा, 'तलवार की धार पर तो मलिककुलमौत (यमराज) का हुक्म लिखा है, जिसको लेकर जल्लाद तुम्हारे साथियों की रूह के छुटकारे के लिए आ गया। तुमको वजीरुलमुल्क ने छोड़ दिया है। जाओ इस औरत के साथ।'

लड़का छाती पर हाथ कसकर बोला, 'यह स्त्री कौन है?'

स्त्री ने घूँघट उघाड़ा। लड़के ने उसको देखकर एक उठी आह को दबाया और मुँह फेर लिया।

स्त्री ने कहा, 'तुम्हारी विधवा माँ, मेरे लाल!'

लड़के का चेहरा तमतमा गया। उसने स्त्री से आँख मिलाई। गले में आई हुई किसी अटक को दूर किया और बहुत धीमे स्वर में बोला, 'तुम मेरी कोई नहीं हो।'

फिर कड़ककर दरोगा से कहा, 'ले जाओ इसे यहाँ से! यह मेरी माँ नहीं है। मेरी माँ होती तो मुझे स्वर्ग जाने की असीस देती, न कि प्राण बचाने के लिए ऐरों-गैरों से भीख माँगती फिरती। ले जाओ इसको यहाँ से और बुला लो जल्लाद को, जिसकी तलवार की धार पर स्वर्ग का संदेश लिखा है।'

स्त्री काँप गई। उसकी आँखों से आँसू झर पड़े और गला रुद्ध हो गया। लड़का आँसू न देख सका। उसने पीठ फेर ली।

दरोगा की आँखें क्रोध से जल उठीं। स्त्री अचेत होकर भरभरा पड़ी। लड़का भीतर कैदखाने में चला गया। कैदखाने में धँसने से पहले वह एक बार मुड़ा। उसकी आँखों के एक कोने में एक मोती-सा झलक आया था। दो-तीन ऊँगलियों से उसको तोड़ लिया, फिर भीतर चला गया। कुछ उदास।

परंतु जब जल्लाद की तलवार उसकी नन्हीं-सी गरदन पर पड़ी, तब वह हँस रहा था और उसकी आँखें आकाश में किसी को देख रही थीं!

41
रचनाएँ
वृंदावन लाल वर्मा की रोचक कहानियाँ
5.0
इन्हे बचपन से ही बुन्देलखंड की ऐतिहासिक विरासत में रूचि थी। जब ये 19 साल के किशोर थे तो इन्होंने अपनी पहली रचना ‘महात्मा बुद्ध का जीवन चरित’(1908) लिख डाली थी। उनके लिखे नाटक ‘सेनापति दल’(1909) में अभिव्यक्त विद्रोही तेवरों को देखते हुये तत्कालीन अंग्रजी सरकार ने इसी प्रतिबंधित कर दिया था। ये प्रेम को जीवन का सबसे आवश्यक अंग मानने के साथ जुनून की सीमा तक सामाजिक कार्य करने वाले साधक भी थे। इन्होंने वकालत व्यवसाय के माध्यम से कमायी समस्त पूंजी समाज के कमजोर वर्ग के नागरिकों को पुर्नवासित करने के कार्य में लगा दी। इन्होंने मुख्य रूप से ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास, नाटक, लेख आदि कुछ निबंध एवं लधुकथायें भी लिखी हैं।
1

मेंढकी का ब्याह

16 मई 2022
4
0
0

उन ज़िलों में त्राहि-त्राहि मच रही थी। आषाढ़ चला गया, सावन निकलने को हुआ, परन्तु पानी की बूँद नहीं। आकाश में बादल कभी-कभी छिटपुट होकर इधर-उधर बह जाते। आशा थी कि पानी बरसेगा, क्योंकि गाँववालों ने कुछ पत

2

खजुराहो की दो मूर्तियाँ

16 मई 2022
3
1
1

चंद्रमा थोड़ा ही चढ़ा था। बरगद की पेड़ की छाया में चाँदनी आँखमिचौली खेल रही थी। किरणें उन श्रमिकों की देहों पर बरगद के पत्तों से उलझती-बिदकती सी पड़ रहीं थीं। कोई लेटा था, कोई बैठा था, कोई अधलेटा। खजु

3

जहाँगीर की सनक

16 मई 2022
1
0
0

'इंशा! इंशा!!' बादशाह जहाँगीर ने इधर-उधर देखकर भरे दरबार में जरा ऊँचे स्वर में अपने भतीजे को पुकारा। अलमबरदार ने बड़े अदब के साथ बतलाया कि शाहजादा शिकार खेलने चले गए हैं। 'शाहजादा - इंशा के लिए! जहाँग

4

शरणागत

16 मई 2022
1
0
0

रज्जब कसाई अपना रोजगार करके ललितपुर लौट रहा था। साथ में स्त्री थी, और गाँठ में दो सौ-तीन सौ की बड़ी रकम। मार्ग बीहड़ था, और सुनसान। ललितपुर काफी दूर था, बसेरा कहीं न कहीं लेना ही था; इसलिए उसने मड़पुर

5

थोड़ी दूर और

16 मई 2022
0
0
0

जब महमूद गजनवी (सन 1025-26 में) सोमनाथ का मंदिर नष्ट-भ्रष्ट करके लौटा तब उसे कच्छ से होकर जाना पड़ा। गुजरात का राजा भीमदेव उसका पीछा किए चल रहा था। ज्यों-ज्यों करके महमूद गजनवी कच्छ के पार हुआ। वह सिं

6

रक्षा

16 मई 2022
0
0
0

मुहम्मदशाह औरंगजेब का परपोता और बहादुरशाह का पोता था। 1719 में सितंबर में गद्दी पर बैठा था। सवाई राजा जयसिंह के प्रयत्न पर मुहम्मदशाह ने गद्दी पर बैठने के छह वर्ष बाद जजिया मनसूख कर दिया। निजाम वजीर ह

7

रामशास्त्री की निस्पृहता

16 मई 2022
0
0
0

दो सौ वर्ष के लगभग हो गए, जब पूना में रामशास्त्री नाम के एक महापुरुष थे। न महल, न नौकर-चाकर, न कोई संपत्ति। फिर भी इस युग के कितने बड़े मानव! भारतीय संस्कृति की परंपरा में जो उत्कृष्ट समझे जाते रहे है

8

दबे पाँव (अध्याय 1)

16 मई 2022
0
0
0

कुछ समय हुआ एक दिन काशी से रायकृष्ण दास और चिरगाँव से मैथिलीशरण गुप्त साथ-साथ झाँसी आए। उनको देवगढ़ की मूर्ति कला देखनी थी - और मुझको दिखलानी थी। देवगढ़ पहुँचने के लिए झाँसी-बंबई लाइन पर जालौन स्टेशन

9

दबे पाँव (अध्याय 2 )

16 मई 2022
0
0
0

हिंदी में कुछ-न-कुछ लिखने की लत पुरानी है। सन् 1909 में छपा हुआ मेरा एक नाटक सरकार को नापसंद आया। जब्त हो गया और मैं पुलिस के रगड़े में आया। परंतु रंगमंच पर अभिनय करने पर अभिनय करने का शौक था और नाटक

10

दबे पाँव (अध्याय 3)

16 मई 2022
0
0
0

चिंकारे का शिकार करछाल के शिकार से भी अधिक कष्टसाध्य है। चिंकारा बहुत ही सावधान जानवर होता है। उसे संकट का संदेह हुआ कि फुसकारी मारी और छलाँग मारकर गया। हिरन संकट से छुटकारा पाने के लिए दूर भागकर दम ल

11

दबे पाँव (अध्याय 4)

16 मई 2022
0
0
0

एक जगह जमकर बैठने का शिकार काफी कष्टदायक होता है। झाँखड़ या पत्थरों के चारों ओर ओट बना लेते हैं और उसके भीतर जानवरों को अगोट पर शिकारी बैठ जाते हैं-ऐसे ठौर पर, जहाँ होकर जानवर प्रायः निकलते हों। उनके

12

दबे पाँव (अध्याय 5)

16 मई 2022
1
0
0

हिरन वर्ग के जानवरों के लिए ढूका या ढुकाई का शिकार भी अच्छा समझा जाता है। इस शिकार में काफी परिश्रम करना पड़ता है। पेट के बल रेंगते हुए भी चलना पड़ता है; पहेल ही कहा जा चुका है। कुछ लोग बंदूक के घोड़

13

दबे पाँव (अध्याय 6 )

16 मई 2022
0
0
0

चीतल (स्वर्णमृग) हिरन वर्ग का पशु समझा जाता है। परंतु इसके सींग फंसेदार होते हैं। यह बहुत ही सुंदर होता है। इतना सुंदर कि कभी-कभी शिकारी इसके भयानक हानि पहुँचानेवाले कृत्यों को भूल जाता है। इसकी खाल प

14

दबे पाँव (अध्याय 7)

16 मई 2022
0
0
0

चीतलों के बाद मुझको पहला तेंदुआ सहज ही मिल गया। विंध्यखंड में जिसको 'तेंदुआ' कहते थे, उसकी छोटी छरेरी जाति को कहीं-कहीं 'चीता' का नाम दिया गया है। हिमाचल में शायद इसी को 'बाघ' कहते हैं। तेंदुए की खबर

15

दबे पाँव (अध्याय 8)

16 मई 2022
0
0
0

खेती को नुकसान पहुँचानेवाले जानवरों से सुअर चीतल और हिरन से कहीं आगे है। मनुष्यों के शरीर को चीरने-फाड़ने में वह तेंदुए से कम नहीं है। सुअर की खीसों से मारे जानेवालों की संख्या तेंदुए की दाढ़ों और नाख

16

दबे पाँव (अध्याय 9)

16 मई 2022
0
0
0

मैं संध्या के पहले ही बेतवा किनारे ढीवाले गड्ढे में जा बैठा। राइफल में पाँच कारतूस डाल लिए। कुछ नीचे रख लिए। रातभर बैठने के लिए आया था, इसलिए ओढ़ना-बिछौना गड्ढे में था। अँधेरा हुआ ही था कि एक छोटी सी

17

दबे पाँव (अध्याय 10)

16 मई 2022
0
0
0

एक बार जाड़ों में पहाड़ की हँकाई की ठहरी। लगान लग गए। मैं पहाड़ की तली में बैठ गया और शर्मा जी चोटी पर। बीच में अन्य मित्र लगान पर लग गए। हँकाई होते ही पहले साँभर हड़बड़ाकर निकल भागे। हँकाई में पहले

18

दबे पाँव (अध्याय 11)

16 मई 2022
0
0
0

साँभर और नीलगाय इसके नर को 'रोज' और मादा को 'गुरायँ' कहते हैं। खेती के ये काफी बड़े शत्रु हैं। बड़े शरीर और बड़े पेटवाले होने के कारण ये कृषि का काफी विध्वंस करते हैं। जब गाँव के ढोर चरते-चरते जंग मे

19

दबे पाँव (अध्याय 12)

16 मई 2022
0
0
0

एक समय था जब हिंदुस्थान में सिंह - गरदन पर बाल, अयालवाला - पाया जाता था। काठियावाड़ में सुनते हैं कि अब भी एक प्रकार का सिंह पाया जाता है। नाहर या शेर ने, जिसके बदन पर धारें होती हैं, अपना वंश बढ़ाकर

20

दबे पाँव (अध्याय 13)

16 मई 2022
0
0
0

अगली छुट्टी में मैं अपने मित्र शर्मा जी के साथ उसी गड्ढे में आ बैठा। चाँदनी नौ बजे के लगभग डूब गई। अँधेरे की कोई परवाह नहीं थी। एक से दो थे और टॉर्च भी साथ थी। जिस घाट पर हम लोग गड्ढे में बैठा करते थ

21

दबे पाँव (अध्याय 14)

16 मई 2022
0
0
0

मोर, नीलकंठ, तीतर, वनमुरगी, हरियल, चंडूल और लालमुनैया जंगल, पहाड़ और नदियों के सुनसान की शोभा हैं। इनके बोलों से - जब बगुलों और सारसों, पनडुब्बियों और कुरचों की पातें की पातें ऊँघते हुए पहाड़ों के ऊपर

22

दबे पाँव (अध्याय 15 )

16 मई 2022
0
0
0

मध्य प्रदेश कहलाने वाले विंध्यखंड में ऊँची-ऊँची पर्वत श्रेणियाँ, विशाल जंगल, विकट नदियाँ और झीलें हैं। शिकारी जानवरों की प्रचुरता में तो यह हिंदुस्थान की नाक है। किसी समय विंध्यखंड में हाथी और गैंडा भ

23

दबे पाँव (अध्याय 16)

16 मई 2022
0
0
0

एक बार विंध्यखंड के किसी सघन वन का भ्रमण करने के बाद फिर बार-बार भ्रमण की लालसा होती है। इसलिए सन् 1934 के लगभग मैं कुछ मित्रों के साथ मंडला गया। मंडला की रेलयात्रा स्वयं एक प्रमोद थी। पहाड़ी में होक

24

दबे पाँव (अध्याय 17)

16 मई 2022
1
0
0

जंगली कुत्ते का मैंने शिकार तो नहीं किया है, परंतु उसको देखा है। जिन्होंने इसके कृत्यों को देखा है वे इस छोटे से जानवर के नाम पर दाँतों तले उँगली दबाते हैं। रंग इसका गहरा बादामी होता है, इसलिए शायद इस

25

दबे पाँव (अध्याय 18)

16 मई 2022
0
0
0

भेड़िया आबादी के निकट के प्रत्येक जंगल में पाया जाता है। यह जोड़ी से तो रहता ही है, इसके झुंड भी देखे गए हैं। मैंने आठ-आठ, दस-दस तक का झुंड देखा है। भेड़िया बहुत चालाक होता है। भेड़-बकरियों और बच्छे-

26

दबे पाँव (अध्याय 19)

16 मई 2022
0
0
0

भेड़िये को हाँक-हूँककर गड़रिए की स्त्री प्यासी हो आई। भेड़-बकरियों को लेकर नदी किनारे पहुँची। पानी के पास गई। चुल्लुओं से हाथ मुँह धोया। थोड़ी दूर पर एक मगर पानी के ऊपर उतरा रहा था। वह मगर के स्वभाव क

27

दबे पाँव (अध्याय 20)

16 मई 2022
0
0
0

जंगल में शेर और तेंदुए से भी अधिक डरावने कुछ जंतु हैं - साँप, बिच्छू और पागल सियार। अजगर का तो कुछ डर नहीं है, क्योंकि वह काटने के लिए आक्रमण नहीं करता है, भक्षण के लिए पास आता है; और जहाँ तक मैंने द

28

दबे पाँव (अध्याय 21)

16 मई 2022
0
0
0

जंगलों में जितने भीतर और नगरों से जितनी दूर निकल जाएँ उतना ही रमणीक अनुभव प्राप्त होता है। पुराने नृत्य और गान तो जंगलों के बहुत भीतर ही सुरक्षित मिलते हैं। अमरकंटक की यात्रा में कोलों और गोंडों का क

29

दबे पाँव (अध्याय 22)

16 मई 2022
0
0
0

शिकार के साथ यदि हँसोड़ न हों और चुप भी रहना न जानते हों तो सारी यात्रा किरकिरी हो जाती है। मुझको सौभाग्यवश हँसोड़ या चुप्प साथी बहुधा मिले। संगीताचार्य आदिल खाँ वह अपने को कभी-कभी 'परोफेसर' कहते हैं

30

दबे पाँव (अध्याय 23)

16 मई 2022
0
0
0

शेर के संबंध में शिकारियों के अनुभव विविध प्रकार के हैं। सब लोगों का कहना है कि मनुष्यभक्षी शेर के सिवाय सब शेर मनुष्य की आवाज से डरते हैं। जब शेर की हँकाई होती है और ऐसे जंगल की हँकाई प्रायः की जाती

31

दबे पाँव (अध्याय 24)

16 मई 2022
0
0
0

लौटने पर किसी ने कहा तलवार पास रखनी चाहिए, किसी ने कहा छुरी। तलवार और छुरी का उपयोग शिकार में हो सकता है; परंतु मैं तलवार से छुरी को ज्यादा पसंद करूँगा और छुरी से भी बढ़कर लाठी को, और लाठी से बढ़कर क

32

दबे पाँव (अध्याय 25)

16 मई 2022
0
0
0

यदि गाँववालों को शिकारी की सहायता नहीं करनी होती है तो वे कह देते हैं कि जंगल में जानवर हैं तो जरूर, पर उनका एक जमाने से पता नहीं है। सहायता वे उन लोगों की नहीं करते, जिनसे उनको कोई भय या आशंका होती ह

33

रिहाई तलवार की धार पर

16 मई 2022
0
0
0

बंदा बैरागी और उसके सात सौ सिख साथियों के कत्ल का दिन आ गया। ये सब बंदा के साथ गुरदासपुर से कैद होकर आए थे। बंदा ने स्वयं खून की होली खेली थी, इसलिए उसके मन में किसी भी प्रकार की दया की आशा या प्रार्थ

34

सच्चा धर्म

16 मई 2022
0
0
0

हिंदू रियासतों में एक जमाने से शिया मुसलमान काफी संख्या में आ बसे थे; कोई नौकर थे, कोई कारीगर, हकीम-जर्राह इत्यादि। परंतु संख्या सुन्नी मुसलमानों की अधिक थी। इनमें भी उन्नाव दरवाजे की तरफ मेवाती और बड

35

शाहजादे की अग्निपरीक्षा

16 मई 2022
0
0
0

दिल्ली का बादशाह जहाँगीर सन 1605 में राजसिंहासन पर बैठा था। उसे दस-बारह साल राज करते-करते हो गए थे। जहाँगीर सूझ-बूझवाला व्यक्ति था; परंतु कभी-कभी दुष्टता का भी बरताव कर डालता था। उसमें सनक भी थी। जहा

36

शेरशाह का न्याय

16 मई 2022
0
0
0

वह नहा रही थी। ऋतु न गरमी की, न सर्दी की। इसलिए अपने आँगन में निश्चिंतता के साथ नहा रही थी। छोटे से घर की छोटी सी पौर के किवाड़ भीतर से बंद कर लिए थे। घर की दीवारें ऊँची नहीं थीं। घर में कोई था नहीं,

37

शहीद इब्राहिमख़ाँ गार्दी

16 मई 2022
0
0
0

'इस क़ैदी को शाह के सिपुर्द कीजिये ।' अहमदशाह अब्दाली के दूत ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से युद्ध की समाप्ति पर कहा । सन् १७६१ में पानीपत के युद्ध में मराठे हार गये थे। कई सरदारों के साथ मराठों का सरद

38

पहले कौन?

16 मई 2022
0
0
0

मेवाड़ और मारवाड़ (जोधपुर) में परस्पर बहुत वैर बढ़ गया था। बात लगभग तीन सौ वर्ष पुरानी है। मेवाड़ की सीमा पर जोधपुर राज्य का एक गढ़ था। गढ़ खँडहर हो गया है और खँडहरों का नाम क्या! जोधपुर अपनी आन पर थ

39

लुटेरे का विवेक

16 मई 2022
0
0
0

बात बारहवीं शताब्दी के अंत की है। मुहम्मद साम दिल्ली का सुल्तान था और भीम द्वितीय गुजरात का राजा। भीम ने लगभग इकसठ वर्ष राज किया। वह सिद्धांत पर चलता था, जिसे सत्रहवीं शताब्दी में छत्रसाल ने यों व्यवह

40

इंद्र का अचूक हथियार

16 मई 2022
0
0
0

तपस्वी की साधना की जो प्रतिक्रिया हुई, उससे इंद्र का इंद्रासन डगमगाने लगा। तपस्या भंग करने के उपकरण इंद्र के हाथ में थे ही। उसने प्रयुक्त किए। तपस्वी के पास मेनका अप्सरा अपने साज-बाज के साथ जा पहुँची।

41

वृंदावनलाल के जीवन के प्रेरक प्रसंग

16 मई 2022
0
0
0

सच्चा इतिहास मैं लिखूँगा मनुष्य के जीवन में एकाध घटना ऐसी गुजरती है, जो संवेदनशील मन को झनझना देती है। जिस घटना ने वृंदावनलाल वर्मा के मन को झकझोरकर उन्हें इतिहास लिखने के लिए प्रेरित किया, वह घटना उ

---

किताब पढ़िए