जंगल में शेर और तेंदुए से भी अधिक डरावने कुछ जंतु हैं - साँप, बिच्छू और पागल सियार।
अजगर का तो कुछ डर नहीं है, क्योंकि वह काटने के लिए आक्रमण नहीं करता है, भक्षण के लिए पास आता है; और जहाँ तक मैंने देखा और सुना है, मनुष्य से डरता है।
हिरन तक को निगल जानेवाले अजगर देखे गए हैं। चिरगाँव से पाँच मील दूर बेतवा किनारे एक अजगर ने हिरन को अपनी पूँछ की फटकार से पटका और लिपटकर उसके शरीर को चरमरा डाला; फिर उसको निगलना शुरू किया। पास ही किसानों के खेत थे। वे रखवाली कर रहे थे। रात का समय था। हिरन की पुकार सुनकर लाठी और कुल्हाड़ी लेकर दौड़े। उन्होंने समझा कि तेंदुए या भेड़िये ने हिरन को दबाया है। जब पास पहुँचे तब देखा, अजगर हिरन को दबाए हुए है और निगले जा रहा है।
उन्होंने लाठियों और कुल्हाड़ियों से अजगर को मार डाला और हिरन को छुटा लिया। परंतु हिरन भी मर चुका था। उन्होंने हिरन को छील-छीलकर पकाया, खाया। सबके सब बीमार पड़ गए। उनको हफ्तों दस्त लगे थे। परंतु कहा नहीं जा सकता कि अजगर के निगलने के कारण हिरन विषाक्त हो गया था या वे लोग किसी और कारण से बीमार पड़े थे।
काला, गढ़ैंत और उर्दिया साँप भयंकर विषधर हैं। उर्दिया साँप बूँदों और छपकोंदार होता है। देखने में सुंदर, परंतु काटने पर बहुत ही घातक विषवाला। यह काले से काफी बड़ा होता है। काले और गढ़ैंत को सभी जानते हैं। इन सबसे जंगल में भ्रमण करनेवालों, विशेषकर गड्ढों में बैठनेवालों को सावधान रहना चाहिए। अच्छा यह है कि मनुष्यों से डरते हैं; परंतु ये शिकार के गड्ढों में आ सकते हैं और आ जाते हैं। बैठने के पहले एक छोटे से डंडे से आस पास के स्थल को ठोंक-बजा लेने से रक्षा सुलभ हो जाती है।
बिच्छुओं से भी बचने के लिए यह प्रयोग अच्छा है। मैंने जंगलों में छह इंच लंबे तक बिच्छू देखे हैं। रंग काला, जिनको देखकर रोमांच हो आवे।
बरसात के आरंभ में हरे रंग के छोटे साँप दिखलाई पड़ते हैं। सुनते हैं कि ये भी बहुत विषैले होते हैं।
चलने-फिरने के लिए, और शिकार में वैसे भी, टाँगों मे टकोरे चढ़ा लेना बहुत अच्छा है।
साँपों को देखकर छोड़ देना दूसरे मनुष्यों या पालतू जानवरों के साथ घात करने के बराबर है।
पागल सियार भी जंगल की एक काफी बड़ी व्याधि है। पागल सियार के बराबर निर्भीक और ढीठ और कोई जंतु नहीं। इसको तो गाँववाले यथाशक्य, तुरंत ही नष्ट कर डालते हैं; क्योंकि वे उसके संहारकारी परिणाम को जानते हैं। पागल सियार जिस मनुष्य, ढोर तथा कुत्ते को काट खाता है, उसका बचना कठिन हो जाता है। पागल सियार का काटा हुआ मनुष्य यदि समय पर अस्पताली इलाज पा गया तो बच जाता है; परंतु ढोरों की बड़ी मुश्किल पड़ती है, और कुत्ते तो पागल सियार से पाए हुए विष को बाँटते से फिरत हैं।
हमारे यहाँ लोमड़ी का शिकार कोई नहीं करता और न वह खेतो को कोई बड़ा नुकसान ही पहुँचाती है। इसकी बोली रात के सन्नाटे को जब विचलित करती है तब ऐसा लगता है कि वह किसी बड़े जानवर के आने की सूचना दे रही है।अध्याय 20
जंगल में शेर और तेंदुए से भी अधिक डरावने कुछ जंतु हैं - साँप, बिच्छू और पागल सियार।
अजगर का तो कुछ डर नहीं है, क्योंकि वह काटने के लिए आक्रमण नहीं करता है, भक्षण के लिए पास आता है; और जहाँ तक मैंने देखा और सुना है, मनुष्य से डरता है।
हिरन तक को निगल जानेवाले अजगर देखे गए हैं। चिरगाँव से पाँच मील दूर बेतवा किनारे एक अजगर ने हिरन को अपनी पूँछ की फटकार से पटका और लिपटकर उसके शरीर को चरमरा डाला; फिर उसको निगलना शुरू किया। पास ही किसानों के खेत थे। वे रखवाली कर रहे थे। रात का समय था। हिरन की पुकार सुनकर लाठी और कुल्हाड़ी लेकर दौड़े। उन्होंने समझा कि तेंदुए या भेड़िये ने हिरन को दबाया है। जब पास पहुँचे तब देखा, अजगर हिरन को दबाए हुए है और निगले जा रहा है।
उन्होंने लाठियों और कुल्हाड़ियों से अजगर को मार डाला और हिरन को छुटा लिया। परंतु हिरन भी मर चुका था। उन्होंने हिरन को छील-छीलकर पकाया, खाया। सबके सब बीमार पड़ गए। उनको हफ्तों दस्त लगे थे। परंतु कहा नहीं जा सकता कि अजगर के निगलने के कारण हिरन विषाक्त हो गया था या वे लोग किसी और कारण से बीमार पड़े थे।
काला, गढ़ैंत और उर्दिया साँप भयंकर विषधर हैं। उर्दिया साँप बूँदों और छपकोंदार होता है। देखने में सुंदर, परंतु काटने पर बहुत ही घातक विषवाला। यह काले से काफी बड़ा होता है। काले और गढ़ैंत को सभी जानते हैं। इन सबसे जंगल में भ्रमण करनेवालों, विशेषकर गड्ढों में बैठनेवालों को सावधान रहना चाहिए। अच्छा यह है कि मनुष्यों से डरते हैं; परंतु ये शिकार के गड्ढों में आ सकते हैं और आ जाते हैं। बैठने के पहले एक छोटे से डंडे से आस पास के स्थल को ठोंक-बजा लेने से रक्षा सुलभ हो जाती है।
बिच्छुओं से भी बचने के लिए यह प्रयोग अच्छा है। मैंने जंगलों में छह इंच लंबे तक बिच्छू देखे हैं। रंग काला, जिनको देखकर रोमांच हो आवे।
बरसात के आरंभ में हरे रंग के छोटे साँप दिखलाई पड़ते हैं। सुनते हैं कि ये भी बहुत विषैले होते हैं।
चलने-फिरने के लिए, और शिकार में वैसे भी, टाँगों मे टकोरे चढ़ा लेना बहुत अच्छा है।
साँपों को देखकर छोड़ देना दूसरे मनुष्यों या पालतू जानवरों के साथ घात करने के बराबर है।
पागल सियार भी जंगल की एक काफी बड़ी व्याधि है। पागल सियार के बराबर निर्भीक और ढीठ और कोई जंतु नहीं। इसको तो गाँववाले यथाशक्य, तुरंत ही नष्ट कर डालते हैं; क्योंकि वे उसके संहारकारी परिणाम को जानते हैं। पागल सियार जिस मनुष्य, ढोर तथा कुत्ते को काट खाता है, उसका बचना कठिन हो जाता है। पागल सियार का काटा हुआ मनुष्य यदि समय पर अस्पताली इलाज पा गया तो बच जाता है; परंतु ढोरों की बड़ी मुश्किल पड़ती है, और कुत्ते तो पागल सियार से पाए हुए विष को बाँटते से फिरत हैं।
हमारे यहाँ लोमड़ी का शिकार कोई नहीं करता और न वह खेतो को कोई बड़ा नुकसान ही पहुँचाती है। इसकी बोली रात के सन्नाटे को जब विचलित करती है तब ऐसा लगता है कि वह किसी बड़े जानवर के आने की सूचना दे रही है।अध्याय 20
जंगल में शेर और तेंदुए से भी अधिक डरावने कुछ जंतु हैं - साँप, बिच्छू और पागल सियार।
अजगर का तो कुछ डर नहीं है, क्योंकि वह काटने के लिए आक्रमण नहीं करता है, भक्षण के लिए पास आता है; और जहाँ तक मैंने देखा और सुना है, मनुष्य से डरता है।
हिरन तक को निगल जानेवाले अजगर देखे गए हैं। चिरगाँव से पाँच मील दूर बेतवा किनारे एक अजगर ने हिरन को अपनी पूँछ की फटकार से पटका और लिपटकर उसके शरीर को चरमरा डाला; फिर उसको निगलना शुरू किया। पास ही किसानों के खेत थे। वे रखवाली कर रहे थे। रात का समय था। हिरन की पुकार सुनकर लाठी और कुल्हाड़ी लेकर दौड़े। उन्होंने समझा कि तेंदुए या भेड़िये ने हिरन को दबाया है। जब पास पहुँचे तब देखा, अजगर हिरन को दबाए हुए है और निगले जा रहा है।
उन्होंने लाठियों और कुल्हाड़ियों से अजगर को मार डाला और हिरन को छुटा लिया। परंतु हिरन भी मर चुका था। उन्होंने हिरन को छील-छीलकर पकाया, खाया। सबके सब बीमार पड़ गए। उनको हफ्तों दस्त लगे थे। परंतु कहा नहीं जा सकता कि अजगर के निगलने के कारण हिरन विषाक्त हो गया था या वे लोग किसी और कारण से बीमार पड़े थे।
काला, गढ़ैंत और उर्दिया साँप भयंकर विषधर हैं। उर्दिया साँप बूँदों और छपकोंदार होता है। देखने में सुंदर, परंतु काटने पर बहुत ही घातक विषवाला। यह काले से काफी बड़ा होता है। काले और गढ़ैंत को सभी जानते हैं। इन सबसे जंगल में भ्रमण करनेवालों, विशेषकर गड्ढों में बैठनेवालों को सावधान रहना चाहिए। अच्छा यह है कि मनुष्यों से डरते हैं; परंतु ये शिकार के गड्ढों में आ सकते हैं और आ जाते हैं। बैठने के पहले एक छोटे से डंडे से आस पास के स्थल को ठोंक-बजा लेने से रक्षा सुलभ हो जाती है।
बिच्छुओं से भी बचने के लिए यह प्रयोग अच्छा है। मैंने जंगलों में छह इंच लंबे तक बिच्छू देखे हैं। रंग काला, जिनको देखकर रोमांच हो आवे।
बरसात के आरंभ में हरे रंग के छोटे साँप दिखलाई पड़ते हैं। सुनते हैं कि ये भी बहुत विषैले होते हैं।
चलने-फिरने के लिए, और शिकार में वैसे भी, टाँगों मे टकोरे चढ़ा लेना बहुत अच्छा है।
साँपों को देखकर छोड़ देना दूसरे मनुष्यों या पालतू जानवरों के साथ घात करने के बराबर है।
पागल सियार भी जंगल की एक काफी बड़ी व्याधि है। पागल सियार के बराबर निर्भीक और ढीठ और कोई जंतु नहीं। इसको तो गाँववाले यथाशक्य, तुरंत ही नष्ट कर डालते हैं; क्योंकि वे उसके संहारकारी परिणाम को जानते हैं। पागल सियार जिस मनुष्य, ढोर तथा कुत्ते को काट खाता है, उसका बचना कठिन हो जाता है। पागल सियार का काटा हुआ मनुष्य यदि समय पर अस्पताली इलाज पा गया तो बच जाता है; परंतु ढोरों की बड़ी मुश्किल पड़ती है, और कुत्ते तो पागल सियार से पाए हुए विष को बाँटते से फिरत हैं।
हमारे यहाँ लोमड़ी का शिकार कोई नहीं करता और न वह खेतो को कोई बड़ा नुकसान ही पहुँचाती है। इसकी बोली रात के सन्नाटे को जब विचलित करती है तब ऐसा लगता है कि वह किसी बड़े जानवर के आने की सूचना दे रही है।