shabd-logo

जहाँगीर की सनक

16 मई 2022

22 बार देखा गया 22

'इंशा! इंशा!!' बादशाह जहाँगीर ने इधर-उधर देखकर भरे दरबार में जरा ऊँचे स्वर में अपने भतीजे को पुकारा। अलमबरदार ने बड़े अदब के साथ बतलाया कि शाहजादा शिकार खेलने चले गए हैं। 'शाहजादा - इंशा के लिए! जहाँगीर को यह शब्द अच्छा नहीं लगा, भले ही वह उसका भतीजा था। शाहंशाह का पुत्र तो न था! जहाँगीर ने अपने क्षोभ को उस समय पी लिया।'

थोड़ी देर दरबार का काम चलता रहा। इतने में हरकारे ने विनय की, 'ईरान का एक बड़े घरानेवाला पदप्रार्थी अपने कुछ मित्रों समेत आया है।'

पदप्रार्थी को बुलाया गया।

ईरानी चेहरे-मोहरे और डीलडौल का साफ-सुथरा एवं आकर्षक व्यक्ति था। परंपरा के अनुसार उसने जहाँगीर का मुजरा किया। जहाँगीर ने स्नेह के साथ उसे अपने तख्त के निकट बुलाया। ईरानी ने अपना अहोभाग्य समझा। तख्त के पास जाकर कार्निश की ओर सिर झुकाकर खड़ा हो गया।

'मैं बहुत खुश हुआ। मेरे प्यारे भाई मजे में हैं न?' जहाँगीर ने ईरान के शाह के संबंध में पूछा। कितना मनमुटाव दोनों में हो, एक-दूसरे को भाई कहते थे।

वैसे ही सिर झुकाए ईरानी ने कोमल स्वर में उत्तर दिया, 'जहाँपनाह की मेहरबानी जिस पर बरसती रहे, वह क्यों न मजे में रहेगा!'

जहाँगीर अपनी जड़ाऊ कमरपेटी पर हाथ रखे था। हाथ वहाँ से हटा। उसकी चुटकी में कुछ था। ईरानी ने नहीं देखा।

'म्याँ, सिर ऊँचा करो। मैं ईरानियों की जवाँमर्दी का कायल हूँ।' जहाँगीर ने मृदुलता के साथ कहा।

उसका झुका हुआ सिर तख्त से नीचे पड़ता था। सिर उठाया। सिर तख्त से अंगुल-दो अंगुल ऊँचा हो गया। ईरानी की आँखों में विनय थी और होंठों पर स्वाभिमान की हलकी मुसकान। जहाँगीर का चुटकीवाला हाथ पदप्रार्थी के कान के पास आया, मानो उसके सिर को छूकर बरकत बरसाना चाहता हो।

क्षण के एक बहुत छोटे से खंड में जहाँगीर की चुटकी ईरानी के कान को छूकर पीछे हट गई। उसके मुँह से दबी हुई हलकी चीख निकली। होंठों की वह मुस्कान खींच ले गई और आँखों के डोरे लाल हो गए। ईरानी का हाथ सहसा अपने कान के उस स्थान पर जा पहुँचा, जिसे जहाँगीर की चुटकी छूकर अलग हो गई थी। जहाँगीर का चुटकीवाला हाथ फिर कमरपेटी पर जा पहुँचा था। पदप्रार्थी ने कान को टटोला, मला। खून की कुछ बूँदें झलक आईं, जिन्हें उसकी उँगलियों ने पोंछ डाला। माथे पर पसीना आ गया। उसकी आँखें पैनेपन के साथ जहाँगीर के उस हाथ की उँगलियों पर गईं। जहाँगीर की उँगलियाँ एक लंबी पैनी सुई कमरपेटी के छेद में खोंस रही थी।

जहाँगीर हँस पड़ा।

'म्याँ, मैं ईरानियों की जवाँमर्दी के इम्तिहान के लिए यह बहुत छोटा सा खेल किया करता हूँ।'

बहुत छोटा सा खेल! भरे दरबार में कान में सुई चुभो दी! बादशाह है या शैतान! ईरानी के मन में गड़ा, परंतु कुछ कह न सका। नतमस्तक होकर रह गया। जहाँगीर की हँसी बंद नहीं हुई थी।

जहाँगीर ने शाबाशी दी, 'परख लिया, म्याँ, परख लिया। जवाँमर्द हो। कई तो ऐसे गुजरे मेरी उँगलियों के नीचे से कि हवा लगते ही रो दिए।'

रो तो मैं भी देता, लेकिन यह और भी हँसता। सारे दरबार की शरम सिर पर लेनी पड़ती - ईरानी ने सोचा। कराह को दबाया। पोंछ डालने पर भी कान पर लहू की एक बड़ी बूँद आ जमी थी।

जहाँगीर ने उसे इनाम दिया और खिलअत बख्शी।

कुछ क्षण पीछे जहाँगीर का भतीजा इंशा आ गया। जब जहाँगीर ने उसको पुकारा था, उसी समय ढूँढ़ने वाले निकल पड़े थे। इंशा यमुना में मछली का शिकार खेल रहा था। जैसे ही सुना बादशाह ने याद किया है, तुरंत चला आया।

उसे देखते ही जहाँगीर को 'शाहजादा' शब्द स्मृति से उभरकर फिर चुभ गया, जिसका उपयोग अलमबरदार ने किया था। जहाँगीर ने उसे आदेश दिया, 'बैठ जाओ!' इंशा यथास्थान बैठ गया। आयु उसकी चौदह-पंद्रह साल की होगी। देखने में रूपवान था। यदा-कदा जहाँगीर का स्नेह भी पाता रहता था।

गई रात जहाँगीर ने अपने कुछ अँगरेजी अतिथियों के साथ अपनी सीमा से अधिक शराब ढाल ली थी। दरबार की समाप्ति जल्दी कर दी। इंशा चला गया। बादशाह जहाँगीर चुस्त था, शराबी था, परहेजगार था, शमा था, परवाना था, फूल था, काँटा था, दयावान था, निर्मम था, उदार था, अनुदार था, न्यायी था, अन्यायी था - जब जैसी सनक सिर पर सवार हो जाय। अनियंत्रित सत्ता का वह पूरा प्रतिबिंब था। रात को शराब में गहरी डुबकियाँ लगाते रहने पर भी कभी-कभी दिन में ऐसा कि जीवन में शराब इसने कभी सूँघी तक न हो। यह बात दूसरी है कि उसकी आँखें धोखा नहीं दे सकती थीं और जब रात में शराब के बेहिसाब दौर चल गए तो फिर दिन में कोई भी अपनी खैर नहीं मना सकता था। चाहे भतीजा हो, चाहे लड़का।

मस्त हाथियों की लड़ाई देखने का उसे बहुत व्यसन था। शिकार बहुत खेलता था - छोटी-छोटी सी चिड़ियों से लेकर शेर तक का। शिकार से मन उचटा तो मस्त हाथियों को लड़ाई पर जा रमा।

उस दिन उसे हाथियों की लड़ाई से मनोरंजन करना था। इंशा को लेकर जैसे ही अपनी खासगाह में पहुँचा, उसे अपना छोटा पुत्र मिला। नाम उसका शहरयार था। प्यार में उसे वह सुल्तान शहरयार कहता था। आयु उसकी सात बरस की थी।

'सुल्तान,' जहाँगीर ने शहरयार से कहा, 'हाथियों की लड़ाई देखने चलो।'

शहरयार उसके साथ हो लिया। पीछे-पीछे इंशा चला। झरोखे में होकर लड़ाई देखने का आयोजन था।

नीचे मैदान में दोनों ओर मस्त हाथी सूँड़ें लहरा-लहराकर सामने के प्रतिद्वंद्वियों को चुनौती दे रहे थे। झपट पड़ने को तैयार। चिंतित महावत उनके उद्वेग पर अंकुश ठोक रहे थे। हाथी चिंघाड़ रहे थे, मानो बादशाह के आदेश को निमंत्रित कर रहे हों।

शहरयार जहाँगीर के पास बैठा था। इंशा का कुतूहल इतना बढ़ा कि वह भी सिमटकर आ बैठा। बादशाह को अच्छा नहीं लगा।

हाथियों की चिंघाड़ें बढ़ीं। महावतों का कलेजा फड़फड़ाने लगा।

जहाँगीर का ध्यान इंशा पर से फिसलकर नीचे मैदान में तथा दूरी पर खड़ी दिल्ली की उत्सुक जनता और हाथियों की हिलती हुई सूँड़ों पर जमा।

'शुरू करो।' जहाँगीर ने आदेश दिया। हाथी एक-दूसरे पर पिल पड़े। रौंदा-रौंदी से मैदान की धूल उठी। हाथियों की चिंघाड़ों से दिशाएँ गूँजने लगीं। सूर्य के किरणों में हाथियों फेन रंग-बिरंगे बनकर उड़ने-छितराने लगे। महावतों के तवे और बख्तर चमक-चमक जा रहे थे। जब हाथियों ने टक्करें लीं और सूँड़ों से सूँड़ें उलझीं तब जहाँगीर के मुँह से निकला -

'वाह-वाह! यह हारेगा! वह जीतेगा!'

शहरयार और इंशा ने भी दुहराया-तिहराया।

'मेरे कान के परदे मत फाड़ो!' जहाँगीर ने फटकारा। बच्चे सहम गए।

हाथियों की लपटें-झपटें तीव्र से तीव्रतर हुईं। जहाँगीर का मनोरंजन पराकाष्ठा पर पहुँचने को हुआ। इतने में एक महावत घायल होकर नीचे जा गिरा और एक का हाथ हाथी के पाँव से कुचकर धज्जी-धज्जी हो गया। उसे और कई चोटें आईं। खेल बंद करना पड़ा।

जहाँगीर का सारा मजा किरकिरा हो गया। उसने सोचा, 'महावत बचे या न बचे।'

उसने अपने अलमबरदार को आज्ञा दी, 'इसको फौरन खतम करो! जमुना में डुबो दो! जितनी देर जिंदा रहेगा, दर्द के मारे तड़पता रहेगा और मुझे कोसता-कलपता रहेगा। बेहतर है कि बिना एक पल की देरी के खतम कर दिया जावे।'

जहाँगीर की आज्ञा का तुरंत पालन किया गया।

संध्या नहीं हुई थी। तब तक क्या किया जावे? शहरयार और इंशा बगल में थे।

जहाँगीर ने कहा, 'मेरा साथ आओ।' जहाँगीर उन दोनों को लेकर अपने चिड़ियाघर पर गया। चिड़ियाघर बड़ा न था, तो भी उसमें कई पशु-पक्षी थे। शेर अधिक थे। लोहे के पिंजड़ों में बंद। इनमें से कुछ बहुत छुटपने से पाले गए थे, कुछ बड़ी आयु में फाँसे पकड़े गए थे। जहाँगीर एक ऐसे ही शेर के पिजड़े के पास जा खड़ा हुआ। शेर धीरे-धीरे गुर्राने लगा।

'रक्खो इसके सिर पर हाथ!' जहाँगीर ने इंशा को आज्ञा दी।

इंशा सन्न। पीला पड़ गया। काँपने लगा। इंशा किसी भी तरह तैयार न हुआ।

'शाहजादा बना फिरता है कमबख्त कहीं का!' फिर भी इंशा न हिला।

अब आई बारी शहरयार की।

'सुल्तान, तुम शेर के सिर पर हाथ फेरो।' जहाँगीर ने आँखें तरेरी।

शहरयार चुपचाप शेर की लाल-पीली आँखें देखने लगा।

'ऐ!' जहाँगीर कड़का। शहरयार फिर भी जहाँ-का-तहाँ।

जहाँगीर ने कमरपेटी से वही सुई निकाली... जो उसने ईरानी के कान में चुभोई थी।

जहाँगीर ने शहरयार के कान पर नहीं, गाल पर सुई चुभो दी। खून छलछला आया। शहरयार ने दाँत भींचे, ओंठ से ओंठ सटाए, गर्दन कड़ी की और भौंहें पूरे जोर से सिकोड़ी। वह न चीखा, न कराहा। जहाँगीर प्रसन्न हुआ।

'इसे कहते हैं शाहजादा!' हाँ तो सुल्तान बेटा, फेरो हाथ शेर के सिर पर। जहाँगीर ने कहा।

शहरयार ने हाथ बढ़ाया। जहाँगीर ने उसके गालों में से सुई खींच ली। घाव से खून सर्रा पड़ा। शहरयार ने शेर के सिर पर हाथ फेरा और पीछे हट गया। वह शेर की आँखों और खड़ी मूँछों को देख रहा था। गाल का लहू गरदन की मोटी नस पर आकर रुक गया था।

'शाबाश!' जहाँगीर बहुत प्रसन्न था।

शहरयार ने गाल के खून को नहीं पोंछा - न मालूम कहीं जहाँपनाह दूसरे गाल को छेद डालें। वह अपने ओंठ अब भी सटाए हुए था।

इंशा की हिम्मत फिर भी न हुई कि गुर्राते हुए शेर के सिर पर हाथ फेरे। जहाँगीर ने इंशा से प्रायश्चित करवाया।

अपने भृत्यों को आज्ञा दी, 'इंशा को कैदखाने में बंद कर दो! जब इसमें जवाँमर्दी के चिह्न साफ दिखलाई पड़ेंगे तब रिहा किया जाएगा।'

उस समय इंशा की आँखों से जो कुछ भी बरस पड़ा था, उसको किसने देखा?

41
रचनाएँ
वृंदावन लाल वर्मा की रोचक कहानियाँ
5.0
इन्हे बचपन से ही बुन्देलखंड की ऐतिहासिक विरासत में रूचि थी। जब ये 19 साल के किशोर थे तो इन्होंने अपनी पहली रचना ‘महात्मा बुद्ध का जीवन चरित’(1908) लिख डाली थी। उनके लिखे नाटक ‘सेनापति दल’(1909) में अभिव्यक्त विद्रोही तेवरों को देखते हुये तत्कालीन अंग्रजी सरकार ने इसी प्रतिबंधित कर दिया था। ये प्रेम को जीवन का सबसे आवश्यक अंग मानने के साथ जुनून की सीमा तक सामाजिक कार्य करने वाले साधक भी थे। इन्होंने वकालत व्यवसाय के माध्यम से कमायी समस्त पूंजी समाज के कमजोर वर्ग के नागरिकों को पुर्नवासित करने के कार्य में लगा दी। इन्होंने मुख्य रूप से ऐतिहासिक पृष्ठभूमि पर आधारित उपन्यास, नाटक, लेख आदि कुछ निबंध एवं लधुकथायें भी लिखी हैं।
1

मेंढकी का ब्याह

16 मई 2022
4
0
0

उन ज़िलों में त्राहि-त्राहि मच रही थी। आषाढ़ चला गया, सावन निकलने को हुआ, परन्तु पानी की बूँद नहीं। आकाश में बादल कभी-कभी छिटपुट होकर इधर-उधर बह जाते। आशा थी कि पानी बरसेगा, क्योंकि गाँववालों ने कुछ पत

2

खजुराहो की दो मूर्तियाँ

16 मई 2022
3
1
1

चंद्रमा थोड़ा ही चढ़ा था। बरगद की पेड़ की छाया में चाँदनी आँखमिचौली खेल रही थी। किरणें उन श्रमिकों की देहों पर बरगद के पत्तों से उलझती-बिदकती सी पड़ रहीं थीं। कोई लेटा था, कोई बैठा था, कोई अधलेटा। खजु

3

जहाँगीर की सनक

16 मई 2022
1
0
0

'इंशा! इंशा!!' बादशाह जहाँगीर ने इधर-उधर देखकर भरे दरबार में जरा ऊँचे स्वर में अपने भतीजे को पुकारा। अलमबरदार ने बड़े अदब के साथ बतलाया कि शाहजादा शिकार खेलने चले गए हैं। 'शाहजादा - इंशा के लिए! जहाँग

4

शरणागत

16 मई 2022
1
0
0

रज्जब कसाई अपना रोजगार करके ललितपुर लौट रहा था। साथ में स्त्री थी, और गाँठ में दो सौ-तीन सौ की बड़ी रकम। मार्ग बीहड़ था, और सुनसान। ललितपुर काफी दूर था, बसेरा कहीं न कहीं लेना ही था; इसलिए उसने मड़पुर

5

थोड़ी दूर और

16 मई 2022
0
0
0

जब महमूद गजनवी (सन 1025-26 में) सोमनाथ का मंदिर नष्ट-भ्रष्ट करके लौटा तब उसे कच्छ से होकर जाना पड़ा। गुजरात का राजा भीमदेव उसका पीछा किए चल रहा था। ज्यों-ज्यों करके महमूद गजनवी कच्छ के पार हुआ। वह सिं

6

रक्षा

16 मई 2022
0
0
0

मुहम्मदशाह औरंगजेब का परपोता और बहादुरशाह का पोता था। 1719 में सितंबर में गद्दी पर बैठा था। सवाई राजा जयसिंह के प्रयत्न पर मुहम्मदशाह ने गद्दी पर बैठने के छह वर्ष बाद जजिया मनसूख कर दिया। निजाम वजीर ह

7

रामशास्त्री की निस्पृहता

16 मई 2022
0
0
0

दो सौ वर्ष के लगभग हो गए, जब पूना में रामशास्त्री नाम के एक महापुरुष थे। न महल, न नौकर-चाकर, न कोई संपत्ति। फिर भी इस युग के कितने बड़े मानव! भारतीय संस्कृति की परंपरा में जो उत्कृष्ट समझे जाते रहे है

8

दबे पाँव (अध्याय 1)

16 मई 2022
0
0
0

कुछ समय हुआ एक दिन काशी से रायकृष्ण दास और चिरगाँव से मैथिलीशरण गुप्त साथ-साथ झाँसी आए। उनको देवगढ़ की मूर्ति कला देखनी थी - और मुझको दिखलानी थी। देवगढ़ पहुँचने के लिए झाँसी-बंबई लाइन पर जालौन स्टेशन

9

दबे पाँव (अध्याय 2 )

16 मई 2022
0
0
0

हिंदी में कुछ-न-कुछ लिखने की लत पुरानी है। सन् 1909 में छपा हुआ मेरा एक नाटक सरकार को नापसंद आया। जब्त हो गया और मैं पुलिस के रगड़े में आया। परंतु रंगमंच पर अभिनय करने पर अभिनय करने का शौक था और नाटक

10

दबे पाँव (अध्याय 3)

16 मई 2022
0
0
0

चिंकारे का शिकार करछाल के शिकार से भी अधिक कष्टसाध्य है। चिंकारा बहुत ही सावधान जानवर होता है। उसे संकट का संदेह हुआ कि फुसकारी मारी और छलाँग मारकर गया। हिरन संकट से छुटकारा पाने के लिए दूर भागकर दम ल

11

दबे पाँव (अध्याय 4)

16 मई 2022
0
0
0

एक जगह जमकर बैठने का शिकार काफी कष्टदायक होता है। झाँखड़ या पत्थरों के चारों ओर ओट बना लेते हैं और उसके भीतर जानवरों को अगोट पर शिकारी बैठ जाते हैं-ऐसे ठौर पर, जहाँ होकर जानवर प्रायः निकलते हों। उनके

12

दबे पाँव (अध्याय 5)

16 मई 2022
1
0
0

हिरन वर्ग के जानवरों के लिए ढूका या ढुकाई का शिकार भी अच्छा समझा जाता है। इस शिकार में काफी परिश्रम करना पड़ता है। पेट के बल रेंगते हुए भी चलना पड़ता है; पहेल ही कहा जा चुका है। कुछ लोग बंदूक के घोड़

13

दबे पाँव (अध्याय 6 )

16 मई 2022
0
0
0

चीतल (स्वर्णमृग) हिरन वर्ग का पशु समझा जाता है। परंतु इसके सींग फंसेदार होते हैं। यह बहुत ही सुंदर होता है। इतना सुंदर कि कभी-कभी शिकारी इसके भयानक हानि पहुँचानेवाले कृत्यों को भूल जाता है। इसकी खाल प

14

दबे पाँव (अध्याय 7)

16 मई 2022
0
0
0

चीतलों के बाद मुझको पहला तेंदुआ सहज ही मिल गया। विंध्यखंड में जिसको 'तेंदुआ' कहते थे, उसकी छोटी छरेरी जाति को कहीं-कहीं 'चीता' का नाम दिया गया है। हिमाचल में शायद इसी को 'बाघ' कहते हैं। तेंदुए की खबर

15

दबे पाँव (अध्याय 8)

16 मई 2022
0
0
0

खेती को नुकसान पहुँचानेवाले जानवरों से सुअर चीतल और हिरन से कहीं आगे है। मनुष्यों के शरीर को चीरने-फाड़ने में वह तेंदुए से कम नहीं है। सुअर की खीसों से मारे जानेवालों की संख्या तेंदुए की दाढ़ों और नाख

16

दबे पाँव (अध्याय 9)

16 मई 2022
0
0
0

मैं संध्या के पहले ही बेतवा किनारे ढीवाले गड्ढे में जा बैठा। राइफल में पाँच कारतूस डाल लिए। कुछ नीचे रख लिए। रातभर बैठने के लिए आया था, इसलिए ओढ़ना-बिछौना गड्ढे में था। अँधेरा हुआ ही था कि एक छोटी सी

17

दबे पाँव (अध्याय 10)

16 मई 2022
0
0
0

एक बार जाड़ों में पहाड़ की हँकाई की ठहरी। लगान लग गए। मैं पहाड़ की तली में बैठ गया और शर्मा जी चोटी पर। बीच में अन्य मित्र लगान पर लग गए। हँकाई होते ही पहले साँभर हड़बड़ाकर निकल भागे। हँकाई में पहले

18

दबे पाँव (अध्याय 11)

16 मई 2022
0
0
0

साँभर और नीलगाय इसके नर को 'रोज' और मादा को 'गुरायँ' कहते हैं। खेती के ये काफी बड़े शत्रु हैं। बड़े शरीर और बड़े पेटवाले होने के कारण ये कृषि का काफी विध्वंस करते हैं। जब गाँव के ढोर चरते-चरते जंग मे

19

दबे पाँव (अध्याय 12)

16 मई 2022
0
0
0

एक समय था जब हिंदुस्थान में सिंह - गरदन पर बाल, अयालवाला - पाया जाता था। काठियावाड़ में सुनते हैं कि अब भी एक प्रकार का सिंह पाया जाता है। नाहर या शेर ने, जिसके बदन पर धारें होती हैं, अपना वंश बढ़ाकर

20

दबे पाँव (अध्याय 13)

16 मई 2022
0
0
0

अगली छुट्टी में मैं अपने मित्र शर्मा जी के साथ उसी गड्ढे में आ बैठा। चाँदनी नौ बजे के लगभग डूब गई। अँधेरे की कोई परवाह नहीं थी। एक से दो थे और टॉर्च भी साथ थी। जिस घाट पर हम लोग गड्ढे में बैठा करते थ

21

दबे पाँव (अध्याय 14)

16 मई 2022
0
0
0

मोर, नीलकंठ, तीतर, वनमुरगी, हरियल, चंडूल और लालमुनैया जंगल, पहाड़ और नदियों के सुनसान की शोभा हैं। इनके बोलों से - जब बगुलों और सारसों, पनडुब्बियों और कुरचों की पातें की पातें ऊँघते हुए पहाड़ों के ऊपर

22

दबे पाँव (अध्याय 15 )

16 मई 2022
0
0
0

मध्य प्रदेश कहलाने वाले विंध्यखंड में ऊँची-ऊँची पर्वत श्रेणियाँ, विशाल जंगल, विकट नदियाँ और झीलें हैं। शिकारी जानवरों की प्रचुरता में तो यह हिंदुस्थान की नाक है। किसी समय विंध्यखंड में हाथी और गैंडा भ

23

दबे पाँव (अध्याय 16)

16 मई 2022
0
0
0

एक बार विंध्यखंड के किसी सघन वन का भ्रमण करने के बाद फिर बार-बार भ्रमण की लालसा होती है। इसलिए सन् 1934 के लगभग मैं कुछ मित्रों के साथ मंडला गया। मंडला की रेलयात्रा स्वयं एक प्रमोद थी। पहाड़ी में होक

24

दबे पाँव (अध्याय 17)

16 मई 2022
1
0
0

जंगली कुत्ते का मैंने शिकार तो नहीं किया है, परंतु उसको देखा है। जिन्होंने इसके कृत्यों को देखा है वे इस छोटे से जानवर के नाम पर दाँतों तले उँगली दबाते हैं। रंग इसका गहरा बादामी होता है, इसलिए शायद इस

25

दबे पाँव (अध्याय 18)

16 मई 2022
0
0
0

भेड़िया आबादी के निकट के प्रत्येक जंगल में पाया जाता है। यह जोड़ी से तो रहता ही है, इसके झुंड भी देखे गए हैं। मैंने आठ-आठ, दस-दस तक का झुंड देखा है। भेड़िया बहुत चालाक होता है। भेड़-बकरियों और बच्छे-

26

दबे पाँव (अध्याय 19)

16 मई 2022
0
0
0

भेड़िये को हाँक-हूँककर गड़रिए की स्त्री प्यासी हो आई। भेड़-बकरियों को लेकर नदी किनारे पहुँची। पानी के पास गई। चुल्लुओं से हाथ मुँह धोया। थोड़ी दूर पर एक मगर पानी के ऊपर उतरा रहा था। वह मगर के स्वभाव क

27

दबे पाँव (अध्याय 20)

16 मई 2022
0
0
0

जंगल में शेर और तेंदुए से भी अधिक डरावने कुछ जंतु हैं - साँप, बिच्छू और पागल सियार। अजगर का तो कुछ डर नहीं है, क्योंकि वह काटने के लिए आक्रमण नहीं करता है, भक्षण के लिए पास आता है; और जहाँ तक मैंने द

28

दबे पाँव (अध्याय 21)

16 मई 2022
0
0
0

जंगलों में जितने भीतर और नगरों से जितनी दूर निकल जाएँ उतना ही रमणीक अनुभव प्राप्त होता है। पुराने नृत्य और गान तो जंगलों के बहुत भीतर ही सुरक्षित मिलते हैं। अमरकंटक की यात्रा में कोलों और गोंडों का क

29

दबे पाँव (अध्याय 22)

16 मई 2022
0
0
0

शिकार के साथ यदि हँसोड़ न हों और चुप भी रहना न जानते हों तो सारी यात्रा किरकिरी हो जाती है। मुझको सौभाग्यवश हँसोड़ या चुप्प साथी बहुधा मिले। संगीताचार्य आदिल खाँ वह अपने को कभी-कभी 'परोफेसर' कहते हैं

30

दबे पाँव (अध्याय 23)

16 मई 2022
0
0
0

शेर के संबंध में शिकारियों के अनुभव विविध प्रकार के हैं। सब लोगों का कहना है कि मनुष्यभक्षी शेर के सिवाय सब शेर मनुष्य की आवाज से डरते हैं। जब शेर की हँकाई होती है और ऐसे जंगल की हँकाई प्रायः की जाती

31

दबे पाँव (अध्याय 24)

16 मई 2022
0
0
0

लौटने पर किसी ने कहा तलवार पास रखनी चाहिए, किसी ने कहा छुरी। तलवार और छुरी का उपयोग शिकार में हो सकता है; परंतु मैं तलवार से छुरी को ज्यादा पसंद करूँगा और छुरी से भी बढ़कर लाठी को, और लाठी से बढ़कर क

32

दबे पाँव (अध्याय 25)

16 मई 2022
0
0
0

यदि गाँववालों को शिकारी की सहायता नहीं करनी होती है तो वे कह देते हैं कि जंगल में जानवर हैं तो जरूर, पर उनका एक जमाने से पता नहीं है। सहायता वे उन लोगों की नहीं करते, जिनसे उनको कोई भय या आशंका होती ह

33

रिहाई तलवार की धार पर

16 मई 2022
0
0
0

बंदा बैरागी और उसके सात सौ सिख साथियों के कत्ल का दिन आ गया। ये सब बंदा के साथ गुरदासपुर से कैद होकर आए थे। बंदा ने स्वयं खून की होली खेली थी, इसलिए उसके मन में किसी भी प्रकार की दया की आशा या प्रार्थ

34

सच्चा धर्म

16 मई 2022
0
0
0

हिंदू रियासतों में एक जमाने से शिया मुसलमान काफी संख्या में आ बसे थे; कोई नौकर थे, कोई कारीगर, हकीम-जर्राह इत्यादि। परंतु संख्या सुन्नी मुसलमानों की अधिक थी। इनमें भी उन्नाव दरवाजे की तरफ मेवाती और बड

35

शाहजादे की अग्निपरीक्षा

16 मई 2022
0
0
0

दिल्ली का बादशाह जहाँगीर सन 1605 में राजसिंहासन पर बैठा था। उसे दस-बारह साल राज करते-करते हो गए थे। जहाँगीर सूझ-बूझवाला व्यक्ति था; परंतु कभी-कभी दुष्टता का भी बरताव कर डालता था। उसमें सनक भी थी। जहा

36

शेरशाह का न्याय

16 मई 2022
0
0
0

वह नहा रही थी। ऋतु न गरमी की, न सर्दी की। इसलिए अपने आँगन में निश्चिंतता के साथ नहा रही थी। छोटे से घर की छोटी सी पौर के किवाड़ भीतर से बंद कर लिए थे। घर की दीवारें ऊँची नहीं थीं। घर में कोई था नहीं,

37

शहीद इब्राहिमख़ाँ गार्दी

16 मई 2022
0
0
0

'इस क़ैदी को शाह के सिपुर्द कीजिये ।' अहमदशाह अब्दाली के दूत ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला से युद्ध की समाप्ति पर कहा । सन् १७६१ में पानीपत के युद्ध में मराठे हार गये थे। कई सरदारों के साथ मराठों का सरद

38

पहले कौन?

16 मई 2022
0
0
0

मेवाड़ और मारवाड़ (जोधपुर) में परस्पर बहुत वैर बढ़ गया था। बात लगभग तीन सौ वर्ष पुरानी है। मेवाड़ की सीमा पर जोधपुर राज्य का एक गढ़ था। गढ़ खँडहर हो गया है और खँडहरों का नाम क्या! जोधपुर अपनी आन पर थ

39

लुटेरे का विवेक

16 मई 2022
0
0
0

बात बारहवीं शताब्दी के अंत की है। मुहम्मद साम दिल्ली का सुल्तान था और भीम द्वितीय गुजरात का राजा। भीम ने लगभग इकसठ वर्ष राज किया। वह सिद्धांत पर चलता था, जिसे सत्रहवीं शताब्दी में छत्रसाल ने यों व्यवह

40

इंद्र का अचूक हथियार

16 मई 2022
0
0
0

तपस्वी की साधना की जो प्रतिक्रिया हुई, उससे इंद्र का इंद्रासन डगमगाने लगा। तपस्या भंग करने के उपकरण इंद्र के हाथ में थे ही। उसने प्रयुक्त किए। तपस्वी के पास मेनका अप्सरा अपने साज-बाज के साथ जा पहुँची।

41

वृंदावनलाल के जीवन के प्रेरक प्रसंग

16 मई 2022
0
0
0

सच्चा इतिहास मैं लिखूँगा मनुष्य के जीवन में एकाध घटना ऐसी गुजरती है, जो संवेदनशील मन को झनझना देती है। जिस घटना ने वृंदावनलाल वर्मा के मन को झकझोरकर उन्हें इतिहास लिखने के लिए प्रेरित किया, वह घटना उ

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए