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देशप्रेम

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स्त्री दर्द बहुत सभाले है मैंनेसोचा था बड़े होकर कुछ बन कर दिखाउंगीदिन रात एक करके कुछ दुनिया में नाम 

वो लोगजो हमें दे गए वतन वो लोग कुछ और थेवो लोग कुछ और थे जो हमें चंद सांसे दे गएवो लोग कुछ 

मेरा गांव मुझको, बहुत याद आता , आंखों को दिखता सुहाना सा मंज़र, बैलों की जोड़ी, जब खेतों में जाती, पनघट पर गोरी, जब बातें बनाती, खेतों में फूलीं, पीली सरसों सुहानी, डोली में जाती थी, दूल्हे की रानी, म

जब मन में उठते हैं, यह विचार, यह देश हमारा कैसा था? तब कैसा था,अब कैसा है, आगे यह कैसा हो जाएगा? वैदिक मंत्रों की शक्ति से, जब आताताई डरते थे, भारत के गौरव के आगे, सब नतमस्तक हो जाते थे, नानी, दादी यह

परिचयमै अपनी किताब के माध्यम से किसी ब्यक्ति बिशेष को आहत करना नहीं चाहता हु।और नही यह मेरा उद्देश्य है मै बताना चाहुगा की जो समाज में चल रहा है मै केवल उसे ही सबके सामने रखना चहुंगा चाहे वो किसी पोलि

ऐ वक़्तऐ सुन तो जरा दिन तपाये है रात -दिनमैंने दुनिआ की भीड़ में सिर्फ तुझे ही देखाऐ सुन जरा तुझसे कुछ कहना अभी बाकि हैहोश उड़ गए तेरे ख्वाब में रात हुई दिन हुआपर हमें खबर तक नहीं ,तेरी चाहत ने मुझे इस क

कहा तुम चले गए कहा तुम चले गए,जाने कहा तुम चले गएजिंदगी का ये बोझ देकर हमें,अपने सरे गम देकर हमेंजाने कहा तुम चले गए,हम तो खुद ही मर चुके थेतुमने न जाने ये कैसा बोझ दिया,न जाने मै उठा पाउँगान जान

बन्दे मातरमकरना था जिन्हे बन्दे मातरमवही अब पिए जा रहे हैनेताओं के घर बात रही है मिठाइयांजनता जनार्दन पिस्ते जा रहे है ॥करना था जिन्हे बन्दे मातरमयुवा भी अब तो पिए जा रहे हैबड़े ऊपर जा रहे हैछोटे पिस्त

विश्वास अगर मन में आ जाऐ, हर बाधा मंजिल बन जाएं, विश्वास जिसे मिल जाता है, वह आगे बढ़ जाता है, जिसने खुद पर विश्वास किया, उसने इतिहास रचाया है, चाणक्य ने लेकर, विश्वास पताका, अखण्ड भारत बनवाया था, राण

मेरे शहर की कोई एक बात हो तो बताऊं  इतने सारे किस्से हैं, किस किस को सुनाऊं  ये शहरों में शहर है गुलाबी नगर कहलाता है  प्रेम भाईचारे का यहां बहुत गहरा नाता है  हवामहल, जंतर-मंतर,&n

भागीदारी लोकतंत्र में,मिलकर सभी निभाये हम।जनता का,जनता को शासन,जनता बन इसे चलाये हम।लोकतंत्र है मत की ताकत,करते हैं हम निर्वाचन।सही चुने हम अपना नेता, एक प्रण ले हम सब जन।खतरे में है लोकतंत्र,सिसक सिस

अयोध्या फिर बनी दुल्हन ।पल आनंद के आये हैं।।ये धरती फिर बनी मधुवन।चरण श्री राम लाये हैं।।बजे शहनाईयो की धुन।मगन मन मुस्कराए हैं।।बड़ी शुभ है ये घड़ियां।प्रभु घर में पधारे है।।भरो नैनो में अब खुशियां।रा

ये कश्मीर की लड़ाई भी अजीब-ओ-ग़रीब थी। सूबेदार रब नवाज़ का दिमाग़ ऐसी बंदूक़ बन गया था। जंग का घोड़ा ख़राब हो गया हो। पिछली बड़ी जंग में वो कई महाज़ों पर लड़ चुका था। मारना और मरना जानता था। छोटे बड़े अफ़सरों की

क्लान्त हुआ सब अंग शिथिल क्यों वेष है मुख पर श्रम-सीकर का भी उन्मेष है भारी भोझा लाद लिया न सँभार है छल छालों से पैर छिले न उबार है चले जा रहे वेग भरे किस ओर को मृग-मरीचिका तुुम्हें दिखाती छोर

वंदे मातरम। वंदे मातरम ।जय हिंद।भारत माता की जय ।इन जयघोष से सारा आकाश गूंज रहा था। सोनपुरा कै लिए बड़े गर्व की बात थी आज उनकी माटी का लाल अपने देश पर न्यौछावर होकर अपनी बेजान शरीर को तिरंगे मे लपेटे

दरबारों की दरबारी से,मार-काट मचा रहे।मानव अब हुआ मूल्यहीन हैमानव तन को नोच रहे।।समय वह पीछे छोड़ गया है,गिद्ध भी कीमत समझ गया है।।गुणहीन और धन युक्त हो,मानव मद में फूल गया है।।अपने को स्वामी समझकर,लाश

रत्न आभूषण गर्भ में तेरे, गिरि खड़े बन ताज है तेरे। सरिता अमृत है तेरा, खाना बन तरू खड़े भतेरे।। तेरी मिट्टी का अंश मनुज है, तेरे गर्भ से पैदा हम है। तेरी गोदी में पले बढे हम, तेरी दुनिया के खिलौने हम

"आँखें खोलो" हमें तो बस दो रोटी की दरकार है हमें क्या चाहे जिसकी सरकार है सोच है ऐसी, इस सोच को बदल डालो आँखें खोलो,पड़ोस पर नज़र डालो तीन लाख सैनिकों के होते सरकार पिचहत्तर हजार तालिबानियों से हा

"देने की सोचें" हुए पैदा हम आज़ाद भारत में क्योंकि शहीद हुआ कोई देश के लिए हम महफूज़ हैं बाहरी दुश्मन से क्योंकि तैनात है कोई सीमा पर अंदर के दुश्मन से बेखौफ हुए हम क्योंकि है कमान सुरक्षित हाथो

माँ! कोटि-कोटि सर तेरे हैं।  तू  चाहे  जब  जिसे   पुकारे  दिवा-रात्रि फिर या भिनसारे,  दौड़ पड़ें  हम सुन  ललकार बिखरें   पथ   चाहे     अंगार।           प्रमुदित प्राण निसर्ग किये बहुतेरे हैं 

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