ऐसा ही कुछ हुआ था आसिफा के साथ, लेकिन फिर उसके बाद गीता के साथ हुआ जो आसिफा से उम्र में छोटी थी, और फिर टिंकल शर्मा जो उम्र में सबसे छोटी है, लेकिन फिर भी बॉलीवुड के एक पक्ष की तरफ से एक भी अवार्ड वापसी नहीं हुई, नहीं कोई पोस्टर दिखे। सनी लियॉन, रवीना टंडन, अभिषेक बच्चन जैसे कुछ लोगों ने मामले को लेकर दुःख और गुस्सा ज़ाहिर किया है लेकिन हैरानी की बात ये है की प्लेकार्ड पकड़ने वाले कहीं भी नहीं दिख रहे, न स्वरा भास्कर(आजकल रूस के मज़े वाली फोटो डालती हैं), न सोनम कपूर, न गुल पनाग, श्रुति सेठ, हुमा कुरैशी, कोई नहीं, न ही 'शांतिप्रिय' समुदाय डरा हुआ वाले लोग दिख रहे हैं, न नसीरुद्दीन, जावेद अख्तर, कोई नहीं, सब गायब हैं।
ऐसे में सवाल ये उठता है की क्या किसी घटना का विरोध करने के लिए अपराधी का धर्म देखना ज़रूरी हो जाता है?
कुछ लोगों को ऐसा लगता है की सेलिब्रिटीज के कहने या न कहने से क्या फर्क पड़ता है? तो जी हाँ पड़ता है, जब कोई ऐसा व्यक्ति जिसको लाखों लोग फॉलो कर रहे हैं, कोई बात कहता है तो लोग उसकी बात सुनते हैं| फिर मुहीम छिड़ती है अपराधियों को जल्द से जल्द सजा देने की और ऐसे में सरकारी काम रफ़्तार पकड़ लेते हैं।
जब आसिफा काण्ड हुआ था तब इन् लोगों ने अपराधियों को छोड़कर 'मंदिर', 'देवी' 'हिन्दू' ऐसे शब्दों का ज़िक्र किया था जिससे हिन्दुओं को कुरीति वाले और असभ्य कहा जा सके, इससे किसी को कोई परेशानी नहीं है, आप अपनी तरह से विरोध कर सकते हैं लेकिन आपको समानता दिखानी पड़ेगी, जाहिद और असलम 'शांतिप्रिय' समुदाय से हैं इसका मतलब ये नहीं की वो आपके मामा के लड़के हैं, बचाव करना जरुरी है।
आइये हमारे साथ खुल के विरोध करिये, और अगर प्लेकार्ड पकड़ने के आप पैसे लेते हैं, तो कुछ पैसे चंदा स्वरुप हम भी दे सकते हैं, लेकिन सही मायने में धर्म निरपेक्ष होना सीखिए।
Edit- 2014 में असलम ने अपनी ही बेटी से दुष्कर्म किया था जिस पर उसकी पत्नी ने शिकायत दर्ज कराई थी।
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