भारत और पाकिस्तान सांस्कृतिक एवं भाषाई सभ्यताओं से आज भी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं. बंटवारे के बाद भारत ने अपनी प्राचीन सभ्यता को बनाए रख कर एक बेहतर लोकशाही बनने की ओर कदम बढाएं वहीँ पाकिस्तान ने हर वो कदम उठाया कि जिससे वह भारत से खुद को अलग बता सके.
दुःख की बात है, सैंतालीस के पहले रावलपिंडी, लाहौर, कराची की जो गलियां हिंदी लेखकों एवं रचनाकारों के नाम से मशहूर हुआ करती थी वहां आज हिंदी की शख्सियतों को याद करने वाला तक कोई नहीं! आज़ादी के बाद पाकिस्तान में हिंदी को हिन्दुओं की भाषा बताकर पढ़ाना बंद कर दिया गया. और तो और ढोल पीटा गया कि ‘हिंदी दुश्मनों की भाषा है’. वैसे, यह ढोल आज भी पीटा जा रहा है.
हमें जान कर हैरानी होगी कि पाकिस्तान में 45% लोग पंजाबी बोलते हैं. 15% लोग पश्तो बोलते हैं. 12% लोग सिंधी बोलते हैं. 10% लोग सराइकी बोलते हैं लेकिन फिर भी वहाँ अधिकारिक भाषा के तौर पर उर्दू को थोपा गया है, जिसको बोलने वाले मात्र 7% हैं.
खैर, भारत में हमने उर्दू स्कूलों, मदरसों, कॉलेजों के बारे में सुना है और देखा भी है लेकिन पाकिस्तान में आज भी ‘एक अल्लाह, एक क़ुरान, एक नस्ल, एक ज़ुबान’ का नारा बुलंद है. भाषा की कट्टरवादिता को मानने वाले पाकिस्तान में हिंदी पाठशाला के बारे में सुनना अपने आप में बेहद ही दुर्लभ और दिलचस्प है.
पिछले दिनों इसी विषय को टटोलते हुए मेरी मुलाकात हरेश राम मेहरा नामक युवक से हुई. मेहरा 21 साल के हैं और फ़िलहाल आईटी इंजीनियरिंग की पढाई कर रहे हैं. मेहरा साहब की खासियत है कि वे पाकिस्तान में रहते हुए भी हिंदी अच्छी तरह बोलते हैं, लिखते हैं और तो और हिंदी पाठशालाभी चलातें हैं. विषय इतना रोचक था कि मैं खुद को रोक नहीं पाया मेहरा साहब से बात करने हेतु. यहाँ मौजूद है हमारी बातचीत के कुछ अंश:
आप पाकिस्तान में कहाँ से हैं?
मैं सिंध प्रान्त के घोटकी डिस्ट्रिक्ट के मीरपुर मठेलो कस्बे से हूँ.
आपने हिंदी की तालीम कहाँ से ली?
हमारे गुरु संजय कुमारजी से. वे खुद भी एक हिंदी पाठशाला चलाते हैं.
आपकी पाठशाला का नाम क्या हैं और ऐसी कितनी पाठशालाएं पाकिस्तान में चल रहीं हैं?
हमारी पाठशाला का नाम है ‘जय शंकर हिंदी पाठशाला’. ऐसी पाठशालाएं सिर्फ सिंध प्रान्त में ही चलती हैं जहाँ हिन्दू आबादी अधिक हैं. हमारे घोटकी में करीब 11 पाठशालाएं हैं.
आपकी पाठशाला में कितने छात्र-छात्राएं हैं?
कुल 70 छात्र-छात्राएं. जिसमे 40 छात्राएं एवं 30 छात्र.
क्या बात है! इसका मतलब है कि पाकिस्तानी हिन्दू लड़कियां पढाई में ज्यादा रूचि रखती हैं!
नहीं, ऐसा नहीं है! धार्मिक कट्टरता के चलते यहाँ हिन्दू लड़कियां स्कूल नहीं जा पाती जिस वजह से हमारी पाठशाला से वे शिक्षा लेती हैं.
आपका हिंदी सीखना और सिखाने का मकसद क्या है?
यदि हिन्दू आबादी हिंदी सीखेगी तो अपने धर्म को अच्छे से समझेगी. खासकर हमारे धर्मग्रन्थ गीता को. और यहाँ की हिन्दू आबादी अब पलायन कर भारत में बस रही है ऐसे में हिंदी सीखना उनके भविष्य के लिए उपयोगी साबित हो सकता है.
पाकिस्तान में हिन्दुओ के प्रति इतनी कट्टर सोच होने के बावजूद क्या आपको हिंदी पाठशाला चलाना जोखिम उठाने जैसा नहीं लगता?
हमारे डिस्ट्रिक्ट में अच्छी खासी हिन्दू आबादी है. इसलिए यहाँ उतनी समस्या नहीं है फिर भी कुछ लोगों, खासकर मौलवियों को हमारा काम और हम पसंद नहीं आ रहे हैं.
क्या आपने कभी इस विषय पर पाकिस्तानी सरकार से मदद की गुहार लगाई हैं?
जी, कईं बार! हमने सरकार को पत्र लिखें, बात की, मगर अभी तक बात को आगे नहीं बढ़ाया गया.
आपके इस नेक कार्य में हम आपकी मदद कैसे कर सकते हैं?
हमें यहाँ हिंदी पुस्तकों की बहुत किल्लत रहती हैं. यदि आप भारत से हिंदी पुस्तकों को हम तक पहुंचा सकें तो बड़ी कृपा होगी.