जब इंसानियत क़त्ल होती है तो सच कहूं. समझ नहीं आता किन अल्फाजों का इस्तेमाल करूं, जिनसे जरा सा ही सही दुःख का एहसास करा सकूं. पता नहीं क्या है कि हम ज़ुल्म को ज़ुल्म क्यों नहीं समझते. उन्हें अपने हिसाब के खांचों में डाल कर तर्क पेश करते हैं. और फिर वो ज़ुल्म, ज़ुल्म नहीं लगता. और फिर तस्वीर आती है किसी बच्चे की लाश की. क्यों हम कुछ बोलने के लिए उस तस्वीर का इंतजार करते हैं. ये लाश है रोहिंग्या मुस्लिम के बच्चे की. कीचड़ में लिथड़ा ये बच्चा एक तमाचा है म्यांमार के सिस्टम पर. ज़ुल्म को नजर अंदाज़ करने वालों की चुप्पी पर. ह्यूमन राइट्स के नाम पर बनी संस्थाओं की ख़ामोशी पर. कीचड़ में सनी मोहम्मद शोहयात की लाश. ये तस्वीर म्यांमार में रोहिंग्या कम्युनिटी की बदहाली बयान कर रही है. ये रोहिंग्या ‘ऐलन कुर्दी’ है, जिसे देखकर लगता है कि सीखकर भी न सीखना इन्सान की आदत में शुमार होता जा रहा है.
इस बच्चे की तस्वीर को आप भुला नहीं पाए होंगे. 3 साल का ये मासूम ऐलन कुर्दी सीरिया में चल रहे सिविल वॉर में हुई बर्बादी का सिंबल है. सितंबर 2015 में गृह युद्ध से बचने के लिए अपने परिवार के साथ समुद्र के रास्ते यूरोप जा रहा था, लेकिन डूब जाने से उसकी मौत हो गई थी. जब इस बच्चे की तस्वीर सामने आई तो आवाजें उठीं, मगर फिर खामोश हो गईं लेकिन सीरिया जलता रहा.
अब इस तस्वीर को देखिए. पांच साल का ओमरान दक्नीश. धूल और खून में सना ये बच्चा. सीरिया के शहर अलेप्पो के पास हुए हवाई हमले का शिकार हुआ. ओमरान मलबे में दब गया था. इस जख्मी बच्चे की ख़ामोशी सवाल कर रही है. कोई है जो जवाब दे.
एक बार फिर हम सबके सामने एक बच्चे की लाश की तस्वीर है. जिसने उन बच्चों की तस्वीरें याद दिला दी हैं. झकझोर देने वाली ये तस्वीर म्यांमार से सामने आई है. 16 महीने का बच्चा मोहम्मद शोहयात. बच्चे की कीचड़ में सनी लाश. म्यांमार में रोहिंग्या मुसलमानों की बदहाली दिखा रही है. मोहम्मद शोहयात अपनी फैमिली के साथ म्यांमार छोड़कर बांग्लादेश जा रहा था. रोहिंग्या मुसलमानों का दावा है कि उन लोगों को म्यांमार की आर्मी सता रही है. जिस वजह से उन्हें देश छोड़ना पड़ रहा है. रोहिंग्या मुसलमानों का कहना है कि आर्मी रेप, मर्डर और लूटमार कर रही है.
खबर है कि शोहयात की मां नाफ नदी पार कर बांग्लादेश जाने की कोशिश में थीं. उनके साथ उनका एक और बेटा था. लेकिन उनकी नाव डूब गई. सभी मारे गए. शोहयात की लाश बाद में कीचड़ में सनी हुई मिली. ऐसे ही तुर्की बीच पर ऐलन कुर्दी की लाश मिली थी. इस बच्चे की लाश ने ऐलन कुर्दी की यादों को जिंदा कर दिया है.
अब इस बच्चे के पिता की सुनिए
शोहयात के पिता जफर आलम पहले ही बांग्लादेश पहुंच चुके थे. वो दुनिया से अपील कर रहे हैं कि आपकी ख़ामोशी एक नस्ल को खत्म कर देगी. चुप नहीं रहिए. सीएनएन से बातचीत में उन्होंने बताया, ‘हमारे गांव में, हेलिकॉप्टर्स ने हमपर गोलियां बरसाईं और म्यांमार की आर्मी ने हमारे ऊपर गोलियां चलाईं. मेरे दादा और दादी को जिंदा जला दिया. हमारे पूरे गांव को आर्मी ने आग लगा दी. कुछ नहीं बचा. जब मैं ये तस्वीर देखता हूं तो मर जाने को दिल करता है. इस दुनिया में रहने का कोई मतलब नहीं है.’
ज़फर आलम ने बताया, ‘आर्मी ख़त्म कर देना चाहती है. जान बचाने के लिए एक गांव से दूसरे गांव दौड़ता रहा. लगातार 6 दिन की भागदौड़. 4 दिन से कुछ नहीं खाया. और न ही सो पाया.हमें बार बार अपनी जगह बदलनी पड़ी. क्योंकि आर्मी रोहिंग्या को तलाश रही थी. मैं अकेला नाफ नदी को पार करने लगा. जो म्यांमार और बांग्लादेश के बीच से गुज़रती है. तैरना शुरू किया और मुझे एक बंगलादेशी मछुआरा बॉर्डर के दूसरी तरफ ले गया. फिर अपनी फैमिली को दूसरी तरफ लाने में जुट गया.’
आलम ने बताया, ‘उसने एक बोट का इंतजाम किया, जो मेरे बीवी बच्चों को मेरे पास ला सके. वो उस पार इंतजार कर रहे थे. मैंने जब अपनी बीवी को कॉल किया तो मेरा छोटा बेटा अब्बा-अब्बा पुकार रहा था.’
उसके फ़ोन कॉल के बाद उसकी फैमिली ने वहां से निकलने की कोशिश की. और किसी तरह पुलिस को पता लग गया. पुलिस ने वहां उनपर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. नाव चलाने वाले ने जल्दी जल्दी सबको नाव पर सवार कर लिया और नाव ओवरलोड होकर डूब गई. ये सब 4 दिसम्बर को हुआ. जफर को एक दिन बाद पता चला कि वहां क्या हुआ?
जफर ने कहा, ‘किसी ने मुझे फोन कर इस बारे में बताया. और मुझे मेरे बेटे की लाश का फोटो भेजा. जो उसने अपने मोबाइल से खींच लिया था. ये सुनके मैं दंग रह गया.’
जफर कहते हैं, ‘मेरे लिए अपने बेटे के बारे में बात करना बहुत मुश्किल है. वो मुझे अब्बा अब्बा करता था. मेरा बेटा बहुत प्यारा था, जिसे गांव में हर कोई प्यार करता था.’
ज़फर आलम कहते हैं, ‘मैं पूरी दुनिया को यह बात बताना चाहता हूं. म्यांमार की सरकार को और वक्त नहीं दिया जाना चाहिए. अगर आप एक्शन करने में देर करेंगे, तो वे सभी रोहिंग्या लोगों को मार डालेंगे.’
नोबेल प्राइज जीतने वाले 13 लोगों ने लिखी थी चिट्ठी
अभी कुछ दिन पहले नोबेल प्राइज जीतने वाली 13 शख्सियतों ने म्यांमार में मुसलमानों के साथ हो रहे बर्ताव को लेकर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को चिट्ठी लिखी थी. उन्होंने इसे ‘कत्लेआम’ बताते हुए नस्लीय सफाया और मानवता के खिलाफ अपराध बताया था. रोहिंग्या मूल रूप से बांग्लादेशी हैं, जिनमें अधिकतर इस्लाम मानते हैं. लेकिन वे बड़ी तादाद में म्यांमार में रहते हैं, जहां बौद्ध बहुसंख्यक हैं. चिट्ठी में लिखा गया है कि पिछले दो महीने में म्यांमार आर्मी ने सैकड़ों रोहिंग्या लोगों को मार दिया और 30,000 से अधिक लोग बेघर हो गए. इस चिट्ठी पर दस्तख़त करने वालों में आर्चबिशप डेसमंड टूटू, मोहम्मद यूनुस, मलाला युसुफ़ज़ई, ज़ूसे रामोस होर्टा और ऑस्कर एरियास भी शामिल हैं.
इस चिट्ठी में आंग सांग सू ची की खुल कर आलोचना की गई. क्योंकि वो सालों जेल में रहने के बाद रिहा हुईं और डेमोक्रेटिक तरीके से हुए इलेक्शन में बहुमत लेकर आईं. उनकी पार्टी सालों सैनिक शासन रहने के बाद सत्ता में आने वाली पहली डेमोक्रेटिक पार्टी बनी. वे फ़िलहाल चांसलर हैं और स्टेट की सलाहकार हैं. नोबेल प्राइज से सम्मानित भी हैं. लेकिन उन्होंने आजतक रोहिंग्या के लिए कुछ नहीं किया.
म्यांमार के वेस्ट रहाइन स्टेट में रोहिंग्या मुसलमानों की आबादी करीब दस लाख है. लेकिन उनकी जिंदगी प्रताड़ना, भेदभाव, बेबसी और मुफलिसी से ज्यादा कुछ नहीं है. कौन ये रोहिंग्या मुस्लिम पूरी कहानी इस लिंक पर पढ़ सकते हैं.