न जाने कितनी ही लड़कियों की शादी उसके पंद्रहवें जन्मदिन से पहले कर दी जाती हैं. इनमें से कुछ लड़कियों की शादी तो आठ या नौ साल की उम्र में भी कर दी जाती है. अगर यही गति बनी रही तो 2011 से 2020 के बीच 14 करोड़ से ज्यादा लड़कियों की 18 से कम उम्र में शादी हो जाएगी. पुरानी परंपरा के अनुसार भारत के कई राज्यों में होने वाली शादियां तय तो बचपन में हो जाती थीं, लेकिन लड़कियों का गौना बाद में होता था.
गुड्डा-गुड़ियों की शादी कराने की उम्र में इन बच्चों की शादी करा दी जाती है. वो बच्चे जिनको शादी का मतलब भी नहीं पता होता है, उनको इस बंधन में बांध दिया जाता है.
सरकार ने कानूनी तौर पर लड़के और लड़कियों के विवाह की एक न्यूनतम आयु तय कर रखी है. लड़कों के लिए यह 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष. अगर विवाह के समय इनमें से किसी की भी आयु इससे कम होती है, तो वह विवाह, बाल-विवाह की सूची में आता है.
यह रिपोर्ट हमारे सामाजिक जीवन के उस स्याह पहलू की ओर इशारा करती है, जिसे अक्सर हम रीति-रिवाज और परम्परा के नाम पर अनदेखा कर देते हैं. क्या विडम्बना है कि जिस देश में महिला राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हो चुकी हों, वहां बाल विवाह जैसी कुप्रथा के चलते लड़कियां अपने अधिकारों से वंचित कर दी जाती है.
किशोरावस्था एक ऐसी अवस्था होती है, जिसमें हम हजारों सपने बुनते हैं. कुछ करने की, कुछ बनने की सोच होती है. इस अवस्था में बच्चों का शारीरिक - मानसिक विकास तेजी से होता है. ऐसे में अगर उनके माता -पिता उनका बाल विवाह कर देते हैं, तो उनके सारे सपने अधूरे रह जाते हैं. वे अपना बचपन नहीं जी पाते. बचपन के खेल कूद, दोस्तों व सखी-सहेलियों के साथ हंसी-ठिठोली और कुछ करने-बनने के जो हजारों सपने होते हैं, वे सब ख़त्म हो जाते हैं.
ये सपने खत्म न हों, किसी का बचपन न छीने, कोई कम उम्र में विधवा न बन जाए, इन सभी समस्याओं को दूर करने के लिए बाल-विवाह का समूल उन्मूलन जरूरी है. यह केवल कानून बनाने या उसका कड़ाई से पालन करने से सम्भव नहीं है. इसके लिए तो समाज में जागरूकता लानी होगी, लड़कियों की शिक्षा को बढ़ावा देना होगा. कुरुतियों के खिलाफ एकजुट होकर आवाज उठानी होगी. तब शायद हम इस बाल विवाह का अंत करने में सफल हो सकेंगे.
विश्व स्वास्थ्य संगठन, यूनिसेफ, यू.एन.एफ़.पी.ए. और विश्व बैंक की ओर से तैयार की गई ‘मैटर्नल मॉर्टेलिटी रिपोर्ट’ (2007) के अनुसार, पूरी दुनिया में गर्भावस्था या प्रसव के दौरान हर साल 5.36 लाख महिलाएं मर जाती हैं. इनमें से 1.17 लाख मौतें सिर्फ़ भारत में होती हैं.
तेज़ी से बढ़ती आबादी से चिंतित भारत के सामने एक और चिंता खड़ी हो रही है. यहां लड़कियां इतनी कम उम्र में मां बनने लगी हैं कि उनका बचपन भी पूरी तरह से नहीं जाता. चिंता की बात तो यह है कि इसमें तेज़ी से वृद्धि होती जा रही है, जिनमे गांवों ने शहरों को पीछे छोड़ दिया है. गांवों में 20 वर्ष से कम उम्र में मां बनने वाली लड़कियों में 5.9 प्रतिशत तो शहरों में 3.9 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.
यह खुलासा नेशनल सैम्पल सर्वे ऑर्गेनाइजेशन की रिपोर्ट से हुआ है. जिसमें बताया गया है कि लड़कियां कितनी कम उम्र में मां बन रही हैं. गांवों में तो 20 वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते लड़कियां दो बच्चों की मां तक बन जा रही हैं. इस रिपोर्ट से एक बात और सामने आ रही है कि सरकार की लाख कोशिशों के बावजूद ग्रामीण इलाकों में बाल विवाह पूरी तरह से नहीं रुक पाया है.
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इस दिशा में ठोस कदम नहीं उठाए गए और लोगों को जागरूक नहीं किया गया तो देश की जनसंख्या विस्फोटक गति से बढ़ने के साथ जच्चा-बच्चा दोनों की सेहत पर असर पड़ेगा. क्योंकि 20 साल जैसी नाजुक उम्र में मां बनने का सीधा और बुरा असर मां और बच्चा दोनों की सेहत पर पड़ता है.
क्या है कानून?
बाल विवाह की कुरीति को रोकने के लिए 1928 में शारदा अधिनियम बनाया गया था. इस अधिनियम के मुताबिक नाबालिग लड़के और लड़की का विवाह करने पर जुर्माना और कैद हो सकती थी. आजादी के बाद से इस अधिनियम में कई संशोधन किए गए. 1978 में हुए संशोधन के तहत लड़की की शादी की उम्र न्यूनतम पंद्रह वर्ष से बढ़ा कर न्यूनतम अठारह वर्ष और लड़के की न्यूनतम अठारह वर्ष से बढ़ा कर न्यूनतम इक्कीस वर्ष कर दी गई. ‘बाल विवाह प्रतिषेध अधिनियम -2006’ की धारा 9 और 10 के तहत बाल विवाह के आयोजन पर दो वर्ष तक का कठोर कारावास तथा एक लाख रुपए का जुर्माना, या दोनों का प्रावधान किया गया है.
ये हैं बड़ी वजहें-
तमाम जागरुकता अभियानों और लड़कियों की शिक्षा पर जोर के बावजूद आखिर तस्वीर ऐसी क्यों है? ग्रामीण इलाकों में अब भी लड़कियों को एक जिम्मेदारी समझा जाता है. मां-बाप और घरवाले जल्दी उसके हाथ पीले कर अपनी इस अहम जिम्मेदारी से मुक्त हो जाना चाहते हैं. इसलिए खासकर ग्रामीण इलाकों में लड़कियों के 15-16 वर्ष की उम्र तक पहुंचते ही उनके लिए भावी वर की तलाश शुरू हो जाती है.
सामाजिक कार्यकर्ता प्रभात कुमार कहते हैं, 'इसके पीछे अशिक्षा के अलावा आर्थिक और सामाजिक वजहें भी हैं. गांवों में यह माना जाता है कि बढ़िया वर हमेशा नहीं मिलता. इसलिए कोई योग्य वर मिलते ही मां-बाप अपनी बेटी के हाथ पीले कर निश्चिंत हो जाना चाहते हैं.'
ग्रामीण इलाकों में तमाम सहूलियतों के बावजूद पूरी अर्थव्यवस्था खेती पर टिकी है. इसलिए फसल बेहतर होने की स्थिति में मां-बाप अपनी इस जिम्मेदारी से मुक्ति पा लेना चाहते हैं. वहां दहेज अब भी एक अभिशाप के तौर पर मुंह बाए खड़ा है.
इससे पहले राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण की एक रिपोर्ट में भी कहा गया था कि देश में 74 फीसदी युवतियों की शादी 20 की उम्र तक पहुंचने से पहले हो जाती है. उस रिपोर्ट में इसकी कई वजहें गिनाई गई थीं. उनमें शादी पर होने वाला खर्च, पुरुष प्रधान समाज में लड़कियों की इच्छा-अनिच्छा पर कोई ध्यान नहीं देना, अशिक्षा, सामाजिक परिस्थिति और उम्र शामिल है. वैसे भी तमाम दावों के बावजूद देश के कई राज्यों में अब भी बाल विवाह का प्रचलन है.
Source : UNFPA , DHS 2005-06, SAVE THE CHILDREN
साभार http://hindi.news18.com/news/nation/mothers-day-under-age-pregnancy-in-india-990141.html