चार साल बीत गए लेकिन आज भी यहां कुछ बदला नही है कॉलेज का वो पहला दिन याद है। वो पहली क्लास थी, उस दिन हम सब की घबराहट को कैसे सिद्धार्थ अग्निहोत्री सर ने एक दम फुर्र कर दिया था। पहले दिन सिर्फ इं
रेहान ने नादिया को रोते देख कर गहरी सांस ली और उसका हाथ छोड़ दिया। "पहले अपना दुपट्टा ठीक करो और फिर यहां से चली जाना।" रेहान ने सख्त आवाज़ में कहा और तो नादिया ने जल्दी से अपना दुपट्टा ठीक किया औ
लड़का होना गुनाह हो गया है आजकल जमाना कितना बदल गया है आजकल । एक जमाना था जब लड़की होना गुनाह था । अब जमाने ने पलटी मारी है और अब लडका होना गुनाह हो गया है । एक वाकया सुनाता हूं । लखनऊ की व्
कोरेन्टाइन यानि एकांत वास एक दिन मैं ऑफिस में काम कर रहा था कि मेरे साथ काम करने वाले एक साथी सुनील का फोन आया " मैं कोरोना पोजिटिव निकला हूं " यह सुनकर मैं धक्क से रह गया । धक्का इस बात का नही
ये ना सोचो कि मुहब्बत में यार से क्या मिला खुशी या आंसू मुकद्दर है किसी से क्या गिला रूहानी इश्क वाले कभी शिकायत नहीं करते बेवफाई भी कुबूल है समझेंगे है उसका सिला श्री हरि
श्रवण ने घर आकर कुछ देर राहत की सांस ली, वह सोफे पर लेटे लेटे सोचता रहा कि उसकी जिंदगी तो जैसे एक दौड़ती हुई गाड़ी बन चुकी थी जब देखो नए नए प्रोजेक्ट्स पर काम करना, न खाने का टाइम न पीने का टाइम, यहां
रोज की तरह आज भी दोपहर एक बजे ऑफिस में लंच टाइम हो चुका था पर श्रवण अपने केबिन मे हाथ में कोरा कागज और पेन पकड़े न जाने किस उधेड़बुन में था तभी उसके दिल से आवाज आई, “ ये कैसी जिंदगी है, सब
आज गोधूलि और बेला फिर से लड़ पड़ीं । वैसे उन दोनों में लड़ाई होना नित्य कर्म के जैसा है । बल्कि यह कह सकते हैं कि यह उनका अनवरत क्रम है । ऐसी कौन सी बात है जिस पर लड़ाई नहीं होती है उनमें । घर में सब्जी क
आरोगोराजस्थान में "जीमण" का बड़ा शौक है । इतना कि महसूस होता है जैसे लोग जिंदा ही "जीमण" के लिए हैं । अगर कोई आदमी मर रहा हो और कोई उसे "जीमण" का निमंत्रण दे दे तो वह आदमी "जीमण" के लिए मौत से कुछ इस
कलेक्टर अविनाश की एक विशेषता थी । चाहे काम कितना ही हो , आज का काम आज और अभी ही होगा । इसके बावजूद शाम को 6 बजे तक ही ऑफिस में बैठना है , इसके बाद नहीं, यही उसूल था उसका । सामान्यत: कलेक्ट
रोज की तरह सूर्यदेव सुबह सुबह घूमने निकले । सूर्यदेव जहां जाते हैं अपने साथ प्रकाश , ऊर्जा , आशा, विश्वास, सकाराकता और जीवन लेकर जाते हैं । इस कार्य में पवन देव उनकी मदद करते हैं । सुबह सुबह पवन
जब जिले में कोई नया कलेक्टर आता है तो उसके नजदीक आने की हर अधिकारी , कर्मचारी और जन प्रतिनिधियों में होड़ सी लग जाती है । सबको ऐसा लगता है कि चाहे अपने पारिवारिक सदस्यों के नजदीक सों अथवा ना हों पर स्
सखि, जब आदमी का गुरूर सातवें आसमान पर पहुंच जाता है तो आम आदमी ही इस गुरूर को तोड़कर ऐसे आदमी को सबक सिखाता है । लोकसभा उपचुनाव के परिणाम यही बता रहे हैं सखि । अभी हाल ही में तीन लोकसभा क्षे
देख देख बुड्ढे को चैन नही है इतनी बारिश हो री है पर मजाल है ये चैन से बैठ जाए।जब तक गिर नही जाएगा इसे चैन नही आने का।"इमरती देवी अपनी दस साल की नातिन चीनू से उसके नाना जी के विषय मे कह रही थी। इमरती द
मन्नू की विदाई हो रही थी सुबह के चार बजे थे । मन्नू की मां यही सोच रही थी कि जल्दी से मन्नू की विदाई हो जाए अगर नन्हा आशू उठ गया तो कोहराम कर देगा।आशू मन्नू का भतीजा था जब से पैदा हुआ था अपनी बुआ के स
लाजो जी को रितिका का यूं उठकर जाना अच्छा नहीं लगा था । प्रथम की शादी को पांच साल हो गये थे मगर अभी तो "मैडम" जी का मन "मस्ती" करने में ही रमा हुआ है । घर गृहस्थी की जिम्मेदारी क्या बुढापे में संभालेगी
एक सुबह आर्यमा अपने काम के लिेये निकलने ही वाली थी कि उसके फोन पर एक मैसेज आया, “मैं आ रहा हूं आज शाम”, आर्यमा मुस्कुराने लगी, बादल का मैसेज था। कुछ साल पहले बादल और आर्यमा एक साथ काम कर रहे थ
सखि, एक कहावत तो सुनी होगी कि जो जैसा बोता है वह वैसा ही काटता है । यह बात सब लोग जानते हैं मगर मानते नहीं हैं । लोग इतने मतलबी हैं कि जब मौका मिलता है तो गधे की तरह दुलत्ती झाड़कर वे अपने ही माल
एक कहानी जिसे उर्वी ने खुद अधूरा छोड़ दिया, वो छोड़ आई उसे बहुत पीछे, जिसके साथ चलना उसकी तकदीर थी। अपने एक फैसले की सजा खुद को देती रही उर्वी लेकिन जब उसका अतीत लौटा तो मंजर कुछ और ही हो
आज लाजो जी ने ठान लिया था कि वह प्रथम और रितिका से बच्चे के बारे में बात अवश्य करेगी । अमोलक जी भी घर पर आ गये थे इसलिए उनके कंधे पर बंदूक रखकर दागी जा सकती थी । उन्होंने प्रथम और रितिका को शाम की चाय