तमन्ना कब हुईं तुमको, मेरे नज़दीक आने कीमुझे बाहों में भर के सांसों में, मेरी समाने कीमैं जिसमें घिर गया ऐसे, जो सारा होश खो बैठाकहानी कुछ तो बतलाओ, मुझे अपने फसाने कीछोड़ दो तुम सभी चिंता, भगा दो दूर हर डर कोकसम मैंने तो खा ली है, तुमसे रिश्ता निभाने कीमुहब्बत कोई भी कर ले, मगर ये सच ना बदलेगाहुस्न
यूँ ही ना चैन से बैठो, ज़रा कोशिश तुम भी कर लोबेडियां तोड़ दो जग की, मुझको आगोश में भर लोनिभाते जाओगे क्या उम्र भर, केवल धरम अपनापरेशानी हर एक इंसान की, ना खुद के ही सर लो ज़माना क्या दिखेगा खुद ही गर, तुम उड़ नहीं सकतींएक परवाज़ ऊँची सी भरो, और फैला
कोई नाता है जन्मों का, तभी तो याद आती हैतेरी हर चीज़ यूँ ही थोड़े, मेरे मन को लुभाती हैमेरे खूं का हर इक कतरा, खुशी में झूम उठता हैमुझे आवाज़ दे और मुस्कान दे, जब तू बुलाती है जब भी आगोश में भर के, तूने मस्तक ये चूमा हैहजारों फूल खिलते हैं, गीत धड़कन भी गाती हैतेरी ह
मुहब्बत तेरे सीने में, अगर मुझ सी पली होती कमी मेरी दो बाहों की, तुझे हरदम खली होतीअगर तुम साथ में रहते, तो रौनक बज्म में होती ये शब देखो निरी तन्हा, ना फिर ऐसे ढली होतीढूँढ़ने साथिया मन का, जब भी राहें चुनी मैंने काश उन राहों में शामिल, एक तेरी गली होतीकभी ऐसे भी
तेरी मेरी मुहब्बत का मज़ा अल्लाह भी लेता हैतभी कुछ दूरियां वो दरम्यान हम सबको देता है लाख कोशिश करी मैंने, और सबने भी समझायाये मन राहें मुहब्बत में, ना पर कहने से चेता है अब ये जां मेरी तुम ही कहो , आ
तेरे मेरे बीच ना अब कोई दीवार हैजानेमन तू जान ले ये ही तो प्यार हैचढ़ गया एक बार तो उतरेगा ही नहींइस इश्क में होता सदा ऐसा खुमार है तू पास है मुझको पता चल ही जाएगा खुशबू भरी आती अगर कोई बयार हैतू मुस्कुरा रही है गर तन्हाई में कहीं फूलों में दिख जाती मुझको बहार है जो सुख मुझे तेरे क़रीब आने से मिलेमध
एक तुम ही हो जिसने, मेरा जीवन संवारा हैमेरी इन धड़कनों ने नाम, बस तेरा पुकारा है मतलब का कोई खेल, न ये बातें मेरी समझोहर एक लफ्ज में मैंने दिया, तुमको इशारा हैएक तुम ही नहीं तन्हा, बेबसी मैं भी सहती हूँकितनी दुश्वारियों से वक्त, सोचो मैंने ग
किस्मत के धोखे,ज़िन्दगी में, जब भी आते हैंकुछ भी करो, दिल को मगर, वो तो दुखाते हैंकभी सोचा ना था, यूँ ज़िन्दगी भी, रूठ जाएगीकुछ अपने , मुझे तो कोस के , हरदम सताते हैं मेरी कमजोरियां, मुझपे हमेशा, राज करती हैंसितारे भी, नई कोई राह ना, मुझको दिखाते हैं बिना चाहत के रिश्तों के, बोझ सब, सह नहीं सकते मेर
लो वादा कर दिया मैंने तुम्हें ना याद करने कारकीबों को मिलेगा अब पूरा मौका संवरने कामेरी चिंता नहीं करना मौत मुझको ना आएगीमुझे मालूम है रस्ता हर एक ग़म से उबरने कासभी ये जानते हैं छोर पे उस कुछ ना पाओगेलेकिन मज़ा कितना है राहे उल्फ़त गुजरने काख्वाइशें तैरने की तो ज़माने भर की रहती हैंसफलता को मगर फन चा
मुहब्बत कर तो ली मैंने, मगर लुट कर ये जाना हैमुकम्मल हो नहीं सकता, ये बस ऐसा फ़साना हैख्वाब तो लुट गए सारे, अब तो मायूस बैठा हूँटूटे ख्वाबों की लाशों को, उमर भर अब उठाना हैकोई दिल की नहीं सुनता, सभी रिश्तों के हामी हैंबड़ा नफरत भरा भीतर से, पर सारा ज़माना है वो करता है, वो डरता है, संवरता
ढूँढते हैं निशां तेरे, जब भी बगिया में आते हैंमुहब्बत के गीत भंवरे, यहाँ अब भी सुनाते हैं ज़रा मौसम यहाँ बदला, डालियाँ सज गई सारी बिना तेरे फूल खिलते हुए, पर ना लुभाते हैंमैं तो चुप हूँ मगर, झरने तो हरदम शोर करते हैंतड़प के आह भर, ये तो तुम्हें अ
वज़्न - 122 122 122 122, अर्कान - फऊलुन फऊलुन फऊलुन फऊलुन, बह्र - बह्रे मुतक़ारिब मुसम्मन सालिम, काफ़िया - आएँ स्वर, रदीफ- जाएँ"गज़ल"बहुत सावधानी से आएँ व जाएँडगर पर कभी भी न गाएँ बजाएँमिली जिंदगी को जिएँ शान से सबहक़ीकत चलन को बनाएँ सज़ाएँ।।बड़ी गाड़ियों के बड़े हैं नजारेबचें आप खुद ही न दाएँ से
ज़िन्दगी कुछ ही दिनों की मेहमान होती हैहर इंसान की आखिरी मंज़िल श्मशान होती है परिंदो के परो को क्यों मिसाल दी जाती है जबकि परो से नहीं हौंसलो से उड़ान होती है मेरे सपनो का हिन्दोस्तान है कुछ ऐसा की जहाँ इंसानियत सबका धर्म सबकी शान होती है ना जाने क्यू लोग धर्म बनाते है बांटने के
कभीखुश्क तो कभी नम सा हो रहा है,मिजाज़मौसम का भी तुम सा हो रहा है, तुम होयहीं कहीं या चली गयी हो वहीँ,तआवुन दिल से तभी कम सा हो रहा है, इल्म हैदुनिया इक मुश्त खाके-फ़ानी,ना जानेक्यों अभी वहम सा हो रहा है, ईलाज़े-दर्दमुमकिन नासूर का था नहीं,ये अज़बअज़ाब जभी रहम सा हो रहा है
पुछा है कि दिन-रात,क्या सोचताहूँ मैं,इश्क इबादत, नूर-ए-खुदा सोचता हूँ मैं, रस्मों-रिवायत की नफरत से मुखाल्फ़त, रिश्तों में इक आयाम नया सोचता हूँ मैं, मसला-ए-मुहब्बत तो ना सुलझेगा कभी,मकसद जिंदगी जीने का सोचता हूँ मैं, इक बार गयी तो लौटी ना खुशियाँ कभी,कैसे भटकी होंगी व
जय नव दुर्गा ^^ जय - जय माँ आदि शक्ति -, वज़्न-- 1222 1222 122, अर्कान-- मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन, क़ाफ़िया— आया (आ स्वर की बंदिश) रदीफ़ --- कहाँ से....... ॐ जय माँ शारदा.....! 1 मुहब्बत अब तिजारत बन गई है 2. मै तन्हा था मगर इतना नहीं था "गज़ल"किनारों को भिगा पाता कहाँ सेनजारों को सजा जाता कहाँ सेबंद थ
तुम सामने पड़े तो ये मन खुशियों से भर गयाढलका हुआ तेरा चेहरा भी थोड़ा निखर गयाखुशियाँ मिली थी एक तरफ़ मायूसी कम नहींगुल वो खिला गुलाब का कितना बिखर गयामन को मेरे तो चैन था हाथों में जब था हाथ छोड़ा जो तूने संग न जाने वो भी किधर गयाक्या तुमको अभी याद हैं लम्हें वो इश्क केजिनके लिए ये वक्त भी हँस कर ठहर
वक्त की ज़द में कुछ भी हो तुम फिर भी रहना पड़ता हैतेरे बिन इस तन्हाई का ग़म मुझको भी सहना पड़ता हैकितना भी कोई संयम रख ले दर्द तो दिल में होता हैपीर बढे जब हद से ज्यादा उसको तो कहना पड़ता हैकितनी सूरत मिलती हैं इस नदिया को निज जीवन मेंइसके जल को लेकिन फिर भी हरदम बहना पड़ता हैकितना भी कोई गर्व करें
कोई परदा नहीं जब बीच गैर हम हो नहीं सकतेकिसी और की बाहों में अब तुम सो नहीं सकते बड़ी मुश्किल से मिलती हैं दौलतें प्रेम की जग मेंकोई कीमत लगाओ अब इसे हम खो नहीं सकते मुहब्बत में खुदा एक दूजे को हम ने बनाया हैकोई नफ़रत के बीज बीच में हम बो नहीं सकतेपीर सीने में जो उठती है तुम कहाँ देख पाओगेदिखा के इस
काफ़िया- आ स्वर, रदीफ़- रह गया शायद“गज़ल”जुर्म को नजरों सेछुपाता रह गया शायदव्यर्थ का आईनादिखाता रह गया शायद सहलाते रह गया कालेतिल को अपने नगीना है सबकोबताता रह गया शायद॥ धीरे-धीरे घिरती गईछाया पसरी उसकी दर्द बदन सिरखुजाता रह गया शायद॥ छोटी सी दाग जबनासूर बन गई माना मर्ज गैर मलहमलगाता रह गया शायद॥