तेरी मेरी मुहब्बत का मज़ा अल्लाह भी लेता है
तभी कुछ दूरियां वो दरम्यान हम सबको देता है
लाख कोशिश करी मैंने, और सबने भी समझाया
ये मन राहें मुहब्बत में, ना पर कहने से चेता है
अब ये जां मेरी तुम ही कहो , आखिर बचे कैसे
जब अपना गला खुद ही मैंने, उल्फ़त में रेता है
भले अपनी अदाओं से, वो ग़म अब मुझको देता है
क्या करूँ मैं तुम ही कह दो, वो जब मेरा चहेता है
मुहब्बत की खुशी चाहे, मुझे मिलने नहीं पाई
ग़म उल्फ़त के पाने में तो बस, मधुकर विजेता है