मुहब्बत कर तो ली मैंने, मगर लुट कर ये जाना है
मुकम्मल हो नहीं सकता, ये बस ऐसा फ़साना है
ख्वाब तो लुट गए सारे, अब तो मायूस बैठा हूँ
टूटे ख्वाबों की लाशों को, उमर भर अब उठाना है
कोई दिल की नहीं सुनता, सभी रिश्तों के हामी हैं
बड़ा नफरत भरा भीतर से, पर सारा ज़माना है
वो करता है, वो डरता है, संवरता है, मुकरता है
मेरा महबूब कुछ उम्मीद से, ज्यादा सयाना है
कभी ममता की ज़ंजीरें, कभी रिश्तों की बेडी हैं
मेरा महबूब तो मधुकर, फ़कत करता बहाना है