यूँ ही ना चैन से बैठो, ज़रा कोशिश तुम भी कर लो
बेडियां तोड़ दो जग की, मुझको आगोश में भर लो
निभाते जाओगे क्या उम्र भर, केवल धरम अपना
परेशानी हर एक इंसान की, ना खुद के ही सर लो
ज़माना क्या दिखेगा खुद ही गर, तुम उड़ नहीं सकतीं
एक परवाज़ ऊँची सी भरो, और फैला ये निज पर लो
छवि जो भी तुम्हें दिल का सुकू, शिद्दत से देती है
छोड़ के भय कहीं पीछे, उसी को पलकों में धर लो
अरे मालूम है तुमको ये जब, तुम चैन हो उसका
कम से कम पीर मधुकर की, हाथों में हाथ ले हर लो