तुम सामने पड़े तो ये मन खुशियों से भर गया
ढलका हुआ तेरा चेहरा भी थोड़ा निखर गया
खुशियाँ मिली थी एक तरफ़ मायूसी कम नहीं
गुल वो खिला गुलाब का कितना बिखर गया
मन को मेरे तो चैन था हाथों में जब था हाथ
छोड़ा जो तूने संग न जाने वो भी किधर गया
क्या तुमको अभी याद हैं लम्हें वो इश्क के
जिनके लिए ये वक्त भी हँस कर ठहर गया
कितनी करीं थी कोशिशें फैले ना जग में बात
परचम जज्बातों का मगर मधुकर फहर गया