घायल परिंदा
उडता था खुशी से आसमान में एक आझाद परिंदा,
था सारा आसमान बाहों में लेना का उसका ही वादा,
खुश होकर हवा पे घूमता रहता वह पर अपने फैलाये,
साथी बनकर कितने अनजाने साथ उसके चलने आये!
पैदा हुंवा था तब जमीं के एक पेड पर बनाया घौसला,
बडा होने पर पंखों से ऊंचा उडने का मिला नया हौसला,
छोटी छोटी उडान भर कर अब आसमा की करे वो सैर,
जमीं के पेड को उसने कर दिया मतलबी होकर अब गैर!
उडते उडते इतना ऊंचा उडा की पहचान अपनी भूल गया,
बादलों में गुमसुम हुंवा की छांव से धूप में निकलना भूल गया,
एक दिन उसे मिला उससे भी खूबसुरत एक प्यारा सा परिंदा,
उसके रंग में ढलते ढलते वह अपनी अदायें दिखाना भूल गया!
हसी खुशी में उसके संग कट रहे थे दिन रात के हसी पल,
भूल गया लेकिन वह अपना उसके साथ आनेवाला जो कल,
उम्मीदें कई उस अनजान परिंदे से लगाकर बैठा था वह,
उससे अलग होकर भी उसीका बिन समझे हो बैठा था वह!
भयानक आई आंधी तूफान नाजूक परिंदा टूटकर यूं बिखडा
उसके मुलायम काया और पर बिखडकर हवा में फैल गये,
दुसरे परिॅदा का हौसला टूटा अपने प्यार का अनजाम देखकर,
खुशियों से झूमनेवाले परिंदा मायूस होकर घायल हो बैठा!
चारों ओर फिजावों में छाई हुंवी उसके नाउम्मीदी की लहर,
कुदरत ने दो मासुमों पर ये कैसा बरसाया था अपना कहर,
बडा ताकदवर था वह एक पल में अपना हाल संवार देता वह,
पर मन के अंदर से था वह टूटा फूटा तो वजूद अपना भूला !
फिर एक पल में क्या हुंवा सारी उदासी छटककर खडा हुंवा,
परों को मजबूती से फैलाकर अब आसमान की ओर वो चला,
अब वह साथी ढूंढने नहीं बल्कि साथ निभानेवाला हरेक का बना,
किसी एक के लिये जीने से अच्छा व ओरों का दर्द मिटाने चला,
घायल होकर खुद वह दुसरों का आज मरहम बनने निकल चला!