कौन है दुनिया में ऐसा आज,
ना होता घर पे जिसका राज,
हर एक के यादों में समाया,
घर का हर एक कोना खास!
हे देश में हो या विदेश में,
झोपडी हो या फिर महलों में,
सकुन का आखिरी मुकाम घर,
याद आता मुझे मेरा प्यारा घर!
जवानी, बूढापा संग उस घर में,
खेला शरारतों से भरा बचपन,
क्या बचपन, क्या ही पचपन,
साथ जिया हमने सारा लडकपन!
पढाई के लिए मार कितना खाया,
पीठ पे शाबाशी का हाथ जो पाया,
गुस्से से मुलाकात पहली बार हूंवी,
प्यार भी हमने ढेर सारा वहीं पाया!
दादा दादीजी से ढेर कहानीयां सुनी,
दोस्तों संग मौज मस्ती हमने खुब की,
बहन भाई संग का हमारा वर्ड वॉर,
आज तक का कोई ना समाप्ती हुंवी!
सांसों के हर एक कोने में हम सबके,
एक उम्मीद बनकर समाया वो घर,
कभी यादों से निकलकर वक्त वक्त,
बेकरार होकर मिलने आता है हमसे!