खुब सारे विषयों से रोज,
प्रतिलिपी जी ने नवाजा है,
प्यार से नफरत तक लेकर
अब विनाशकारी पे छोडा है।
खुब भर भरके उधेड दे दिये,
हमने भी जज्बात सारे अपने,
गुस्से के संग हमने तब परोसे,
प्यार के कुछ लजीज पकवान।
यहाँ तक की वैम्पायर से तक,
प्यार नोश फरमाया था हमने,
जो ना अब तक पता लगा था,
वो खुद को भी तलाशा हमने।
आज लिखना विनाशकारी पर,
अच्छी उतनी विनाशक बातें है,
शक, झूठ, धोखा और जाने क्या,
कितने बातों ने रिश्ता है तोडा।
कभी कभी तो गलती ना होकर,
भूगतते है कुछ अकेलापन का शाप,
रिश्तों के खातिर कुछ तो अपनी ही,
पहचान तक असली भूल जाते है।
पर इगो के चलते नाजाने सामनेवाला,
किसी ओर की कब जाने सुनता है,
मनमुताबिक ही सोच के कारण वो,
एक खुबसुरत कल को हमेशा मुकता है।
विनाशकारी सुनामी से ज्यादा ही वो,
एक पल में अपना नुकसान वो करवाता,
बस चंद पल का रह जाता बनके साथ,
उम्र तनहाई में गूजरके अकेला रह जाता।
बाजू कर दो शक, गुस्सा, नफरत, इगो को,
सोचो किसी ओर के नजरियों से भी कभी,
हमेशा प्यार का अंत जूदाई, दर्द ही हो यहाँ,
ये जरुरी तो नहीं होता है ना कहीं रिश्ते में।