छोटी मासूम नयनों में,
था उसके खुशी का डेरा,
पर नाजाने कुछ गम का,
निशान था तन पे गहरा।
रास्ते किनारे बैठी बिचारी,
कब से नाजाने भूखी प्यासी,
वक्त के सक्त हालातों ने,
हुँवी थी जरासी वो रुहासी।
नाम , पता तो कुछ ना बताती,
थी वो जनम से ही लाचार,
पर किसीसे कुछ मदद ना लेती,
खुद्दारी से भरा था उसका आचार।
पहली नजर में मुझे वो भाँ गई,
जूड गये कुछ अपनेपन के तार,
देख उसे इस हाल में क्यूँ नाजाने,
छेड गये कितने ही दर्द के सितार।
समझ ना आ रहा जाऊ या नहीं,
कैसे उसकी खामोशी मैं सून पाऊ,
फिर कुछ खयाल आया मेरे मन में,
फट्से चेहरे पर आई मेरे मुस्कान।
हाथ मेरे बेटी का मैनें यकिन से,
दिया उसके हाथों में अचानक थाम,
देख अचंभित हूँवी मेरे इस बात से,
ना कर पाई वो साथ चलने से इनकार।
खिला पिला के कुछ मैं उसको प्यार से,
ले गई पुलिस के पास, डरी रह गई वो,
लिपट के मुझसे कुछ खामोश आँखे ही,
करने लगी साथ ले चलने की मनोहार।
रपट लिखवाकर पुलिस स्टेशन में,
साथ में उसको ले आई अपने घर,
दो हाथों को थामे नन्हें फरिश्तों ने,
अब किया है मेरा जीवन खुशहाल।
दुँवा यहीं निकलती की अब तो,
ना छिन जाये उस मासूम का प्यार,
जो कल अनजानी होकर भी क्यूँ ही,
दे गई अपनेपन का प्यारा उपहार।