बडी भांती थी हमें स्कुल में छुट्टी,
बाकी के दिनों से थी हमारी कट्टी,
सुबह जल्द स्कुल जाने को उठना,
आधी अधूरी नींद में ही तैयार होना!
दूध से तो मानो नफरत थी हमें,
देखके दूर भागने का मन करता,
स्कुल बस की घंटी की आवाज,
लगती हाय तोबा कोई हो सजा!
स्कुल बस से निकलकर भागना,
भागते भागते ही बॅग को रखना,
फिर दौडे दौडे लाईन में लगना,
हाय कितना बोरिंग लगता था!
फिर हाथ जोडकर होती प्रेयर,
लगता जैसे गले में लटका टायर,
पर मजेदार लगती हमें कहानीयां
जो बारी बारी थी सबको सुनाना!
फिर पहला पिरेड होता अंग्रेजी का,
स्पेलिंग मारके मुंहजुबानी रटवाने का,
मराठी लगती थी मुझे कितनी प्यारी,
थी उसके संग जनम जनम की यारी!
मॅथ्स के नंबर और प्रमेय से हूं परेशान,
पर चित्रकला देता था मुझे बस आराम ,
फिर तीन पिरेड बाद होती छोटी छुट्टी,
कैद से निकल कर मिलती आझादी!
दस मिनीट यूंही देखा देखी बित जाते,
चौथा पिरेड होता सबसे भयानक विज्ञान,
भला हर एक शास्त्रज्ञ को कौन रखे ध्यान,
फिर कार्यानुभव का होता एक पिरेड,
सारी कारागिरी दिखाने का सुनहरा मौका!
फिर होती थी खाने की आधे घंटे की छुट्टी,
घर जाकर मालिका देखते खाते थे हम खाना!
ठीक साडे तीन बजे खत्म होती थी हमारी छुट्टी,
छटा पिरेड होता फिर इतिहास या फिर भूगोल,
वो था मेरा सबसे फेवरेट वाला स्कुल का सब्जेट,
फटाफट जबाब देकर करते थे हम सर को इंम्प्रेस!
फिर आती बारी हमारी प्यारी राष्ट्रभाषा हिंदी की,
कविता पठन करने की हर बार हरेक की होती बारी,
आठवा और आखिरी पिरेड होता था सबका मनचाहा,
पीटी में खेल कूदकर दिनभर का होता हमारा गूजारा!
छटी सातवी कक्षा तक खूब खेल कूद में हमें मजा आता,
आठवी कक्षा में जाते ही थोडा थोडा कर खेलना बंद हुंवा,
फिर आधा घंटा बित जाता था दोस्तों संग बातचीत करने में,
साडे पांच बजे हम आझाद होकर घर के तरफ भागके जाते!
कितना बूरा लगता था स्कुल के समय में स्कुल हमें जाना,
पर सच कहू सोचू आज तो वहीं था अनमोल खजाना,
कोई मांगे मुझसे आगे की पूरी जिंदगी और दे वहीं बचपन,
तो हसके मैं कबूल करु उसका सौदा, फिर करु लडकपन!