सर्द में नरमाई सुबहे,बारीशों में बिते दोपहरे,
कुछ गुस्सेल शामें, मनाते गूजरी वो रातें,
कभी प्यार की फुंवार, कभी बेबजह की नाराजगी,
कभी बिन बोले पास आना, कभी खुद ही दूर रहना !
कैसी बिती तुझ संग मेरी जिंदगी, तू कहता है मुझे बस,
एक पल में मैं भूला दू, तुझे अपने भीतर से निकाल दू,
जो ना होती तुझसे बातें, अधूरी सी बिती मेरी रातें,
कई रिश्तों की तू सौगात, तुझसे थी मेरी शुरुवात !
प्यार से तेरा हर मुश्किल को मेरे सुलझाना,
कभी कभी डांट भी लगती थी तेरी मिठी वाणी,
जिंदगी ना बस तब लगती तभी बस अच्छी,
जिॅदगी थी मेरी मां और मैं थी नादान बच्ची!
कुछ आरजू थी पनपती अंदर,
जिंदा थे हम भीतर,
कल के सपने थे बेशुमार,
रहते थे हम ख्बाब पे सवार !
क्या गलती थी हमारी की,
हद से ज्यादा तुझे चाहना,
या आज तुझे भूला ना पाना,
रब से दुवाओं में तुझे मांगना,
बिन चाहे तुझे किसी ओर ने पा लिया,
यू छूटा मुझसे ही मेरा साया
कैसे भूला दू जिंदगी का अफसाना,
,वक्त का तेरी याद में हर बार रुलाना !
दिल का बेरहमी से टूट जाना ,
तुझे बेबजह ही खो देना,
आ सकता वापस जरुर एक बार आ,
तेरा जो भी मेरे अंदर सब ले जा!
ऐसे जा की तेरा नाम तक ना याद आये,
तेरा हर निशान मुझसे बस कोई मिटा जाये,
ना कहती मैं की वापिस से मुझे जिना आये,
पर घूट घूटकर जीना तेरी यादों में भूल जाये!