नफरत के बीज होते है कडवे,
नफरत के बोल हमेशा कडवे,
ना जाने कभी कहीं प्यार बाँटना,
जाने सिर्फ हर तरह विष बाँटना।
हर एक जगह है कटू सा वास्तव,
मानो जैसे हो कोई दहकता विस्तव,
आग भी लगाये नफरत सारी ओर,
फैली आग का ना दिखे कोई छोर।
लाख चाहो सब मिलके बूझाना,
एक चिंगारी वापस रखे जलाये,
कितनी बातों में नफरत है फैलाते,
गर बात ना हो तो बेबात ही फैलाते।
मजहब, लिंग ,प्रांत, या हो कोई देश,
रंग, रुप ,बोलचाल या कपडा लगता,
ऐसा कोई नहीं अंग जहाँ ना मिले,
नफरत के बजह से आपस में गिले।
जख्मों को रखे बस हर पल हरा भरा,
प्यार को गाली देकर समझे उसे बूरा,
पर सच लेकिन यहीं है ताकतवर हो,
नफरत एक मुकाम पर हार है जाती।