हमारे पापा की नोकरी ने
कितने शहर बदलवा दिये,
बचपन से जवानी तक हम
हर एक शहर से रुबरु हुंवे
हिंदुस्तान पूरा ही हमारा है,
ना कोई ठिकाना पराया है,
सारी बोलियां हमारी बहने,
सारे देशवासी अपने पडोसी!
माना मुश्किल है जगह छोडना,
यादों को बिच चौराहे छोडना,
दिल के कितने प्यारे रिश्तों को,
पराया कर नये बनाने छोडना!
हम अब दरबदल के मुसाफिर,
चलते रहने पर हमें है ऐतबार,
ठहरना नहीं है हमें अब मंजूर,
मंजील का नहीं अब इंतजार!
सारे ही बने अब अपने शहर,
किसको छोड करे अफसोस,
हर शहर को अपना कर हम,
आगे निकलते बस यहीं गम!