शांत नदी सा उसका मन,
मैं लडकी चंचल चितवन,
उसका प्यार सागर से गहरा,
जैसे सूरज का रोशन पहरा!
संजोक के रखता वो हर पल,
जैसे कोई आनेवाला हो कल,
कुछ तो थी बात ना जाने की,
मन बावरा बन उडने को चाहे!
गुस्सा मैं जब भी उसपे करती,
एक मुस्कराहट से बात बनाता,
मैं मौम सी पिघल कर रह जाती,
वो फिर प्यार से मुझे गले लगाता!
ऐसा था मेरे जिंदगी का राजकुमार,
जैसे कुदरत का हो अनमोल तोहफा,
नाजाने मेरी परेशानियों से लडनेवाला,
आज अशांत और मायूस लग रहा था!
बातें दिल की कब वो बताता ठीक से,
राज दिल के लबों पे आने ना देता था,
लाख कोशिश करने पर भी मैं पगली,
ना जान पाई उसके परेशानी की बजह!
इतना चाहा रब से की सारे सवाल उसके,
मैं बस हर एक का उसके जबाब बन जाऊ,
जो हो कोई राह में उसके परेशानी की डगर,
मैं उसे पार करने वाली बस पनघट बन जाऊ !
आज आया है तो थोडा इतमिनान साथ लाया,
थोडी शांती से वो हाथ मिलाकर आया है आज,
पर ये जानने को बेताब और अशांत है मन मेरा,
की क्या बजह रही थी की वो था अंदर से अशांत!