हक से माँगते है हम,
छुट्टी का एक जो दिन,
थकान मिटती है सारी,
होती खुद संग दोस्ती यारी।
शनिवार को बनते है,
ऐतवार गूजारने का तरीका
टेंशन सब छोड छाडकर,
होते है हम बेफिक्र मलिका।
छुट्टी का दिन सिखाता है,
जिने का नया सलीका,
खुद के ख्बावों को पूरा करते,
खुद को नये नजरों से मिलते।
बचे कूचे काम होते है सारे पूरे,
बाहर घूमने के बनते है बहाने,
होती है कम अपनों की शिकायत,
समझ आती अपनी काबिलियत।
बडा अनमोल दौलत होती है,
छुट्टीयों का बस हर एक दिन,
थकान सारी होती छू मंतर,
ऐसा चलता समय का चक्कर।
शायद इसलिए हो रहा होगा,
पाँच ही काम के अब दिन,
दो दिन की प्यारी सी छुट्टी,
फिर से हुनर संग कट्टी बट्टी।
क्या ही कहू छुट्टियों की कहानी,
अपनी अपनी होती है मुँहजूबानी,
मुझे शायद आपको अच्छी लगती,
छुट्टियों की हक की स्वादिष्ट मेजवानी।