भूली बिसरी कोई कहानी,
आज तुमने याद दिला दी,
बरोसे के पुराने घाव को,
हवा देकर ताजा किया।
हर किसी की एक कहानी
नफरत या प्यार की पुरानी,
मैं तो अपनी क्या ही कहूँ,
ना दोस्ती ना प्यार की बोली।
जरुरत खिंच लाई उसे पास,
ना दिल में कोई खास एहसास,
बार बार आकर चला वो जाता,
टाईमपास का रिश्ता वो निभाता।
बडा प्रक्टिकल इंसान था वह,
जरुरत जितना ही इमोशनल डालता,
ना थोडा ज्यादा, ना थोडा उससे कम,
खुद के मुताबिक ही वक्त गूजारता।
मुझे वो बंदा थोडा बेवकूफ समझता,
साथ होकर दूर का ही रिश्ता बनाता,
मैं उसमें भावनाऐ अपनी मिलाती थी,
वह दिमाग से किंमत लगात जाता था।
क्या कहूँ मैं ऐसे रिश्ते को मेरे अब,
ना नफरत है ना प्यार है मुझे अब,
जैसे आया वैसे ही आकर चला गया,
प्यार लेकिन खुद से करना सिखा गया।