एक ज़िम्मेदारी के चलते,
ख्बाव से जूदा हुँवे रास्ते,
दुनियादारी के होते हुँवे,
अपनों की ओर चले रास्ते।
एक हसता खेलता परिवार,
पापा के जाते ही अनाथ हुँवा,
माँ ही नहीं बल्कि बच्चों का ,
हाथ मजदूरी में आकर जूटा।
पापा का बडे से कर्जे का बोझा,
नन्हे कंधो ने साथ मिलके उठाया,
लाचार माँ ने चिता को भूलाकर,
रोजीरोटी का नया रास्ता बनाया।
जो आजतक घर की रानी थी,
बच्चे जिनके प्यारे राजकुमार,
पापा भले ही अंदर से परेशान,
पर घर था खुशियों पे सवार।
एक हादसे ने सब कुछ बदला,
किस्मत का पहिया ऐसे घूमा,
जो दुनियादारी से बेखबर थे,
आज दुनियादारी के होकर रहे।
ये ज़िम्मेदारी क्या चीज होती है,
बेवक्त ही इंसान को थका देती है,
जो ख्बाबों का कभी हिस्सा होते है,
वह सिर्फ किस्सा बनके रह जाते है।