जब आंधी का वेग उड़ाकर तिनके को ले जाता है l एक-एक तिनका उड़ करके अपना नीड़ बनाता है ll प्रबल करों के झंझावत से काल चक्र आतंकित हो l पौरुष का अविराम प्रकम्पन जन-जन में परिलक्षित हो ll जलता है जो अग्नि सद
प्राण सत्य है, सत्य वचन है, सत्य मृत्यु की सच्चाई l ईश्वर की अनुभूति सत्य है, कण-कण में है दिखलाई ll मुख से निकले शब्द निरंतर, काल-चक्र के श्रम में हैं l जिनको सत्य कहेंगे वे तो, दुविधाओं के भ्रम में
दर्पण औ' साहित्य दिखाते नए-नए प्रतिमान l जैसी छवि बन जाती जग में वैसा ही सम्मान ll कहता है साहित्य वही सब, जो कुछ पड़े दिखाई l व्यंग चुटीले कह देते हैं, जीवन की सच्चाई ll देता है साहित्य दृष
गृह आलय हैं भवन प्रेम के, निलय कुटी से नाम हैं l सम्बन्धों के रक्त प्रफुल्लित, बहते आठों याम हैं ll प्रात सूर्य सँग उदित रहे जो, दिन भर श्रम को बुनता है l बाहर खग सा व्यस्त रहे वो, तिनका-तिनका चुन
दास युक्त जीवन मानव का जीवन ही अभिशाप है l मन स्वाधीन नहीं हो अपना अविकल है संताप है ll स्वर्ण निकेतों के पिंजरे में स्वांस कहाँ से आएगी l बंधे हुए जीवन में सुख की आस कहाँ से आएगी ll पल-पल प्रतिप
जीवन प्राण प्रदाता हिन्दी, हिन्दी मन में रहती है l बूँद-बूँद से प्यास बुझाये, सुरसरिता सी बहती है ll दिव्य अधर प्रस्फुटित निरंतर, हिन्दी जाग्रत तन-मन है l अविरल भाव सरलतम अक्षर,हिन्दी जाग्र
भाग 1 तूलिका लिखती रही संसार के प्रत्येक पल में l ज्ञानदा के कर निहित स्वीकार के प्रत्येक पल में ll कृष्ण-द्वैपायन विकल थे, लेखनी कैसे चलेगी? युद्ध के जलते भंवर में, लेखनी कैसे पलेगी? हो
फंतासी के लिए हमेशा से एक आकर्षण रहा है, हैरी पॉटर की लोकप्रियता एक उदाहरण है, पंचतंत्र और सभी धा
कामाग्नि से जन्म है होता, जठराग्नि से जीवन चलता। चिताग्नि से म
*इस धरा धाम पर ईश्वर ने मनुष्य को अपना युवराज बनाकर भेजा है | जिस प्रकार एक राजा राज्य एवं प्रजा की रक्षा एवं देखरेख का भार अपने युवराज के ऊपर डाल देता है उसी प्रकार परमात्मा ने भी मनुष्य के ऊपर सृष्टि की देखरेख एवं रखरखाव का भार सौंप दिया | मनुष्य को अनेक प्रकार के भोग ऐश्वर्य प्रदान किये परंतु मनु
*इस धरा धाम पर आदिकाल से स्थापित एकमात्र धर्म सनातन धर्म को माना गया है , धीरे-धीरे सनातन धर्म से भी अनेकों शाखाएं निकली जिन्हें लोगों ने अपने अनुसार नाम देकर धर्म बता दिया | सनातन धर्म इतना अलौकिक एवं दिव्य है कि इसे जान पाना , समझ पाना किसी साधारण व्यक्ति के बस की बात नहीं है | वैसे तो कहा जाता
*इस संसार में ईश्वर तो स्वतंत्र है परन्तु जीव परबस है | जीव अपने कर्मों के बस में हैं | जो जैसा कर्म करता है उसे उसका फल भोगना ही पड़ता है | कभी कभी तो ऐसा लगता है कि किसी दूसरे के कर्म का फल कोई दूसरा भोग रहा है परंतु ऐसा नहीं होता क्योंकि जीव इन वाह्यचक्षुओं से कर्मों की सूक्ष्मता को नहीं देख पाता
*मानव जीवन विचित्रताओं से भरा पड़ा है ! अपने जीवन काल में मनुष्य अनेक प्रकार के अनुभव करता हुआ उसी के अनुसार क्रियाकलाप करता रहता है | मानव जीवन को संवारने में सकारात्मकता का जितना हाथ है उसे बिगाड़ने में नकारात्मकता उससे कहीं अधिक सहयोग करती है | इन्हीं नकारात्मकता का ही स्वरूप है संदेह या शंका | क
*मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है इसे पा करके सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है | किसी भी इच्छित फल को प्राप्त करने के लिए श्रद्धा एवं विश्वास होना आवश्यक है इससे कहीं अधिक किसी भी कार्य में सफल होने के लिए आत्मविश्वास की आवश्यकता होती है | यदि मनुष्य का आत्मविश्वास प्रबल होता है तो उसे एक ना एक दिन सफलता
*मानव जीवन में अनेक प्रकार के क्रियाकलाप ऐसे होते हैं जिसके कारण मनुष्य के चारों ओर उसके जाने अनजाने अनेकों समर्थक एवं विरोधी तथा पैदा हो जाते हैं | कभी-कभी तो मनुष्य जान भी नहीं पाता है कि आखिर मेरा विरोध क्यों हो रहा है , और वह व्यक्ति अनजाने में विरोधियों के कुचक्र का शिकार हो जाता है | मनुष्य का
🌺🌲🌺🌲🌺🌲🌺🌲🌺🌲🌺 ‼️ *भगवत्कृपा हि केवलम्* ‼️ 🐍🏹 *लक्ष्मण* 🏹🐍 🌹 *भाग - २१* 🌹🩸🍏🩸🍏🩸🍏🩸🍏🩸🍏🩸*➖➖➖ गतांक से आगे ➖➖➖**लक्ष्मण जी* ज्ञानवान होकर भी आज एक साधारण मनुष्य की भाँति अपने बल का बखान करने लगे | अपने बल का बखान करने पर जो परशुराम जी क
तुम दूर होते हो तो सब कुछ खोया खोया सा लगता है, खुश रहते हैं हम पर बीता पल रोया रोया सा लगता है. अगले पल फिर से तरोताजा होने की कोशिश करते हैं, हर कुछ तुम्हारी खुशबू में पिरोया पिरोया सा लगता है. रात को नींद आती नहीं,यादें आकर वापस जाती नही, इंतज़ार करते करते दिन पूरा
*मानव शरीर ईश्वर की विचित्र रचना है , इस शरीर को पा करके भी जो इसके महत्व को न जान पाये उसका जीवन निरर्थक ही है | मानव शरीर में वैसे तो प्रत्येक अंग - उपांग महत्वपूर्ण हैं परंतु सबसे महत्वपूर्ण है मनुष्य की वाणी | वाणी के विषय में जानना बहुत ही आवश्यक है , प्राय: लोग बोले जाने वाली भाषा को ही वाणी म
*इस धरा धाम पर मनुष्य माता के गर्भ से जन्म लेता है उसके बाद वह सबसे पहले अपने माता के द्वारा अपने पिता को जानता है , फिर धीरे-धीरे वह बड़ा होता है अपने भाई बंधुओं को जानता है | जब वह बाहर निकलता है तो उसके अनेकों मित्र बनते हैं , फिर एक समय ऐसा आता है जब उसका विवाह हो जाता है और वह अपने पत्नी से पर
*इस धरा धाम पर सर्वश्रेष्ठ मानवयोनि को कहा गया है |मानव जीवन में आकर के मनुष्य अपने बुद्धिबल का प्रयोग करके अनेकों प्रकार के रहस्य से पर्दा हटाता है | मानव जीवन को उच्चता की ओर ले जाने के कृत्य इसी शरीर में रहकर के किए जाते हैं | मनुष्य के जीवन का एकमात्र लक्ष्य होता है ईश्वर प्राप्ति | ईश्वर को प्र