*इस धरा धाम पर मनुष्य माता के गर्भ से जन्म लेता है उसके बाद वह सबसे पहले अपने माता के द्वारा अपने पिता को जानता है , फिर धीरे-धीरे वह बड़ा होता है अपने भाई बंधुओं को जानता है | जब वह बाहर निकलता है तो उसके अनेकों मित्र बनते हैं , फिर एक समय ऐसा आता है जब उसका विवाह हो जाता है और वह अपने पत्नी से परिचित होता है | वैवाहिक जीवन सफलता पूर्वक आगे बढ़ता है और मनुष्य अपने पुत्र का पिता बनता है | ये संसार के मुख्य संबंध है जो प्रत्येक मनुष्य के जीवन में देखे जाते हैं | यह सांसारिक संबंध पूरे जीवन काल को प्रभावित करते हैं परंतु आध्यात्मिक दृष्टि से इन संबंधों को क्या उपाधियां दी गई इसका वर्णन आचार्य चाणक्य ने बहुत ही सुंदर ढंग से किया है | आचार्य चाणक्य लिखते हैं :-- "सत्यम् माता पिता ज्ञानम धर्मों भ्राता दया सखा ! शान्ति: पत्नी क्षमा पुत्र: षडेते मम् बान्धवा: !!" अर्थात सत्य मेरी माता है , ज्ञान मेरा पिता है धर्म मेरा भाई है , दया मेरा मित्र है , पत्नी मेरी शान्ती है और क्षमा मेरा पुत्र है | आचार्य चाणक्य के कहने का तात्पर्य यह था कि मनुष्य के यही आध्यात्मिक बांधव तो होते ही हैं साथ ही यह भी सत्य है इस झूठे जगत में माता ही सत्य है जिसने अपने उदर में नौ महीने रखकर के जन्म दिया | पिता ज्ञान स्वरूप होता है जो भले बुरे की पहचान कराता है , भाई को दाहिनी भुजा कहा जाता है और मनुष्य यदि अपने भाई अर्थात धर्म को नहीं छोड़ता है तो कभी पराजित नहीं हो सकता क्योंकि धर्म ही मनुष्य की दाहिनी भुजा बनकर उसकी रक्षा करता है | दया मित्र की तरह हमारे साथ व्यवहार करती है | जीवन में जब पुथल पुथल मचती है तो इस संसार में एक पत्नी ही होती है जिससे एकांत आप अपने मन की बात कह कर के शांति प्राप्त कर सकती हैं और क्षमा को पुत्र इसलिए कहा गया है क्योंकि जिस प्रकार सभी रत्नों में श्रेष्ठ पुत्र रत्न कहा गया है उसी प्रकार सभी गुणों में क्षमा महान गुण है | इस प्रकार मानव जीवन में यदि मनुष्य इन बांधवों को अपनाकर चलता है तो वह ना तो कभी असफल हो सकता है और ना ही उसका कोई कार्य बाधित हो सकता है |*
*आज मनुष्य अनेक प्रकार के कंटकों से घिरा हुआ दिखाई पड़ता है और यह सारे कंटक उसने स्वयं ही बिछाये हैं | आज की शिक्षा का प्रभाव है कि मनुष्य संस्कार विहीन होता चला जा रहा है | आध्यात्मिक बंधुओं की तो बात ही छोड़ दीजिए आज मनुष्य सांसारिक बंधुओं के साथ भी प्रसन्नता पूर्वक जीवन यापन नहीं कर पा रहा है | परिवार में ही अनेक प्रकार की वैमनस्यता देखने को मिल रही है | आज के अधिकतर मनुष्य अपनी मां का सम्मान नहीं कर पा रहे हैं , जिस पिता को ज्ञान स्वरूप कहा गया है उससे पुत्र बात भी नहीं करना चाहता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि जिस मित्र को भाई से भी ऊंचा स्थान दिया गया वही मित्र आज अपने मित्र के साथ विश्वासघात कर रहा है | भाई को धर्म की संज्ञा दी गई है परंतु आज के परिवेश में मनुष्य ने धर्म का त्याग कर दिया है अपने भाई के साथ बात बात पर युद्ध कर रहा है | पत्नी को शान्ती कहा गया है परंतु आज इस प्रकार की शान्ती दिखाई पड़ रही है कि परिवार बिखर रहे हैं | आज पारिवारिक अदालतों में शांति स्वरूपा पत्नी संबंध विच्छेद के लिए मुकदमा लड़ रही है | मनुष्य क्षमा करने का गुण भूलता जा रहा है शायद इसीलिए उसके पुत्र भी उससे दूर होते चले जा रहे हैं | कहने का तात्पर्य यह है कि आज मनुष्य सत्य , ज्ञान , धर्म , दया , शान्ती एवं क्षमा जैसे महान गुणों का त्याग कर चुका है इसीलिए आज समाज में चारों ओर अनेक प्रकार के ऐसे क्रियाकलाप मनुष्यों के द्वारा देखे जा रहे हैं जो कि ना तो मनुष्य के लिए उचित है ना ही मनुष्यता के लिए | आचार्य चाणक्य के द्वारा बताए गए आध्यात्मिक बांधवों को मनुष्य स्वीकार करें या ना करें परंतु अपने बांधवों से दूर होकर के मनुष्य सफल तो हो सकता है परंतु उसे वह सब कुछ नहीं प्राप्त हो सकता जो मानव जीवन के लिए आवश्यक है | जो सुख मनुष्य को परिवार के बीच में प्राप्त हो जाता है वह एकाकी जीवन में कभी नहीं प्राप्त हो सकता | मनुष्य के जीवन में आचार्य चाणक्य के द्वारा बताए गए इन ६ बांधवों का होना परम आवश्यक है |*
*यदि जीवन को सुचारु रूप से चलाना है एवं मानव जीवन को सफल करना है तो सांसारिक बंधु बांधव के प्रेम बनाए रखते हुए आध्यात्मिक बंधुओं को भी जीवन से जोड़ना ही होगा |*