दर्पण औ' साहित्य दिखाते नए-नए प्रतिमान l
जैसी छवि बन जाती जग में वैसा ही सम्मान ll
कहता है साहित्य वही सब, जो कुछ पड़े दिखाई l
व्यंग चुटीले कह देते हैं, जीवन की सच्चाई ll
देता है साहित्य दृष्टि यदि भटक जाए संसार l
तुलसीदास की राम कथा से, मिलते हैं संस्कार ll
दोहा, सबद, रमैनी कबिरा हीरे की हैं खान l
दर्पण औ' साहित्य दिखाते नए-नए प्रतिमान ll
इच्छा के अनुसार हमारा, जीवन तो बन जाएगा l
शिक्षा से भी न समझे तो क्या, असभ्य हो,पाएगा?
लिखने वाले लिख ही देंगे, पालन भी कर पाओगे?
पुस्तक है साहित्य सार्थक, जीवन में भर पाओगे?
दर्पण का क्या दोष बताओ जब तुम ही अनजान?
दर्पण औ' साहित्य दिखाते नए-नए प्रतिमान ll
कैसा लोक, लोक की भाषा कैसा अपना वेश l
कैसे लोग, रीति कैसी है, कैसा अपना देश ll
अंधकार में राह दिखाए, दीप जलें चहुँ ओर l
सब कुछ तो साहित्य दिखाए जैसे सूरज भोर ll
आत्म-शक्ति का पांचजन्य है, समर भूमि का मान l
दर्पण औ' साहित्य दिखाते नए-नए प्रतिमान ll
✍️स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'