*मानव जीवन में अनेक प्रकार के क्रियाकलाप ऐसे होते हैं जिसके कारण मनुष्य के चारों ओर उसके जाने अनजाने अनेकों समर्थक एवं विरोधी तथा पैदा हो जाते हैं | कभी-कभी तो मनुष्य जान भी नहीं पाता है कि आखिर मेरा विरोध क्यों हो रहा है , और वह व्यक्ति अनजाने में विरोधियों के कुचक्र का शिकार हो जाता है | मनुष्य का प्रथम कर्तव्य होता है कि यदि वह जान जाय कि यहां हमारा विरोध करने वाला कोई है तो वहां जाना ही नहीं चाहिए और यदि वह वहां पहले से उपस्थित रहे तो वहां से चुपचाप निकल जाना चाहिए | भगवान शिव ने माता सती से भी यही कहा था :-- "यद्यपि मात पिता गुरु गेहा ! जाइअ बिनु बोले न संदेहा !! तदपि विरोध मान जहँ कोई ! तहाँ गये कल्यानु न होई !! यद्यपि अपने माता पिता गुरु के यहां , अपने मित्र के यहां किसी भी समय , किसी भी आयोजन में बिना बुलाए जाया जा सकता है परंतु जहाँ आपका एक भी विरोधी हो वहाँ कदापि नहीं जाना चाहिए क्योंकि वहां जाने कल्याण नहीं हो सकता | भगवान शिव के समझाने पर भी माता सती नहीं मानी और परिणाम क्या हुआ यह सभी जानते हैं | इसी प्रकार समाज में यह आंकलन अवश्य करते रहना चाहिए कि कौन आप का समर्थक है और कौन विरोधी | कुछ विरोधी तो ऐसे होते हैं जो आपके मुंह पर तो आपकी खूब प्रशंसा करते हैं और पीठ पीछे आपका गला भी काटने को तैयार रहते हैं , ऐसे लोगों के समाज में जाना कदापि उचित नहीं कहा गया है | यदि कोई भी ऐसे लोगों के समाज में रह रहा है तो उसे अपमान एवं माता सती की तरह ही परिणाम मिलने की संभावना बनी रहती है | इसलिए ऐसे समाज का त्याग तुरंत कर देना चाहिए , यही मनुष्य की बुद्धिमत्ता है अन्यथा परिणाम सार्थक नहीं निकलते | यद्यपि यह सत्य हैं कि मनुष्य को प्रेम पूर्वक जीवन व्यतीत करना चाहिए परंतु यह भी सत्य है कि मनुष्य के किए हुए कृत्य कुछ लोगों को अच्छे लगते हैं और कुछ लोग उसे अपना विरोध मानकर आप के प्रबल विरोधी हो जाते हैं और यही विरोधी समय पाकर अपना कार्य कर देते हैं | यह मनुष्य की विचित्रता ही है कि कोई देखने में तो बहुत परम प्रिय लगता है परंतु भीतर ही भीतर वह उसका प्रबल विरोधी भी होता है जिसे कि मनुष्य जान नहीं पाता और अनजाने में ही उससे प्रेम करता रहता है परंतु यही प्रेम उसके लिए घातक हो जाता है | इसीलिए जहां एक भी विरोधी हो वहां नहीं जाना चाहिए ऐसा हमारे महापुरुषों ने और स्वयं भूतभावन भोलेनाथ ने कहा है हमें उनका अनुसरण करना चाहिए |*
*आज मनुष्य इस दुर्लभ मानव शरीर को पाकर धरा धाम पर आने का अपना उद्देश्य भूल गया और वह व्यर्थ में एक दूसरे का विरोध करने लगता है | आज चारों ओर विरोध एवं समर्थन की ही राजनीति देखने को मिल रही है | चाहे वह आधुनिक समाज (व्हाट्सएप) हो या टीवी पर समाचार के चैनलों पर चल रही वार्ता , हर जगह विरोध की ही राजनीति देखने को मिल रही है और यही देश में अराजकता फैलने का प्रमुख कारण बन रही है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज यह भी देख रहा हूं यदि मनुष्य को उसके मन मुताबिक बात ना कहीं जाय तो वह प्रबल विरोधी बन जा रहा है और अपने कृत्यों से जगह-जगह विरोध की राजनीति करता दिख रहा है | ऐसे मनुष्यों को विचार करना चाहिए अनेक जन्मों के पुण्य संचित करके तभी मानव शरीर प्राप्त हुआ है और इस मानव शरीर को प्राप्त करने के बाद जी मनुष्य एक दूसरे का विरोध करता है तो इस दुर्लभ मानव शरीर को पाने का उद्देश्य कदापि नही पूर्ण हो सकता | आज के समाज में एक सन्त किसी दूसरे सन्त का , विद्वान किसी दूसरे विद्वान का तथा एक राजनेता दूसरे राजनेता का एवं परिवार में सभी एक दूसरे का विरोध करते हुए देखे जा रहे हैं जिसके कारण मानवता पर ही प्रश्नचिन्ह लग जाता है | ऐसे समाज का त्याग करके अपना सम्मान तो बचाया ही जा सकता है साथ ही आपसी प्रेम (वह भले ही दिखावे का हो) बना रह सकता है | आज का मनुष्य इतना चतुर हो गया है कि विरोधी होने के बाद भी ऐसी चिकनी चुपड़ी बातें करता है कि सामने वाला भ्रम में पड़ जाता है और यही भ्रम मनुष्य को धोखे में डाले रखता है जिससे मनुष्य इन विरोधियों के मानसिकता को ना समझ पाने के कारण इनके कुचक्र का शिकार हो जाता है | आज की स्थिति बहुत ही भयावह है इसे समझ पाने में वही सफल हो सकता है जो अपना आंकलन स्वयं करना जानता हो अन्यथा जीवन में व्यर्थ ही असम्मानित होकर दुखी होना पड़ सकता है | मनुष्य विवेकवान प्राणी है अत: अपने विवेक का प्रयोग करके अपने समर्थकों एवं विरोधियों को पहचान करके उनके साथ व्यवहार करना चाहिए |*
*कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जिनसे वैर एवं प्रीत दोनों ही घातक होते हैं अत: ऐसे लोगों से उचित दूरी बनाये रखने में ही कल्याण है |*