जीवन प्राण प्रदाता हिन्दी, हिन्दी मन में रहती है l
बूँद-बूँद से प्यास बुझाये, सुरसरिता सी बहती है ll
दिव्य अधर प्रस्फुटित निरंतर, हिन्दी जाग्रत तन-मन है l
अविरल भाव सरलतम अक्षर,हिन्दी जाग्रत जन-जन है ll
जन्म-मरण तक मातृ-प्रेम सी, चेतन तन आप्लावित है l
पल-पल शोभित अंग वस्त्र सी, पूर्ण विश्व संभावित है ll
फिर क्यों मैं हो गई उपेक्षित, यह सब से वह कहती है l
जीवन प्राण प्रदाता हिन्दी, हिन्दी मन में रहती है ll
विश्व गुरु कहलाने को है भारत माँ की जननी हिन्दी l
भाषाओं की परिभाषा में सबसे सुन्दर अपनी हिन्दी ll
भाषायें अनगिनत सहेली, हिन्दी सबसे व्यापक है l
कवि, लेखक मूर्धन्य विवेचक, में हिन्दी ही साधक है ll
कंकरीले पथरीले पथ को निर्झरणी सी सहती है l
जीवन प्राण प्रदाता हिन्दी, हिन्दी मन में रहती है ll
वरद पुत्र हम शिवानुजा के, जननायक हम हिन्दी के l
कुमकुम जग-मग तारे नभ में, उस माता की बिन्दी के ll
गीत काव्य लेखन परिचर्चा, दिन प्रतिदिन में हिन्दी है l
लेखन रण में अविचल स्थिर, मध्य सभी प्रतिद्वंदी है ll
कोपल थी अब पुष्प बनी है जग में सदा महकती है l
जीवन प्राण प्रदाता हिन्दी, हिन्दी मन में रहती है ll
✍️स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'