*इस धरा धाम पर ईश्वर ने मनुष्य को अपना युवराज बनाकर भेजा है | जिस प्रकार एक राजा राज्य एवं प्रजा की रक्षा एवं देखरेख का भार अपने युवराज के ऊपर डाल देता है उसी प्रकार परमात्मा ने भी मनुष्य के ऊपर सृष्टि की देखरेख एवं रखरखाव का भार सौंप दिया | मनुष्य को अनेक प्रकार के भोग ऐश्वर्य प्रदान किये परंतु मनुष्य उन्हें अपना समझने लगा और उसका अधिकारी स्वयं को मारने लगा , जबकि सदैव एक बात याद रखनी चाहिए कि भगवान ने तुमको जो कुछ दे रखा है वह केवल तुम्हारी द्वारा देखरेख रखने और सेवा करने के लिए ही दिया है | अपनी दी हुई वस्तु ईश्वर कभी भी वापस ले लेता है | ऐसी स्थिति में मनुष्य को निराश एवं हताश नहीं होना चाहिए क्योंकि जो वस्तु ईश्वर ने ले ली है वह तो कभी तुम्हारी थी ही नहीं | इस संसार में मनुष्य गिनती की सांसें लेकर के आता है | जितनी श्वांस ईश्वर ने मनुष्य को प्रदान की है उससे एक सांस कम या ज्यादा मनुष्य नहीं ले सकता है , तो मनुष्य को निर्द्वन्द होकर के निर्भीकता के साथ भगवत्कार्य करते हुए इस संसार में विचरण करना चाहिए | मृत्यु का भय सबको होता है परंतु साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि समय से पहले कभी भी मृत्यु नहीं आ सकती | ईश्वर ने अनेक प्रकार के भोग ऐश्वर्य प्रदान किए हैं जिसे तुमसे पहले अनेकों लोग भोग चुके हैं और तुम्हारे बाद भी अनगिनत लोग भागेंगे तो इसमें मेरा और तेरा का भाव होना ही नहीं चाहिए | जो इस रहस्य को समझ जाता है उसे ना तो कुछ खोने का भय लगता है और ना ही मृत्यु से वह भयभीत होता है | यही संसार का सत्य है और इसे प्रत्येक मनुष्य को मानना भी चाहिए |*
*आज जिस प्रकार संपूर्ण विश्व महामारी की चपेट में है अनेकों लोग असमय काल के गाल में समाते चले जा रहे हैं उससे प्रत्येक मनुष्य भयभीत दिखाई पड़ रहा है क्योंकि मृत्यु के भय से , अपने परिजनों से बिछड़ने के भय से मनुष्य इस प्रकार भयभीत हो गया है कि उसे कुछ सूझ नहीं रहा है | परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" विचार करता हूं कि जिस शरीर के लिए , परिवार एवं समाज के लिए मनुष्य भयभीत एवं दुखी है क्या वह अपना है ? मनुष्य का अपना क्या है ? शरीर की रचना किसने की , जन्म माता ने दिया , अपना नाम पिता ने दिया , शिक्षा गुरु ने दी , ज्ञान सद्गुरुओं से प्राप्त हुआ , पंचमहाभूत के उपकार से मनुष्य इस धरा धाम पर रह रहा है | तो उसका अपना क्या है जिसके लिए वह इतना दुखी और भयाक्रान्य दिखाई पड़ रहा है | विचार करने वाली बात है कि जिस संसार में आज हम जीवन जी रहे हैं वह हमारे जीवन के पहले भी था और हमारी मृत्यु के बाद भी रहेगा | जिस सुंदर घर में हम जीवन यापन कर रहे हैं वह पहले हमारे पूर्वजों का था और हमारे बाद हमारी संतानों का हो जाएगा तो ऐसे में हमारा क्या है ? इस संसार में ना कोई कुछ लेकर आता है और ना ही लेकर जाता है | मनुष्य के कर्म ही उसे चिरकाल तक जीवित रखते हैं इसलिए प्रत्येक मनुष्य को इस महामारी के संकटकाल में समयानुसार औषधि का सेवन करते हुए ईश्वर का भजन करते रहना चाहिए ` भयभीत होने से , चिंतायुक्त होने से कोई भी कार्य निष्पादित नहीं हो सकता , इसलिए यही कहना चाहूंगा कि "हारिए न हिम्मत , बिसारिये न राम |*
*प्रत्येक मनुष्य को सदैव ध्यान रखना चाहिए कि वह स्वतंत्र कर्ता नहीं है और ना ही इस संसार में किसी भी वस्तु का स्वामी है | जानबूझकर उसने यह समस्या अपने ऊपर ले रखी है | अतः प्रत्येक मनुष्य को किसी भी वस्तु व्यक्ति या स्थान के लिए कभी भी चिंतित या भयाक्रांत नहीं होना चाहिए |*