जब आंधी का वेग उड़ाकर तिनके को ले जाता है l
एक-एक तिनका उड़ करके अपना नीड़ बनाता है ll
प्रबल करों के झंझावत से काल चक्र आतंकित हो l
पौरुष का अविराम प्रकम्पन जन-जन में परिलक्षित हो ll
जलता है जो अग्नि सदृश वह तप कर और निखरता है l
त्याग उठो आलस्य तभी यह जीवन प्रखर संवरता है ll
जिसने पग से धरा हिला दी, पथ से तिमिर हटाता है l
एक-एक तिनका उड़ करके अपना नीड़ बनाता है ll
प्रश्नों से आतंकित होकर उत्तर कब रुक जाएगा l
प्रश्नों की आशा से बढ़कर दिव्य रूप दिखलाएगा ll
कठिन तपस्या के आगे बाधायें भी रुक जाती हैं l
फल से लदकर वृक्ष झुकें शाखाएं भी झुक जाती हैं ll
जिसने नभ को नाप लिया है, सूरज को चमकाता है l
एक-एक तिनका उड़ करके अपना नीड़ बनाता है ll
शीतलता में शीतल रहता, अग्नि जले तो धधक उठे l
शौर्यवान, ओजस्वी नर का पौरुष पल में भभक उठे ll
लिखी जाएगी गाथा उनकी, कलम वही जय बोलेगा l
समय धार पर चलते-चलते, बलिदानी पट खोलेगा ll
जिसने रण को गेह बनाया, रोटी खर की खाता है l
एक-एक तिनका उड़ करके अपना नीड़ बनाता है ll
✍️ स्वरचित
अजय श्रीवास्तव 'विकल'