*मानव शरीर ईश्वर की विचित्र रचना है , इस शरीर को पा करके भी जो इसके महत्व को न जान पाये उसका जीवन निरर्थक ही है | मानव शरीर में वैसे तो प्रत्येक अंग - उपांग महत्वपूर्ण हैं परंतु सबसे महत्वपूर्ण है मनुष्य की वाणी | वाणी के विषय में जानना बहुत ही आवश्यक है , प्राय: लोग बोले जाने वाली भाषा को ही वाणी मान लेते हैं परंतु हमारे मनीषियें ने इस मानव शरीर में चार प्रकार की वाणी का उल्लेख किया है | १- परावाणी नाभि में , २- पश्यन्तिवाणी छाती में , ३- मध्यमा वाणी कण्ठ में तो ४- बैखरी वाणी मुंह में बताया गया है | शब्द की उत्पत्ति परावाणी से होती है परंतु जब शब्द स्थूलरूप धारण करता है तो मुंह की बैखरी वाणी द्वारा बाहर निकलता है | जीवन में जितना महत्व वाणी का है उससे कहीं अधिक महत्व "मौनव्रत" का कहा गया है | मनुष्य जब लगातार बोलता रहता है तो उसकी ऊर्जा का ह्रास होता रहता है इसी ऊर्जा का ह्रास रोकने के लिए हमारे मनीषियों ने "मौनव्रत" का विधान बनाया था | मौन भी दो प्रकार के बताये गये हैं | १- वाणी का मौन एवं २- मन का मौन | वाणी को वश में रखना , कम बोलना , बल्कुल नहीं बोलना , आवश्यकतानुसार ही शब्दोच्चारण करना वाणी के मौन कहे गये हैं तथा मन को स्थिर रखना , मन में बुरे विचार नहीं लाना , अनात्म (भौतिक) विचारों को हटाकर आत्म (अध्यात्म) विचार करना , वाह्य सुख की इच्छा से मुक्त होकर अंतरसुख में मस्त होना और मन को आत्मा के वशीभूत रखना आदि मन का मौनव्रत कहा गया है | मनुष्य समय समय पर मौनव्रत करता रहे एवं इसकी उपयोगिता को समझे इसीलिए समय समय पर मौनव्रत करते रहना चाहिए | माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को "मौनी अमावस्या" कहा जाता है | आज के दिन मौनव्रत करके अपनी आत्मा , मन एवं शरीर को ऊर्जावान बनाने का प्रयास सभी को ही करना चाहिए | भारतीय सनातन परम्परा में मौनी अमावस्या का बहुत ही महत्व है | मौनी अमावस्या को दिन भर मौनव्रत का विधान है इसीलिए यह योग पर आधारित व्रत कहलाता है | शास्त्रों में वर्णित भी है कि होंठों से ईश्वर का जाप करने से जितना पुण्य मिलता है, उससे कई गुणा अधिक पुण्य मन का मनका फेरकर हरि का नाम लेने से मिलता है | आज यदि दिनभर मौनव्रत रहें तो उत्तम है , यदि संभव नहीं हो तो स्नान एवं दान तक मौनव्रत अवश्य करे | इस प्रकार मनुष्य के जीवन को दिव्य बनाने के लिए सनातन धर्म सतत प्रयत्नशील रहा है |*
*आज माघमास की अमावस्या को मौनी अमावस्या का पर्व पूरे देश में बहुत ही श्रद्धा एवं भक्ति के साथ मनाया जा रहा है | मौनी अमावस्या को यदि सम्भव हो सके तो मौनव्रत का पालन करते हुए त्रिवेणी संगम में स्नान करे यदि किसी कारणवश वहाँ तक जाना सम्भव न हो तो अपने सन्निकट गंगा या यमुना मों स्नान कर ले | यदि गंगा जमुना आदि नदियाँ भी दूर हो तों किसी भी सहायक नदी में स्नान करना चाहिए | यदि यह भी असम्भव लगे तो अपने ही घर में जल की व्यवस्था करके उसमें गंगाजल मिश्रित करके स्नान कर लेना चाहिए | कहने का तात्पर्य यह है कि किसी भी प्रकार मौनव्रत का पालन अवश्य करना चाहिए | मौन धारण करके जितना महत्व स्नान का है उससे कहीं अधिक महत्व दान का है | आज समाज में अनेकों लोग ऐसे भी हैं जो इन क्रिया कलापों को ढकोसला कहकर हंसी उड़ाते हैं | ऐसे सभी मूर्खों को मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि सनातन विधानों को ढकोसला कहने की अपेक्षा उसके रहस्यों को समझने का प्रयास करें | शरीर विज्ञान बहुत ही जटिल है हमारे मनीषियों ने इस जटिलता को ही सरल करने के लिए अनेकों प्रकार के विधान बनाये हैं | मौनी अमावस्या पर मौन धारण करने से अंतरशक्ति तो बढ़ती ही है साथ ही मनुष्य अपने किये हुए एवं आगे किये जाने वाले कार्यों के विषय में चिन्तन - मनन करने का अवसर भी पा जाता है | ऐसे अनेक लाभ बिना कुछ खर्च किये मात्र मौनव्रत से ही प्राप्त किया जा सकता है | इसका परिणाम जानने के लिए अधिक नहीं यदि दो ही घंटे का मौनव्रत धारण कर लिया जाय तो स्वयं में अभूतपूर्व परिवर्तन देखने को मिलेगा | परंतु आज यह सारे विधान आधुनिकता की चकाचौंध में गायब होते जा रहे हैं | कुछ लोग मानते अवश्य हैं परंतु यह भी सत्य है कि आज हम जितना समय दूसरों को बताने में लगाते हैं उसका यदि लेशमात्र भी पालन कर लें तो जीवन धन्य हो जाय |*
*सनातन का प्रत्येक विधान मानवमात्र के लिए कल्याणकारी ही है , परंतु जब मनुष्य को इनके रहस्यों का ज्ञान नहीं होता तो वह इन विधानों को बकवास कहने लगता है | आवश्यकता है सनातन को समझने की |*