जब गाँव में सड़क बनी पहली बार,खुशी का ना रहा पाराबार,आवागमन हुआ आसान,और खुल गया समृद्धि का द्वार।आई बिजली गाँव में पहली बार,सर्वप्रथम रौशन हुआ घर का रामदरबार,फिर फ़्रिज के ठण्डे पानी का लुफ़्त,और टीवी पर
क्यों ज़ेहन में बार बारआती है गाँव की यादफिर धीरे धीरे बन जाती है वो यादों की बारात।गर्मियों की छुट्टी लग जानाट्रेन में बैठ कर गाँव को जानाजाते ही खेल में मस्त हो जानाऔर सबसे मिलकर खूब बतियाना।वो
अब गॉंव में चौपाल नहीं लगती,दोपहर में ताशों की महफ़िल नहीं सजती,कबूतर बोलते हैं गुटरगूँ हवेली की मुंडेरों पर,अब किसी कुएं पर पानी के लिए भीड़ नहीं लगती।जब ठण्ड के दिनों में अलाव था जलता,बच्चे और बूढ़े आ
इस सृष्टि में कोई भी वस्तु बिना कीमत के नहीं आती, विकास भी नहीं। अभी कुछ दिन पहले एक पारिवारिक उत्सव में शरीक होने के लिए गाँव गया था। सोचा था शहर की दौड़ धूप वाली जिंदगी से दूर एक शांति भरे माहौ
हालात बदले हुए है। शाम दिल्ली में हवाएं रूप, बदल बदल कर आ रही थी। हवाओं ने नीम और जामुन के पत्ते फूल गिरा दिए।चौक-चौराहे में लहराते, तिरंगों को फाड़ कर रख दिए।बादलों की गर्जन से, आसमानी बिजली भी चमक गई।काली खाली सड़को में, सायरन एम्बुलेंस के बज रहे।किसी मे कराहती सासे, या कफ़
वह अपनाबस्ता लेकर उचक- उचक कर उन कच्चे रास्तों के आगे बनी अपनी पाठशाला के दरवाज़े पर टकटकीलगाए देख रही थी । वह मुस्कुराकरबुदबुदाई – कितना अच्छा लगता था ,स्कूल जाना ! पता नहीं कब खुलेगा .....?अरी बिटिया,कहाँ चली गई....? माँ की आवाज़ सेवह बस्ता एक तरफ़ रख कर ,रसोई में जाकर, बेमन से, माँ की मदद करने लगी ।
गुम हो रहा है।घर की मुंडेर में रखे छप्पर और परछती ओरौती बनकर अब चूती नही।गाँव के बड़े बगीचों में आम, निमोरी, जामुन, महुआ, सबका चूना बंद सा हैं।दो बैलो की जोड़ी, कुसी, हल धोती वाले किसानों के झुंड नही।गाँवो के चारो ओर फैले तालाब, कुआँ, नहरें अब लोगों ने पूर लिया।कोसों दू
वक्त करवट ले गया।गाँव से भागे, शहर में कमाया मौज मनाया।गाँव की गलियाँ सूनी, शहर की गलियों में रंगरलियाँ।गाँव बड़े , घर मन न भए, शहरों में झुग्गी बस्ती बनाए।जीकर नरक भरी जिंदगी शहर में, गाँवों में नाम कमाए।छोड़ छाड़ माँ बाप की ममता, शहर में प्यार प्रेम कमाए।सुबह नहाए कम्पनी को जाए, कर याद गाँव को पछताए।
एक रोग सारी दुनिया कीदिखलाता है सच्चाई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।ऐसे उसने पैर पसारेकाम-धाम सब बंद हुएलोगों ने तेवर दिखलाएरिश्ते सारे मंद हुए।और गांव के कच्चे घर कीहूक हृदय में लहराई।जिन शहरों को अपना मानाउनमें ही ठोकर खाई।प्रेम फला-फूला करता थागाँव गली-घर-आँ
शहर तेरा, गाँव मेरा"हम तेरे शहर में आए है मुसाफ़िर की तरह, कल तेरा शहर छोड़ जाएंगे साहिल की तरह, शहरों में सह मिलते है। गुलशन में गुल खिलते है। सारे शहर में आप जैसा कोई नही। दो दीवाने शहर में। सारे शहर के शराबी मेरे पीछे पड़े। सारे शहर में कैसा है बवाल। एक अकेला इस शहर में, मोहम्मद के शहर में, शहर की ल
आओं लौट चले तिनका तिनका जोड़कर, चिड़ियाँ बना लेती हैं बबूर मे घोसला |उड़कर-उड़कर पंख पसार, करती नदी सागर घर आँगन पार |पर ना जाने क्यो? चुँगने उड़ने के बाद, घर को वापस आती हैं |भर चोंच मे दाना लिए ऊँची उड़ान, लौट आती हैं बच्चो के लिए |भोर भई चहचाई चिड़ियाँ अपनी डाली मे, अब तो
मेरा गाँव अब शहर सा हो गया है, बाकी तो नहीं पता, कंक्रीट पत्थर लिया है।मेरा गाँव अब शहर हो गया है।थे कई घर मेरे गाँव में मेरे, जहाँ पड़ जाती नींद आ जाती थी,इन मखमली गद्दों पे नींद आती नहीं,मेरा घर भी तो अब एक हो गया है।मेरा गाँव अब शहर हो गया है।पहले नीम की छांव ठंडक देती थी,सुराही का पानी ठंडा होता
अपने पैरों खड़ी।समझ स्कूल,कालेज, शैक्षिक संस्थानों की पढ़ाई।घर, गाँव गली में पढ़-लिखकर शहर में हुई बड़ी।कर विश्वास अपने से, हो गई अपने पैरों खड़ी।भागदौड़ कर भीड़ में, पकड़ती हूँ शहर की रेल। शहर से कमा कर वापस आना, नही है कोई खेल।हँसती मुस्कराती ऑफिसों में, दिनों को गुजारती।आ घर, गिर बिस्तर में, दिन की थकी उ
शहर की जिंदगी, घुटन बन गई हैं।जब शहर था सपना , तब गाँव था अपना।सोचा था शहर से एक दिन कमा लूँगा, के गाँव मे एक दिन कुछ बना लूँगा।शहर की चमक ने मुझे ऐसे मोड़ा, शहर मे ठहर जो गया थोड़ा।अब जिंदगी बन गई हैं, किराए का साया।मोडू जो गाँव का रुख थोड़ा, शहर की चमक बन गई है रोड़ा।कमाया था जो हमने शहर से, वो सब यही
लौट चले दिल्ली शहर से रोजगार।अब सील ने हर हुनर वाले की जुबान बंद कर दी हैं। सील कंपनी मे नहीं हुनर वाले के पैरो मे बेड़ियाँ पड़ी हैं। इससे अच्छा तो तिहाड़ की जेल मे बंद करके सबके हुनर को कैद कर लेते। कम से कम अंग्रेज़ो वाले दिन तो याद आते। इन्होने तो उस लायक भी नहीं छोड़ा। मजदूर कल भी आजाद था आजा भी आजाद
गांव का नाम जहन में आते ही सबसे पहले वहां होने वाली असुविधाओं का ख्याल आता है। लेकिन समय के साथ अब गांवों की तस्वीर बदल रही है। आज हम आपको ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे है जिसकी तरक्की की कहानी सुनकर आपके होश उड़ जाएंगे। आप यकीन नहीं करेंगे। जी हां, इस गांव में गरीब नहीं बल्कि सभी बेहद अमीर लोग
दिल्ली से अपने गांव जिबलखाल, जिला पौड़ी गढ़वाल आये कुछ दिन बीत चुके थे. अब तक गांव के भूगोल की भी जानकारी हो गई थी. मसलन मकान के दायीं ओर से नीचे जाने वाली तंग पगडण्डी पानी के स्रोत की तरफ जाती थी. बायीं ओर से खेतों की मुंडेर पर चल कर नीचे नद
मेरा गाँव मोहनपुर, कालीन नगरी भदोही जनपद का एक छोटा सा गाँव है, क्षेत्रफल की दृष्टी से यह बड़ा तो नहीं है, लेकिन जनसँख्या की दृष्टी से बड़ा है | लेकिन अब नहीं रहा क्योकी आधी से ज्यादा आबादी तो रोजगार की आशा में मुंबई जैसे महानगरो की और पलायन कर चुका है | गाँव के बीचोबीच ही सारी आबादी बसी हुई है और चार
खादी के एक झोले में टूथब्रश डाला, कुछ कपड़े डाले आैर बस गाँव जाने की तैयारी हो गई......Sketches from Life: गाँव की ओर स्कूल की शिक्षा पूरी हो चुकी थी और कॉलेज जाने के बीच कुछ अन्तराल था. सो कुछ समय गाँव मे रहने का मन बना लिया. खादी के एक झोले में टूथब्रश डाला, कुछ कपड़े डाले आैर बस गाँव जाने की तैया
जिलाधिकारी महोदय ने प्रत्येक गाँव में खेल मैदान विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।हलचल सी शुरू हुई बच्चों में,हाथ पैर फैला कसरत चालू कर दी।कोई क्रिकेट मैच की तो कोई गिल्ली डन्डा ही खेलता नज़र आता।अभी तक किसी के खाली पड़े खेत या बाग में खेलते थे,अब अपना खेल मैदान होने जा रहा है।सब बहुत खुशी से चयनि