जब गाँव में सड़क बनी पहली बार,
खुशी का ना रहा पाराबार,
आवागमन हुआ आसान,
और खुल गया समृद्धि का द्वार।
आई बिजली गाँव में पहली बार,
सर्वप्रथम रौशन हुआ घर का रामदरबार,
फिर फ़्रिज के ठण्डे पानी का लुफ़्त,
और टीवी पर होने लगी चौके-छक्कों की बौछार।
दादा दादी की भागवत-रामायण,
मम्मी का रोने-धोने वाला सीरियल,
बच्चों का कार्टून और फ़िल्म,
और चलने लगे पापा के समाचार।
गाँव में जब टेलीफोन आया पहली बार,
बुआ ने बातें की एक हज़ार,
शहर से भैया का फोन आता हर इतवार,
जिसका सबको रहता बहुत इंतज़ार।
अब तो गाँव भी आधुनिक हो गए हैं,
ट्रैक्टर आने से "हल" खो गए हैं,
अब नहीं होते घर में "हीरा-मोती",
वो प्यारे बैल भी नहीं रह गए हैं।
बिजली की चकाचौंध में,
लालटेन गायब हो गई है,
जब से आई है मोटरगाड़ी,
बैलगाड़ी भी कहीं खो गई है।
गाँव अब विकास कर रहे हैं,
बच्चे गुल्ली-डण्डा छोड़ क्रिकेट खेल रहे हैं,
माँ-बाबूजी रह गए पीछे हैं,
अब बच्चे मॉम-डैड बोल रहे हैं।
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर(म.प्र.)🇮🇳