लौट चले दिल्ली शहर से रोजगार।
अब सील ने हर हुनर वाले की जुबान बंद कर दी हैं। सील कंपनी मे नहीं हुनर वाले के पैरो मे बेड़ियाँ पड़ी हैं। इससे अच्छा तो तिहाड़ की जेल मे बंद करके सबके हुनर को कैद कर लेते। कम से कम अंग्रेज़ो वाले दिन तो याद आते। इन्होने तो उस लायक भी नहीं छोड़ा। मजदूर कल भी आजाद था आजा भी आजाद हैं। काम मिला तो कमाया वरन किसी भी सड़क के किनारे पन्नी चादर ओढ़ कर सोया। नई कलम नई सोच ने हुनर वालों को भटकाया नोएडा चलो, गुड़गाँव चलो, राई सोनीपत, चलो... हम तो कहते हैं अपने गाँव लौट चलो। इस वक्त भोजपुरी मे एक गाना बहुत बज रहा हैं दिल्ली शहर मे, "नून रोटी खाएँगे" गाँव मे ही रहेंगे माँ बाबू और बीबी बच्चो के साथ जीवन गुजारेंगे।