मिस्टर कोरोना अपनी पत्नी मिसेज कोरोना अपने बेटे कोविड और बेटी नाएंटीन को साथ ले कर इंदौर नगर भ्रमण पे निकले।एक लापरवाह इंदौरी के मास्क पे बैठ एक दिन में ही कई बाजार घूम गए।लोगो
विएना’ खूबसूरत और दिलकश प्रेमिका की तरह एक शहर विएना का अद्वितीय और विशाल शोन्नब्रुन्न पैलेस अप्रैल 12-18 , 2018अगले रोज़ सुबह जल्दी तैयार होकर खुद का बनाया नाश्ता खाकर तीन सौ बीस बरस पुराना शोन्नब्रुन्न पैलेस देखने निकल पड़ा । रास्ते में एक साइकिल रैली जैसी कुछ निकल रही थी। हज़ारों की संख्या में साइक
अन्नदाताओं पर प्रकृति का कहर!पहले लोन से परेशान अब कृषक प्रकृति की मार से बेबस हैं.इस बार हमारे लिये अनाज पैदा करने वालों दो तरफा या कहे तितरफा मार पड़ी है. लाकडाउन, टिड्डी दल फिर बाढ़.किसान कुदरत की इस मार को झेल ही रहे हैं कोई ठोस समाधान भी इस बारे में नहीं निकल रहा. आगे चलकर हर आम आदमी को किसानों
‘विएना’ खूबसूरत और दिलकश प्रेमिका की तरह का एक शहरअप्रैल 12-18 , 2018 ट्रेन से उतरा तो खूबसूरत विएना ने मुझे आगे बढ़कर अपनी बाहों में भर लिया । सबसे पहले उतर कर पूछताछ खिड़की पर गया और लोकल ट्रामों, ट्रेनों और अंडर ग्राउंड ट्यूब रेलवे के बारे में जानकारी ली । पता लगा कि विएना शहर के भीतर सब प्रकार के
12-15 अप्रैल 2018 ‘सालज़बर्ग का “हेलब्रुन्न पैलेस यानी जादुई क़िला”अच्छी गहरी नींद के बाद अगली सुबह 12 अप्रेल को उठ कर खटाखट तैयार होकर होटल के रेस्तरां में मुफ्त का नाश्ता करने के बाद रिसेप्शन पर तहकीकात की तो अल्टास्टड होफव्रट होटल की खूबसूरत और समझदार रिसेप्शनिस्
कोरोना वायरस की धमाकेदार पारी नॉन स्टॉप चल रही है. नीम-हकीम और ताबीज वाले बाबाओं की तो छोड़िए पूरा का पूरा मेडिकल साइंस पसीने से तरबतर है. कोरोना को क्लीन बोल्ड करना तो दूर की बात फिलहाल तो बाउंड्री पर लपकने के भी कोई आसार नजर नहीं आ रहे है. नीचे वाले हो या ऊपरवाला सभी लॉकडाउन है. यमराज बोले, सुनो च
न खुशन उदासभले मैं अकेलाया सब आसपासशून्य की बढ़ती हुई प्यासवही लोगवही जमीन वही आकाशफिर भी परिवर्तन की आसदिन वैसे ही चढ़तावैसे ही ढलतावैसी ही रात होतीवैसे ही सोता अजीब से सपनो में खोताफिर नई सुबह होतीवो ही सब करने कोजो रोज ही होतामन न पूरा न आधाहर तरफ बंदिशों की बाधासब कुछ हासिलपर जैसे न कुछ सधा न साधा
मैं आर्थिक मामलों की विशेषज्ञ नहीं हूं केवलवर्तमान स्थिती पर अपना मत रख रही हूं। कोरोना ने कुछ दिनों लोगों को काफी डरायालेकिन ये डर कुछ ही दिन लोगों के मन में रहा, अब लोग सावधानी बरत रहे है लेकिनउन्हें संक्रमित होने से ज्यादा डर अपनी आजीविका खत्म होने का सता है। कई कं
कोरोना काल में ऐसा भी क्या आर्थिक संकट की एक या दो महीने का बेकअप भी नहीं है। मार्च से पहले करोड़ों-अरबों का बिज़नेस करने वाले भी छाती पीट रहे है कि धंधा चौपट हो गया है। सोचने वाली बात है कि जब हाई क्लास बिज़नेस करने वालों के ये हाल है तो उन बेचारे दैनिक दिहाड़ी वालों का क्या हाल होगा। जिनमे से ज्यादातर
वाह! क्या हाल और समाचार है? सावन की बौछार है। कोरोना की मार है। बनती बिगड़ती सरकार है, चुनाव कराने के लिए आयोग हर हाल में तैयार है। बाहरवी में बहुत से बच्चे 90% से पार है। वही दसवीं कक्षा का रिजल्ट पिछली बार से बेकार है। चीन, पाकिस्तान सीमा पर कर रहा वार है। इधर नेपाल भी कर रहा तकरार है। यूपी में
दिनेश शर्मा की सुबह सुबह की राम राम सब दोस्तो , बुजुर्गों बच्चों को । जो लोग वक़्त बेवक़्त हर रोज़ यहाँ वहाँ पूरे देश में जब चाहे मनमर्जी से लॉक डाउन लगाने और बढ़ाने की प्रस्तावना देते हैं वो सब सरकारी अमले के लोग है जिनकी पूरी पूरी तनख्वाहें हर महीने की एक तारीख को उनके खाते में पहुंच जाती है । जिन लोग
भारत में इतना करोना का जोर नहीं था।लेकिन कुनिका कपूर के टी वी पे आने के बाद यह अचानक से पूरे देश में फेल गया।रही सही कसर तबलिक जमात के टी वी पे आने से पूरी हो गई।फिर तो कोरोना ने जो रफ्तार पकड़ी कि उसे थामना मुश्किल हो गया। जगह जगह धर पकड़चल गई।लोग भ्रम में पड़ गए , स
प्रकृति ने इंसान को आइना दिखाया मुफत में कोरोना भूकंप,बाढ़,आग,टिड्डी और बहुत कुछ...पहले कलयुगी मानव ने दुनिया को लालच दिया कि तुम एक खरीदों, हम तुम्हें दो देंगे....लेकिन प्रकृति ने अब उसे ऐसा करारा जवाब दिया कि एक के बाद एक कई विपत्तियां मुफत में मिलने लगी. प्रकृति की मार के आगे आज मनुष्य बेबस और ल
एक जुलाई ' डाक्टर्स डे ,प्रमुख कोरोना योद्धा' डॉ शोभा भारद्वाजएक जुलाई 1991 , भारत में डाक्टर्स डे की शुरुआत देश के महान चकित्सक भारत रत्न से सम्मानित पश्चिमी बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री डा०बी .सीे राय को उनके जन्म दिवस के अवसर पर सम्मानं एवं श्रद्धांजली देने केलिए डाक्टर्स डे मनाया जाता है इनके
फुदकती फुदकतीमेरी खिड़की परफिर आ बैठी गिलहरीछोटी सी लीची कोकुतर कुतर छीलाफिर मुझसे पूछाक्या हुआ सब खैरियत तो हैदेखती हूँ कई महीनों सेकैद हो महज घर में न बाहर जाते होन किसी को बुलाते होबस उलझे उलझे उदास नज़र आते हो ? मैंने देखा उसकीचौकन्नी आंखों कोसफेद भूरीचमकती धारियों कोछोटे छोटे सुंदर पंजो कोपल पल ल
कोरोना का काबू।कोरोना --- कोई रोजगार नही।कोरोना --- कोई रोकथाम नही।कोरोना --- कोई रोए ना।कोरोना --- कोई रोकड़ा नही।कोरोना --- कोई रोल नही।कोरोना --- कोई रोको ना।
लॉकडाउन के 22 March ,२० से 31 May ,२० के दौरान, इन 71 दिनों के कोरोना काल में कुछ तथ्य -1- भारत के 28 राज्यों व् 8 केंद्र शासित प्रदेशों में बसी 135 करोड़ जनसख्या मेंगावों से शहरों की ओर देश की कुल आबादी में से एक तिहाई ने अर्थात 45 करोड़आबादी ने अपने मूल स्थान से रोजगार या अन्य कारणों से पलायनकिया
कोरोना कोविड 19 वैश्विक महामारी जिसने आज भागती दुनिया के चक्र की गति को धीमा कर दिया है। इस गति के अनुपात को लिखना ठीक वैसे ही होगा जैसे किसी जटिल इतिहास को 'किताब में लिखना' अगर हम वर्तमान परिस्थितियों की तुलना पूर्व परिस्थितियों से करें तो आज हमें बदलावो के अनुपात में बढ़ोतरी दिखती है। निश्चित है ब
हाहाकार मचा है जग मेंकैसे बेड़ा पार लगेगामन में आशा आस जगाएजीवन का ये पुष्प खिलेगालाशों के अंबार लगे हैंबिछड़ रहे अपनों से अपनेसाँसों की टूटी डोरी मेंटूट रहें हैं सपने कितनेबंदी जीवन भय का घेरालेकिन सुख का सूर्य उगेगामन में आशा आस जगाएजीवन का ये पुष्प खिलेगा।।काल कठोर भयंकर भारीनिर्धन को अब भूख निगल
ये दुनिया अगर मिल भी जाये तो क्या है ? दिनेश डाक्टर बीते दिनों में एक विचार बार बार मन में उभरता रहा है कि आने वाली दुनिया पता नही अच्छी होगी या बुरी पर जीवन उतना अच्छा नही रहेगा । बहुत सारी बंदिशें होंगी, ढेर सारे डर होंगे, हर वक़्त लोगों को लेकर मन में वहम होंगे । ये खाऊं के न खाऊं, वहां जाऊं कि