मैं आर्थिक मामलों की विशेषज्ञ नहीं हूं केवल वर्तमान स्थिती पर अपना मत रख रही हूं। कोरोना ने कुछ दिनों लोगों को काफी डराया लेकिन ये डर कुछ ही दिन लोगों के मन में रहा, अब लोग सावधानी बरत रहे है लेकिन उन्हें संक्रमित होने से ज्यादा डर अपनी आजीविका खत्म होने का सता है। कई कंपनियों ने वर्क फ्रॉम होम की सुविधा शुरु की है। क्योंकि ज्यादा से ज्यादा यात्रा ना करने की हिदायत दी गई है ऐसे में होटल और ट्रैवल इंडस्ट्री में भी इसका बुरा असर पड़ सकता है। साफ सफाई के लिहाज से लोग खाना भी घर पर खाना पसंद कर रहे है साथ ही कहीं घुमने फिरने और ठहरने के लिए बहुत ज्यादा ज़रुरी हो तो जाना पसंद नहीं कर रहे है।
शादी ब्याह और अन्य उत्सव में भी मेहमानों की संख्या सीमित कर दी गई है ऐसे में बैंड बाजे से लेकर कैटरिंग और मैरिज हॉल जैसे व्यवसाय भी प्रभावित होंगे। गणेशउत्सव और नवरात्री में मूर्तीकारों की कमाई पर शायद प्रभाव पड़े। फ़िल्मों के थियटर में प्रदर्शन पर रोक है ऐसे में यहां भी उम्मीद की किरण नज़र नहीं आ रही है।
ख़ासकर कर जो लोग दैनिक श्रमजीवी है उनकी हालत बहुत ही खराब हो चुकी है, कईयों के काम-धंधे भी चौपट हो चुके है। स्कूल भी खुल नहीं रहे है ऐसे में शिक्षकों की आजीविका भी प्रभावित होगी। बस और टैक्सी भी ना के बराबर ही चल रहे है।
ऐसे में ज़रुरत है आपसी सामंजस्य कि यदि कोई एक दो माह घर का किराया ना दे सक रहा हो उसे घर से ना निकाला जाया, घरेलू काम पर आने वाले नौकर को वक्त पर तनख़्वाह दे। फल सब्जी वालों से ज्यादा मोल भाव ना करे।
अकेला भारत ही इस मंदी से प्रभावित नहीं है बल्की इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ा है। आए दिन अखबार में आर्थिक संकट की वजह से आ रही आत्महत्याओं की खबरे चिंताजनक है।
अब समय के हिसाब से खुद को बदलना होगा। मास्क उघोग, सेनिटाइज़ फूड, सेनिटाइज़ प्रॉडक्ट, ऑनलाईन कोर्सेस
और सोशल डिस्टेसिंग का ध्यान रखते हुए व्यापार शुरु करने होंगे।
साथ ही सरकार को भी आर्थिक विशेषज्ञों की सलाह से अर्थव्यवस्था को और बेहतर बनाने और रोजगार के अवसर बढ़ाने हेतू कदम उठाने चाहिए।
शिल्पा रोंघे