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स्वार्थ औरस्वार्थहीनतास्वार्थ और स्वार्थहीनता – यानी निस्वार्थता –दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं... वास्तव में स्वार्थ यानी स्व + अर्थ अर्थात अपनेलिए किया गया कार्य | हम सभी अपने लिए ही कार्य करते हैं – अपने आनन्द के लिए, अपने जीवन यापन के लिए, अपनी आवश्यकताओं की पूर्तिके लिए | यदि हम अपने लिए ही

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पुरुष का प्रेम समुंदर सा होता है..गहरा, अथाह..पर वेगपूर्ण लहर के समान उतावला। हर बार तट तक आता है, स्त्री को खींचने, स्त्री शांत है मंथन करती है, पहले ख़ुद को बचाती है इस प्रेम के वेग से.. झट से साथ मे नहीं बहती। पर जब देखती है लहर को उसी वेग से बार बार आते तो समर्पित हो जाती है समुंदर में गहराई तक,

हिन्दी भाषा का मानक रूप आज अशुद्ध शब्दों के प्रयोग के कारण लुप्त सा होता जा रहा है।यह चिंतनीय विषय है।हिंदी विस्तृत भू-भाग की भाषा है। क्षेत्रीय बोलियों के संपर्क में आने से शुद्ध शब्दों का स्वरूप बदल जाता है।अहिंदी भाषियों के द्वारा भी हिंदी का प्रयोग संपर्क भाषा के रूप में किया जाता हैजिसके कारण श

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🔴 संजय चाणक्य '' ऐ मेरे वतन के लोगो जरा आंख में भर लो पानी !!जो शहीद हुए है उनकी जरा याद करो कुर्बानी !!''जश्न-ए-आजादी की 70 वी वर्षगाठ़ पर अपने प्राणों की आहुति देकर मां भारती को मुक्त कराकर इबादत लिखने वाले अमर शहीदों को सलाम! इन योद्वाओं को जन्म देने वाली जगत जनन

एक स्वतत्र संप्रभुता सपन्न राष्ट्र में जब लोगनारे लगाते हैं, “हमें चाहिये आज़ादी।” तो बड़ी विडम्बना सी लगती है। साथ ही कुछ आशंकाएजन्म लेती है। आजकल नागरिकता संशोधन बिल का कुछ लोग विरोध कररहे हैं। विरोध किसी भी मुद्दे पर हो कुछ लोगों का प्रिय नारा आज़ादी का नारा है। यहनारा एक विद्रोह के नारे जैसा लगता ह

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भारत में बहुत सारे ऐतिहासिक मंदिर हैं जिनकी अपनी अलग ही कहानी है। इन्हीं मंदिरों में एक हैं तिरुपति बालाजी है जिसकी मान्यता कुछ ऐसी है, जहां जाने से लोगों की सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। आंध्रप्रदेश के चित्तूर जिले में तिरुमाला की

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TAX को लेकर हर साल देश में कोई ना कोई बदलाव आता ही रहता है। कभी कोई सरकार अपने फायदे के लिए टैक्स बदलती है तो कभी कोई सरकार लेकिन इन सबमें आम आदमी पिस कर रह जाता है। आप कोई भी चीज खरीदते हैं जैसे Books, Biscuits, TV, Fan या पानी की बोतल और कुछ भी सर्विसेसज जैसे होटल र

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इंसान अपनी जिंदगी में बहुत सी चीजों को लेकर परेशान रहता है और अगर उसे कोई अच्छे से समझा दे तो उसे एक दिलासा मिल जाता है। ऐसे कई आध्यात्मिक गुरू हैं जो जिंदगी के बारे में बहुत सारी अच्छी बातें बताते हैं, उनमें से एक हैं सद्गुरु जग्गी वासुदेव (Sadhguru Jaggi Vasudev) जी

कुछ अपने दर्द की भी कहानी लिखा करो , यू ना ज़िन्दगी को त्याग का श्रंगार बनाया करो । तस्वीर न बदलती फैम बदलने से ,खुद को उम्मीदो पर खड़ा होकर तो देखो । दो पल की ये ज़िन्दगानी ,हँसते हँसते जी कर तो देखो । यू तो आँखे आशब्दिक तौर पर सबकुछ बयां कर देती,खुद को खुद की प्रेर

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रिटायर होने के बाद गोयल साब बड़े रिलैक्स महसूस कर रहे हैं. साढ़े तीन बरस बड़े से बैंक की रीजनल मैनेजरी करी थी कोई मज़ाक नहीं था. अब जा के शान्ति मिली ज़रा सी. बीयर की चुस्की लेते हुए मुस्करा दिए. अब ना तो किसी की ट्रान्सफर की सिफारिश का लफड़ा, ना लोन देना है, ना हेड ऑफिस को जवा

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Birsa Munda एक ऐसा नाम जो भारत के आदिवासी स्वसंत्रता सेनानी के रूप में जाना जाता है। वे एक लोकनायक थे जिनकी ख्याती अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता संग्राम में काफी लोकप्रिय हुए थे। उनके द्वारा चलाए जाने वाले सहस्त्राब्दवादी आंदोलन ने बिहार और झारखंड में लोगों पर खूब प्र

आतंकवाद एक ऐसा तत्व है जो जीवन के सभी पहलुओं को प्रभावित कर रहा हैं। आधुनिक समय मे आतंकवाद एक राजनीतिक मुद्दे के साथ-साथ एक कानूनी व सैनिक मुद्दा भी बन गया है। यह देशों की राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा भी हैं, किन्तु यह है क्या? आतंकवाद को परिभाषित नहीं किया जा स

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दुनिया के महान सेनापतियों में एक नेपोलियन बोनापार्ट का नाम भी आता है। जिन्होंने फ्रांसीसी क्रांतिकरी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और उन्होंने कुशलता, बुद्धिमता और कूटनातिज्ञ के चलते यूरोप का नक्शा बदल कर रख दिया था। इतना ही नहीं उन्होंने अनपी विवेकशीलता के चलते फ्रांस की जर्जर सेना को आधुनिक और शक्ति

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17वीं शताब्दी के अंत में अंग्रेज व्यापार करने के बहाने भारत में घुसे और पूरे देश पर धीरे-धीरे कब्जा कर लिया। ब्रिटिश सरकार की हुकुमत पूरे देश पर चलने लगी और इन्होंने कुछ साल नहीं बल्कि 200 साल से ज्यादा भारत को गुलाम बनाकर रखा। भारत की स्थिति बहुत ज्यादा खराब हो गई थी और इस दौरान कुछ क्रांतिकारी लोग

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आज का दिन एक बार फिर बीती यादों की ओर लिए जा रहा है ।आज ही के तीन साल पहले शब्दनगरी पर टििप्पणी के लिए बनाये गए अकाउंट ने मेरी जिंदगी बदल दी थी। उन सभी पाठकों और सहयोगियों की ऋणी रहूँगी, जिन्होंने मेरी इस शानदार रचना यात्रा में मुझे अतुलनीय सहयोग दिया। आभार...आभार

विवेकानन्द के बहानेविजय कुमार तिवारीस्वामी विवेकानन्द जी ने उद्घोष किया था,"उठो,जागो और तब तक नहीं रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये।"भारत के उन्हीं महान सपूत की आज जन्म-जयन्ती है।बहुत श्रद्धा पूर्वक याद करते हुए मैं उन्हें नमन करता हूँ।आज पूरा देश उन्हें याद कर रहा है और उनके चरणो में श्रद्धा-सुमन

ईशावास्योपनिषद के आलोक मेंविजय कुमार तिवारीवेदान्त कहे जाने वाले उपनिषदों ने भारतीय जनमानस को बहुत प्रभावित किया है और हमारी चेतना जागृत की है।आज हमारे युवा पथ-भ्रमित और विध्वंसक हो रहे हैं,उन्हें अपने धर्म-ग्रन्थों विशेष रुप से वेदान्त के रुप में जाना जाने वाले उपनिषदों को पढ़ना और उनका अनुशीलन करन

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ब्राह्मण ग्रंथ ही वेद के सर्वाधिक निकट तथा उसे समझने के आधार ग्रंथ है।ऐतरेय ब्राह्मण सभी ब्राह्मण ग्रंथों में पुराना व जटिल ग्रंथ है।ब्राह्मण ग्रंथों के मिथ्या अर्थों के कारण संसार में पशुबलि नरबलि मांसाहार नशा आदि पापों का उदय हुआ और इन पापों के लिए वेदादि शास्त्रों

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वास्तव में धन्य हैं हमारे महर्षि गूगलानंद और माइक्रोसॉफ्ट जैसी परम्पराओंसे जुड़े आजकल के महान ऋषि मुनि... बहुत अच्छा लेख डॉ दिनेश शर्मा... विचारों का रैला - दिनेश डॉक्टरधन्य हैं कल युगकी नई ऋषि परंपरा जिसकी कृपा से आज वह भी हो रहा है जिसकी कल्पना भी कभी हमने बचपनमें नहीं की थी। फोन पर हज़ारों मील दूर

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