एक स्वतत्र संप्रभुता सपन्न राष्ट्र में जब लोग
नारे लगाते हैं, “हमें चाहिये आज़ादी।” तो बड़ी विडम्बना सी लगती है। साथ ही कुछ आशंकाए
जन्म लेती है।
आजकल नागरिकता संशोधन बिल का कुछ लोग विरोध कर
रहे हैं। विरोध किसी भी मुद्दे पर हो कुछ लोगों का प्रिय नारा आज़ादी का नारा है। यह
नारा एक विद्रोह के नारे जैसा लगता है। और ये लोग हरकतें भी ऐसी करते हैं या अपने बीच
होने देते हैं की इनके आंदोलन के मकसद पर ही शक हो जाये। देश के किसी अंदरूनी मुद्दे
पर सरकार का विरोध करते हुए कश्मीर की आजादी के बैनर और पाकिस्तान के झंडे दिखाये जाना।
दुनियाँ में हमने देखा है गुलाम लोग अपने आततायी
आकाओं या सरकारों से आज़ादी चाहते हैं। भारत ने भी बड़े संघर्ष और बलिदानों के बाद अंग्रेजों
से आज़ादी प्राप्त की ।
इस समय देश में लोकतन्त्र्रातमक तरीके से चुनी
गयी स्वदेशी सरकार है।इससे आज़ादी पाने के लिए इसको लोकतान्त्रिक तरीके से हराना होगा।
कुछ आंदोलनकरियों का व्यवहार देश के खिलाफ नज़र
आता है,जब वे नफरत,अलगाव वाद जैसी बोली बोलते हैं और हिंसा करते हैं।
उनके आजादी के नारे का मतलब वे काफी अच्छा बताते
हैं। जैसे भूख से आज़ादी,गरीबी से आज़ादी, बेरोजगारी से आज़ादी।क्या मात्र नारे इनसे मुक्ति दिला पायेंगे।मुद्दों की बिरयानी बनाने का नया चलन चल पड़ा हैं ।
लगता है कभी याद रखना मुश्किल होता होगा कि विरोध का असली मुद्दा क्या है। किन्तु इस बात कि उम्मीद की जा सकती है इनके उकसाने, पढाने वाले जो नेता या दल हैं उन्हें अवश्य पता
होगा कि वे क्या और किस लिए कर रहे हैं।